
मध्य प्रदेश की राजनीति में किसान कर्ज माफी को लेकर एक बार फिर तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है. इस बार विवाद की वजह बने प्रदेश सरकार के मंत्री विश्वास सारंग हैं, जिनके एक बयान ने सियासी हलकों में हलचल तेज कर दी है. विश्वास सारंग ने बयान दिया कि वर्ष 2018-19 में कमल नाथ सरकार के दौरान जिन किसानों की कर्ज माफी की गई थी, उनमें बड़ी संख्या फर्जी किसानों की थी. उनके इस बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कड़ा पलटवार करते हुए न सिर्फ आरोपों को झूठा बताया, बल्कि किसानों से माफी मांगने तक की मांग कर डाली है.
दरअसल, मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे. कांग्रेस ने चुनाव से पहले किसानों की कर्ज माफी को बड़ा मुद्दा बनाया था और सत्ता में आते ही इसे लागू करने का दावा किया गया. हालांकि, यह सरकार महज 15 महीने ही चल सकी, क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी में शामिल होने के बाद सरकार गिर गई. इसके बावजूद किसान कर्ज माफी योजना कमलनाथ सरकार की सबसे चर्चित उपलब्धियों में गिनी जाती रही है.
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि कमलनाथ सरकार के फैसलों का खामियाजा प्रदेश की सहकारी बैंकों को भुगतना पड़ा. उनका कहना था कि उस समय फर्जी किसानों के नाम पर कर्ज माफी की गई, जिससे बैंकों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई. उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा मोहन सरकार सहकारी बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए काम कर रही है और आने वाले दो वर्षों में इसमें सुधार दिखाई देगा.
इस बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया के जरिए जवाब दिया. उन्होंने जिलेवार आंकड़ों के साथ किसानों की कर्ज माफी का विवरण सार्वजनिक किया और कहा कि विश्वास सारंग ने जानबूझकर झूठ बोला है. कमलनाथ ने लिखा कि कांग्रेस सरकार ने दो चरणों में लगभग 27 लाख किसानों का 11,646.96 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था. कमल नाथ ने कहा कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही उन्होंने किसानों की राहत को प्राथमिकता दी थी और कर्ज माफी उसी का हिस्सा थी.
कमलनाथ ने आगे आरोप लगाया कि अगर कांग्रेस सरकार को साजिश के तहत गिराया नहीं जाता तो प्रदेश के बाकी किसानों का कर्ज भी माफ कर दिया जाता. उन्होंने बीजेपी पर किसानों से किए गए वादों को पूरा न करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि गेहूं और धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किए गए वादे आज तक अधूरे हैं और किसान लगातार आर्थिक दबाव में हैं. खाद की किल्लत से लेकर घटती आमदनी तक, किसानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं.
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