
केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिजली (संशोधन) बिल, 2025 और नए बीज कानून (Seeds Bill) को लेकर सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर टकराव की स्थिति बन सकती है. किसान संगठनों ने इसे लेकर स्पष्ट संकेत दिए हैं. चंडीगढ़ में बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) से जुड़े 5,000 से अधिक किसान जुटे और साफ चेतावनी दी कि अगर सरकार बिल को वापस नहीं लेती है तो वे साल 2020-21 की तरह बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे. बिजली संसोधन कानून को आगामी संसद सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. हालांकि, बीज कानून पर सरकार ने सुझाव मांगे हैं.
दि ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, SKM ने 28 नवंबर को अपने सभी घटक संगठनों की बैठक बुलाई है, जिसमें आगे की रणनीति तय होगी. इसी मंच पर किसानों ने सीड्स बिल, चार नए श्रम कानून और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को भी वापस लेने की मांग उठाई और इन्हें “केंद्रीकरण की तरफ खतरनाक कदम” बताया.
BKU (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने किसानों को फिर से लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहने को कहा है. उन्होंने कहा कि किसान, बैग, राशन और कपड़े जुटा लें… इस बार लड़ाई और गंभीर है.
वहीं, BKU (एकता-उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने आरोप लगाया कि बिजली संसोधन बिल से बिजली वितरण निजी कंपनियों के हाथों में जाने का रास्ता साफ होगा. उन्होंने कहा कि स्मार्ट चिप मीटर इसी निजीकरण की शुरुआत है. उग्राहां और अन्य नेताओं ने कहा कि प्रस्तावित सीड्स बिल से बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) को बीज बाजार पर एकाधिकार मिल जाएगा.
इधर, BKU (एकता-डकौंदा) के राज्य अध्यक्ष बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा कि किसानों लिए अब वापस मुड़ने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा जा रहा है. वहीं, किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा कि सरकार ने पिछले आंदोलन के दौरान MSP को लागत से 50% लाभ पर लागू करने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं किया गया. किसानों नेताओं ने हालिया बाढ़ से हुए नुकसान के लिए राज्य सरकार पर भी वादाखिलाफी का आरोप लगाया.
BKU (डकौंदा) के नेता गुरबीर सिंह रामपुर ने मांग की कि लखीमपुर खीरी हिंसा से जुड़े किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को खत्म किया जाए. साथ ही पराली जलाने के मामलों में किसानों को “रेड एंट्री” से राहत दी जाए. चंडीगढ़ में जुटे किसान संगठनों ने सर्वसम्मति से मसौदा प्रस्ताव भी पारित किए. जिनमें ये प्रमुख मांगें रहीं...
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