बीते दिन केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में आंदोलनरत किसान नेताओं के साथ मीटिंग की, जो देर शाम तक चली. इस बैठक में पंजाब सरकार की ओर से भी मंत्री शामिल थे. बैठक के बाद सभी ने कहा कि अच्छे माहौल में बातचीत हुई और बैठक की अगली तारीख 4 मई को तय की गई और जानकारी मीडिया से साझा की गई. लेकिन इसके कुछ देर बाद ही शाम को पंजाब पुलिस ने राज्य सरकार के आदेश पर आंदोलनरत किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया और देर रात तक खनौरी और शंभू बॉर्डर से भी किसानों को हिरासत में लेकर हाईवे से बैरिकेंडिंग, टेंट, ट्रैक्टर-ट्रॉली समेत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी, जिसके बाद आज सड़क से आवाजाही शुरू हो चुकी है.
किसान नेताओं और आंदोलनरत किसानों पर कार्रवाई को लेकर राजनीति गरमाई हुई है, इसपर राजनीतिक पार्टियों और कई किसान संगठनों ने प्रतिक्रिया देते हुए आप सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा की है. भारतीय किसान यूनियन टिकैत के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने 'आज तक' के साथ लंबी बातचीत में इस पर प्रतिक्रिया दी है. पढ़िए उन्होंने क्या कहा…
राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार को किसान नेताओं से बातचीत करके इसका समाधान निकलना चाहिए था. पंजाब सरकार ने तो बात ही नहीं की. अगर उनके रास्ते बंद थे तो पंजाब सरकार को लगातार बातचीत करनी चाहिए थी. हमारा (किसानों का) ज्यादा संघर्ष और जो ज्यादातर मुद्दे हैं, वो केंद्र सरकार से जुड़े हैं, राज्य सरकार से कोई इशू नहीं है.
अगर किसानों के किसी स्टेट से इशू होते तो? इसपर उन्होंने जवाब दिया कि अलग प्रदर्शन होते हैं, उनसे अलग बातचीत होती है.
टिकैत ने कहा कि जमीन पंजाब की है, किसान भी वहां का ही है. नफा नुकसान जो होगा, वो भी सिख समाज का होगा, किसानों का होगा और वहां की सरकार का होगा. अब दोनों को समझना पड़ेगा कि आपस में मिल बैठकर काम करना पड़ेगा. आज ही वहां के मुख्यमंत्री वहां की सरकार पहले किसानों को रिहा करे. एक बातचीत का माहौल तैयार करे और ये बताए कि जो लड़ाई है वो दिल्ली सरकार (केंद्र) के खिलाफ़ है, हमारे खिलाफ़ नहीं है.
टिकैत ने कहा कि पंजाब सरकार के पास बातचीत का ऑप्शन था, बातचीत से उनको कन्विंस करके दूसरा रास्ता भी हो सकता था. इसे लगता है कि किसानों को दबाने का काम भारत सरकार भी कर रही है और पंजाब की सरकार ने भी किया है. जिस तरह का रवैया है, उससे ये लगता है की सब किसान संगठनों को एकजुट होना पड़ेगा. अलग-अलग रहेंगे तो यही हाल होगा, इकट्ठा होना पड़ेगा.
आप तो संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा हैं, SKM खनौरी-शंभू बार्डर के आंदोलन का हिस्सा नहीं था, अब आप कह रहे हैं कि सभी को एकजुट होना पड़ेगा, जब आंदोलन चल रहा था तब क्यों नहीं इकट्ठा हुए?
इस पर टिकैत ने कहा कि हमने एक छह सदस्यीय कमेटी बनाई थी और हम बार-बार उनको कहते रहे कि एकजुट हो जाएं, कहीं भी आह्वान करना हो तो इकट्ठा आह्वान करो. कमेटी की उनसे बातचीत चल रही थी, लेकिन फिजिकल रूप से मूवमेंट में एसकेएम वहां पर नहीं था.
पहले किसान नेता कहते थे कि केंद्र, यूपी और हरियाणा में बीजेपी की सरकार हमारी नहीं सुनती, अब पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार ने यह एक्शन लिया है तो कुछ अब आम आदमी पार्टी के खिलाफ़ भी आंदोलन होगा? आगे आप इसे किस तरीके देखते हैं?
सवाल का जवाब देते हुए टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार तो यही चाहती है ना कि ये मूवमेंट जो है, ये पंजाब में चला जाए और उसको इसका फायदा मिले. पंजाब का मूवमेंट होगा तो पंजाब सरकार के खिलाफ़ होगा, वहाँ के किसान, मूवमेंट को जो मोर्चा है, वो पंजाब सरकार के खिलाफ़ खोल रहे हैं. आपस में दोनों लड़ते रहें और बैठकर अपना तमाशा देखते रहें.
केंद्र के भी बयान सामने आए हैं कि पंजाब सरकार ने जिस तरह किसानों को बलपूर्वक हटाया है, ये गलत है. केंद्र सरकार किसानों की सहानुभूति लेना चाह रही है, लेकिन उनसे बातचीत नहीं कर रही है. वह बैठक के लिए दो-दो महीने का टाइम दे रही है. कल भी उन्होंने अगली बैठक के लिए 4 मई का समय दिया है. ये आंदोलन को लंबा खींच रहे थे और किसानों के धैर्य को तोड़ना चाहते थे. जो वहां पर हुआ, वो पूरी तरह से गलत है और पूरे देश के किसान, जितने भी किसान संगठन हैं, वो इसकी निंदा करते हैं.
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि कहीं पंजाब सरकार और केंद्र सरकार जिसपर आप हमलावर ज्यादा है उनकी मिलीभगत है?
टिकैत ने कहा कि बिल्कुल मिलीभगत तो है, बगैर इसके काम हो ही नहीं सकता. मिलीभगत तो होगी, इनको हटाओ, हम लंबा टाइम देंगे आप उनको अरेस्ट करना. बगैर केंद्र सरकार की शह के तो काम हो ही नहीं सकता, क्योंकि केंद्र सरकार भी तो स्टेट से अलग बात करती है, दूसरी पार्टी से अलग बात करती है, उसको भी तो पंजाब में अपना दिख रहा है ना? और जहां तक कांग्रेस और इनका सवाल है, इनका दोनों का मिलीभगत ये रहती है.
आप कह रहे हैं कि बीजेपी से कांग्रेस भी मिली हुई है, बीजेपी से आम आदमी पार्टी भी मिली हुई है तो फिर किसान संगठनों के सामने क्या कुछ विकल्प बचता है?
विकल्प ये बचे कि ये सब फिर से इकट्ठा हों. जो लोग दिल्ली से एसकेएम इकट्ठा गया था यहां से वो सब इकट्ठा हो जाएं तो फिर किसी सरकार की कोई ताकत नहीं है, लेकिन अगर बड़ा नेता बनने की चाह होगी, खुद नेता बनने की जो होगी खुद के आंदोलन खड़े करने पड़ेंगे. खुद की जत्थेबंदी बनाएंगे तो ये सारा नुकसान नई-नई जो जत्थेबंदियां बनी हैं तो सरकार ने अपने उसमें ले लिया, बहुत जत्थेबंदी बनी है. करीब हजारों जत्थेबंदी आंदोलन के बाद में देश में नई बनी है. कर्नाटक में किसान संगठन, उत्तर प्रदेश में, अगर नोएडा में अकेले देखे तो यहां करीब 45 नए किसान संगठन हैं. मेरठ में, मुजफ्फरनगर में हर जिले में 30-30, 40-40 किसान संगठन नए नाम से हैं.
आपको लग रहा है कि किसानों के नाम पर दुकानदारी बढ़ गई है?
टिकैत ने कहा कि इसको दुकानदारी नहीं कह सकते. अधिकारी तोड़ने में लगे हुए हैं. अधिकारी कहते हैं कि भाई तू बढ़िया काम करता है, तू इनके चक्कर में कहां है तू अपना नया बना ले. जितननी जत्थेबंदी बन रही है, इससे आम किसानों का नुकसान है.
ये भी कहा जाता है कि राकेश टिकैत अपनी मोनोपोली चलाना चाहते हैं. उनकी जो नेतागीरी है, वो खतरे में होती है. इसलिए वो कहते हैं कि अलग-अलग संगठन नहीं बने, वो क्यों अपना एक छत्र राज्य रखना चाहते हैं?
सवाल का जवाब देते हुए टिकैत ने कहा कि हमारा कोई एक छत्रराज नहीं है. जब संयुक्त मोर्चा बना हुआ है, उसमें अपनी आइडेंटिटी, अपना झंडा, अपना बैनर अपना नाम आप रख के कम से कम संयुक्त मोर्चा तो इकट्ठा बना लो. अब संयुक्त मोर्चा के नाम से भी बहुत संगठन बने हैं. किसी की कोई समझ में नहीं आएगा कि संयुक्त मोर्चा है कौन सा?
लोकल का संयुक्त मोर्चा अभी नोएडा में बना तो उसका भी संयुक्त मोर्चा है. कोई दूसरे शहर में बनाएगा. उसका भी संयुक्त मोर्चा है तो उस नाम से बहुत ये लोग जो किसान, मजदूर, आदिवासी है, सब भ्रमित हैं और उनका नुकसान हो रहा है. सरकारों को फायदा हो रहा है.
ये जो आंदोलन को हटा दिया गया है तो अब लगता है कि इससे किसानों का जो आंदोलन है, उसको ओवरऑल नुकसान हुआ है और अब सरकारों को पता चल गया है कि किसानों को किस तरीके से हटाया जा सकता है, उनके आंदोलन को सरकार अब सीरियसली नहीं लेंगी.
इस पर टिकैत ने कहा कि ऐसा नहीं है, अलग-अलग जाकर लड़ेंगे तो कमजोर रहेंगे. इकट्ठे रहेंगे तो कोई नहीं आ सकता, ना ही किसानों को डरा सकता है. सरकारों की जो पॉलिसी है, उसे खिलाफ फिर संयुक्त मोर्चा के लोगों को एक जगह बैठना पड़ेगा. पूरे देश के लोगों को इनके ऊपर विश्वास है.
किसान यूनियनों को पॉलिटिकल सिस्टम से हटना पड़ेगा कि कोई पॉलिटिकल आदमी हमारे बीच में जैसे पहले था ना उसको मंच दिया जाए, ना उसको माइक दिया जाए और उनसे दूरी बनाकर रखी जाए. वैसे तो अभी भी रख रहे हैं और आगे भी रखनी पड़ेगी और हमको सबको नॉन पोलिटिकल लोगों को एक जगह बैठना पड़ेगा.
कोई मीटिंग तय है?
अभी नहीं, अभी तो ये चल रहा है कल उत्तर प्रदेश में और कुछ जगह हमने कॉल दी है कि कल ज्ञापन डीएम के माध्यम से ज्ञापन राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को जाए. टिकैत ने कहा कि जब तक किसानों से जुड़े हुए जो संगठन है, वो बंटे रहेंगे, तब तक सरकारों अपने हिसाब से काम करती रहेंगी, आंदोलनों को खत्म करती रहेंगी. इसलिए एकता बहुत जरूरी है.