`भाजपा का सियासी गेन, ग्रामीण वोटरों के खिसकने का डर` किसान नेताओं की हिरासत के पीछे पंजाब सरकार का `दगा' या सियासत?

`भाजपा का सियासी गेन, ग्रामीण वोटरों के खिसकने का डर` किसान नेताओं की हिरासत के पीछे पंजाब सरकार का `दगा' या सियासत?

माना जा सकता है कि बीजेपी की दूरगामी चाल के तहत पंजाब सरकार ने सभी किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया. शंभू-खनोरी बॉर्डर बलपूर्वक खोल दिए. किसानों के मोर्चे को हटा दिया. हालांकि इसका घोषित कारण दिया कि लोगों को आने-जाने में बहुत तकलीफ हो रही थी.

पंजाब सरकार का `दगा' या सियासतपंजाब सरकार का `दगा' या सियासत
अनुज खरे
  • Noida,
  • Mar 27, 2025,
  • Updated Mar 27, 2025, 2:09 PM IST

त्वरित विश्लेषण

पंजाब-हरियाणा में किसान आंदोलन चल रहा है. इसे लेकर केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और किसानों के बीच 7 दौर की बातचीत हो चुकी है. सूत्र बताते हैं कि चंडीगढ़ में हुई पिछली बातचीत में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से खनौरी और शंभू बॉर्डर पर एक तरफ का रास्ते छोड़ देने की बात कही थी. जिसे लेकर किसान तैयार भी हो गए थे. कथित तौर पर ऐसा माना जा रहा है कि पंजाब सरकार ने इस पहल में टंगड़ी मार दी. क्योंकि मान सरकार को ऐसा लगा कि कहीं बातचीत पॉजिटिव दिशा में न चली जाए. समझौता हो गया तो किसान कहीं भाजपा के समर्थक नहीं बन जाएं. हाल में भाजपा ने आप को जिस तरह से दिल्ली चुनाव में पराजित किया है. पार्टी अब पंजाब में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी. 

माना जा सकता है कि दूरगामी रणनीति के तहत इसे लेकर उन्होंने सभी किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया. शंभू-खनोरी बॉर्डर बलपूर्वक खोल दिए. किसानों के मोर्चे को हटा दिया. हालांकि इसका घोषित कारण बताया गया कि लोगों को आने-जाने में बहुत तकलीफ हो रही थी. रास्ते बंद होने की वजह से पंजाब के व्यापारियों को रोज 500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. आंदोलन के 400 दिनों में लगभग 2 लाख करोड़ का कुल नुकसान हो चुका है. लेकिन इस निर्णय को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि यदि सरकार को व्यापारियों की चिंता होती या लोगों की परेशानी की परवाह होती तो यह एक्शन तो बहुत पहले ले लिया जाता. किसान आंदोलनकारी तो पिछले 400 दिनों से खनौरी-शंभू बॉर्डर पर बैठे हैं.

आइए, सिलसिलेवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं पूरा मामला...

• पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनोरी बॉर्डर पर पिछले 13 महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है. यह आंदोलन मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी सहित 13 मांगों को लेकर है.
• केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और किसानों के बीच 7 दौर की बातचीत हो चुकी है, हालांकि अभी तक कोई ठोस नतीजे पर बातचीत नहीं पहुंची है.
• हालिया बातचीत में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से बॉर्डर पर रास्ते खोलने की अपील की थी, जिसे लेकर कुछ संकेत मिले थे कि किसान सहमत हो सकते हैं.
• किसानों का कहना है कि उनकी मांगें जायज हैं और वे लंबे समय से शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं। MSP की कानूनी गारंटी उनकी आजीविका और फायदे की खेती के लिए जरूरी है.
• किसानों का दावा हैं कि बॉर्डर पर रास्ते बंद करना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि हरियाणा पुलिस ने दिल्ली की ओर मार्च रोकने के लिए बेरिकेड्स लगाए थे, न कि किसानों ने अपनी मर्जी से रास्ते जाम किए.
• किसानों का आरोप है कि केंद्र और पंजाब सरकार दोनों उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। पंजाब पुलिस की हालिया कार्रवाई को वे `धोखा ` और `लोकतंत्र का गला घोंटना ` मानते हैं.

पंजाब सरकार की कार्रवाई को लेकिन संदिग्ध मंशा की बात क्यों कही जा रही है?

• पंजाब सरकार ने अचानक किसान नेताओं को हिरासत में लिया और शंभू-खनोरी बॉर्डर को बलपूर्वक खोल दिया. इसके पीछे तर्क दिया गया कि आम लोगों को परेशानी हो रही है और व्यापारियों को रोज 500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
• केजरीवाल लगातार पंजाब में बने हुए हैं. लोगों से फीडबैक ले रहे हैं. दिल्ली के बाद वे हर कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं. पंजाब के अपने एकमात्र किले में कोई सेंध लगे वे ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि मान सरकार को डर था कि यदि बातचीत सकारात्मक दिशा में बढ़ी और समझौता हो गया, तो इसका श्रेय केंद्र की भाजपा सरकार को मिल सकता था. इससे पंजाब में AAP की राजनीतिक जमीन कमजोर हो सकती थी. भाजपा को पंजाब में घुसपैठ करने का मौका मिल सकता है.
• किसानों और ग्रामीण वोटरों को अपने पक्ष में करने का अवसर मिल सकता है. जाहिर है इस मौके तलाश वे लंबे समय से कर रहे हैं. क्योंकि पंजाब में भाजपा हमेशा से अकाली दल के साथ समझौते में चुनाव लड़ती रही. हमेशा जूनियर पार्टनर की हैसियत में रही. भाजपा जिस रफ्तार से बाकी राज्यों में विजय हासिल कर रही है. इसे लेकर भी आम आदमी पार्टी को जबरदस्त खतरा था. इसके पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी की सरकार को दिल्ली से उखाड़ फेंका था.  
• हालांकि किसान इस कार्रवाई को `विश्वासघात ` के रूप में देखते हैं, किसानों का कहना है कि बातचीत के बीच में ही यह कदम उठाया गया, जो सहमति की प्रक्रिया को तोड़ता है. यह सरकार की सरासर दगाबाजी है.

आर्थिक नुकसान: आंकड़े स्पष्ट नहीं

• पंजाब सरकार का दावा है कि बॉर्डर बंद होने से व्यापारियों को रोज 500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. यह आंकड़ा प्रभावशाली दिखता है, लेकिन फिलहाल इसे सत्यापित करने के लिए कोई ठोस डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया.
• अगर यह नुकसान इतना बड़ा था, तो 13 महीनों में पंजाब सरकार ने पहले कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाया?
• दूसरी ओर, किसानों का कहना है कि रास्ते बंद होने की असली वजह हरियाणा सरकार के बैरिकेड्स हैं, जिसे पंजाब सरकार नजरअंदाज कर रही है.

केंद्र सरकार की भूमिका?

• केंद्र सरकार ने बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन किसानों का आरोप है कि यह महज दिखावा है. शिवराज सिंह चौहान की अपील के बावजूद ठोस प्रस्ताव नहीं रखा गया.
• केंद्र ने पंजाब सरकार की इस कार्रवाई पर चुप्पी साध रखी है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह दोनों सरकारों की मिलीभगत थी या पंजाब सरकार ने स्वतंत्र रूप से यह कदम उठाया.
• इस मामले में स्थिति अगली बातचीत के समय ही स्पष्ट हो पाएगी. 4 मई को चंडीगढ़ में 8 वें दौर की वार्ता होनी है. इस में किसी भी तरह का कोई परिवर्तन दिखाई दिया तो केंद्र सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो जाएंगे.

सियासी नफा-नुकसान में किसान कहां?

• इस पूरे घटनाक्रम में किसान सबसे बड़े प्रभावित पक्ष हैं. उनकी मांगें अनसुनी रह गईं और आंदोलन को कुचलने की कोशिश की गई.
• पंजाब सरकार की कार्रवाई को AAP और भाजपा के बीच एक राजनीतिक खेल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें किसानों को मोहरा बनाया गया.
• विपक्षी दलों कांग्रेस, अकाली दल ने इसे `किसानों के साथ धोखा ` करार दिया है, लेकिन वे भी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर किसी जगह दिखाई नहीं दे रहे हैं. विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया भी फौर तौर पर रस्म अदायगी की ही दिखाई दे रही है.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि...

• शंभू-खनोरी बॉर्डर का बलपूर्वक खुलना और किसान नेताओं की हिरासत एक संवेदनशील मुद्दे को हल करने के बजाय इसे और जटिल बना सकता है.
• पंजाब सरकार का यह कदम अल्पकालिक राहत दे सकता है. शहरी जन और व्यापारियों को उनके पक्ष में खड़ा कर सकता है लेकिन लंबे समय में किसानों के गुस्से को भड़काने का ही काम करेगा. जिसका भुगतान कहीं उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में नहीं दिखाई दे जाए.
• केंद्र और पंजाब सरकार दोनों को बातचीत को पारदर्शी तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश करना चाहिए.

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