
असमय हुई बारिश ने गुजरात के किसानों को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं, जिससे किसान गहरी आर्थिक परेशानी में फंस गए हैं. जैसे ही फसल कटाई का मौसम शुरू हुआ, अचानक हुई भारी बारिश ने खेतों में खड़ी फसलें तबाह कर दीं. कई किसानों के पास नुकसान की भरपाई का कोई साधन नहीं बचा है. इस संकट के बीच सरकार के परस्पर विरोधी बयानों ने हालात को और उलझा दिया है. आइए आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है.
राज्य के कृषि मंत्री राघवजी पटेल ने पिछले दिनों ऐलान किया है कि फसल नुकसान का सर्वे सात दिनों के भीतर पूरा कर लिया जाएगा. कृषि विभाग के आधिकारिक गजट में अधिकारियों को 20 दिनों के अंदर यह प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए. अब इन विरोधाभासी बयानों ने सरकार के समन्वय और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बेमौसमी बारिश ने खास तौर पर सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई है. मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में और तेज बारिश की चेतावनी दी है. जिन किसानों की फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं, वे अब सरकार की राहत योजना के तहत मुआवजे का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. हालांकि, जब तक फसल नुकसान का आधिकारिक सर्वे पूरा नहीं होता, तब तक मुआवजे की राशि तय नहीं की जा सकती.
आधिकारिक आदेश के अनुसार कृषि अधिकारियों को सैटेलाइट इमेजरी की मदद से सर्वे करने, 12 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंपने, डिजिटल सर्वे को सैटेलाइट डेटा से मिलाने और सात दिनों के अंदर इसकी जानकारी जिला कलेक्टरों को भेजने के निर्देश दिए गए हैं. अधिकारियों को पूरी प्रक्रिया 15 दिनों के भीतर पूरी कर सरकार को सहायता प्रस्ताव भेजने के भी आदेश हैं.
दूसरी तरफ सरकार के सिर्फ कोरे आश्वासनों और लिखित निर्देशों के बीच के इस विरोधाभास ने किसानों में नाराजगी बढ़ा दी है. किसानों का आरोप है कि प्रशासन असंवेदनशील और अव्यवस्थित तरीके से काम कर रहा है. गुजरात किसान कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार 'दोहरी बातें' कर रही है और किसानों के दर्द का मजाक उड़ा रही है. साथ ही यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि बीजेपी के विधायकों, सांसदों और मंत्रियों द्वारा किए गए व्यक्तिगत फसल नुकसान आकलनों को वैध क्यों नहीं माना जा रहा है.
किसान प्रतिनिधियों का कहना है कि जिन इलाकों में 15 इंच तक बारिश हुई है, वहां दोबारा सर्वे कराने की कोई जरूरत नहीं है. उनका यह भी कहना है कि अगर सर्वे में फसल नुकसान का सही आंकलन नहीं दिखता है, तो सरकार को तात्कालिक राहत के तौर पर मूंगफली न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदनी चाहिए. पिछले कई मौसमों से लगातार प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे किसान अब एक बार फिर कर्ज माफी की मांग उठा रहे हैं.
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