महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र काफी ऐतिहासिक है. यह वह क्षेत्र है जो अपनी उपजाऊ भूमि और समृद्ध कृषि अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है. 'मराठियों के असली घर' के नाम से मशहूर यह क्षेत्र अब जल संकट, बार-बार फसल खराब होने और किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के चलते गंभीर कृषि संकट से गुजर रहा है. यहां के कई जिलों में किसानों के आत्महत्या करने की दर बढ़ती जा रही है. पिछले दिनों आए आंकड़ें एक बार फिर से इस क्षेत्र में मुश्किल होती स्थिति की तरफ इशारा करते हैं.
मराठवाड़ा क्षेत्र में आठ जिले शामिल हैं, छत्रपति संभाजीनगर (पुराना नाम औरंगाबाद), बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, धाराशिव (पुराना नाम उस्मानाबाद) और परभणी. मराठवाड़ा क्षेत्र 64,590 वर्ग कि.मी. को कवर करता है. भौगोलिक दृष्टि से यह भारत के कुछ राज्यों और यूरोप के कुछ देशों से भी बड़ा है. मराठवाड़ा की सीमा तेलंगाना और कर्नाटक से लगती है. महाराष्ट्र के अंदर यह उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ से घिरा हुआ है. गौरतलब है कि दोनों ही क्षेत्र समान कृषि संकट का सामना कर रहे हैं.
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संसद में बताया था कि 2022 से 2024 के बीच मराठवाड़ा में 3,090 किसानों ने आत्महत्या की है. इस क्षेत्र में 2022 में 1,022, 2023 में 1,116 और 2024 में 952 मामले सामने आए. चिंता की बात यह है कि 2025 में यह संकट और गहरा होने की आशंका है. छत्रपति संभाजीनगर डिविजनल हेडक्वार्ट्स के आंकड़ों के अनुसार, इस साल के पहले तीन महीनों में ही 269 किसानों ने आत्महत्या की है . यह 2024 में इसी अवधि के दौरान 204 मौतों से काफी अधिक है.
बीड जिला सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है. यहां पर जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच 91 किसानों ने आत्महत्या की. जबकि पिछले साल इसी अवधि में 44 किसानों ने आत्महत्या की थी. इसी अवधि के लिए, छत्रपति संभाजीनगर में 50, नांदेड़ में 37, परभणी में 33, धाराशिव में 31, लातूर में 18, हिंगोली में 16 और जालना में 13 किसानों ने आत्महत्या की. किसान नेता अमर हबीब ने कहते हैं, 'महाराष्ट्र में औसतन प्रतिदिन सात से आठ किसान आत्महत्या कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर किसान ऐसे हैं जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं और उनके पास कोई वैकल्पिक आय स्रोत नहीं है.'
जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र को हाल के वर्षों में चरम जलवायु का सामना करना पड़ा है. लगातार सूखा, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों को परेशान किया है. उनका इशारा जुलाई 2022 की बाढ़ की तरफ था जिसने कपास और दालों को नुकसान पहुंचाया. इसके बाद 2024 की ओलावृष्टि ने फसल के नुकसान को और बढ़ा दिया. विशेषज्ञों की मानें तो पानी की कमी के साथ अर्ध-शुष्क परिस्थितियां और अपर्याप्त सिंचाई किसानों को अनियमित मानसून पर छोड़ देती है.
वहीं भूजल में कमी ने संकट को और बढ़ा दिया है. अब बोरवेल 700 से 1,000 फीट गहरे खोदे जा रहे हैं. इससे सिंचाई की लागत बढ़ी है. साल 2015 में, मंजरा जैसे प्रमुख जलाशयों में पानी ही नहीं था. नतीजतन, कई किसान गन्ना काटने या शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर गए हैं. इससे परिवार और स्थानीय अर्थव्यवस्थाएं मुश्किल में आ गई हैं.
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