"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध."
रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां हमें याद दिलाती हैं कि निर्णय न लेना भी उतना ही घातक है जितना अन्याय करना. बिहार हमेशा से क्रांतियों की भूमि रही है. चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो, सामाजिक आंदोलन हों, या कृषि सुधार. फिर भी, अपनी उर्वर भूमि और मेहनतकश किसानों के बावजूद, बिहार के किसान आज भी हाशिए पर हैं, उनकी आवाज़ अनसुनी है, उनका श्रम उपेक्षित है. अब समय आ गया है एक बड़े और निर्णायक कदम का-एक ऐसा कदम जो यह माने कि बिहार की असली ताकत उसके किसान और उसकी जनता में निहित है.
जब सम्राट चौधरी, बिहार के वित्त मंत्री ने ₹3.17 लाख करोड़ का बजट 2025-26 पेश किया, तो यह केवल आंकड़ों का संकलन नहीं था—यह बिहार के पुनर्जागरण का शंखनाद था, यह एक वादा था कि बिहार अब सिर्फ़ संघर्ष नहीं करेगा, बल्कि समृद्धि की ओर अग्रसर होगा. यह बजट इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, कौशल उन्नयन और कृषि क्रांति की मज़बूत नींव रखता है. लेकिन अगर बिहार को वास्तव में आगे बढ़ना है, तो किसानों को उसकी आर्थिक रूपरेखा के केंद्र में रखना होगा.
दशकों से बिहार की कृषि उत्पादकता कम, बाजार तक पहुंच सीमित और बाढ़ एवं सूखे के कारण असुरक्षित रही है. कोसी नदी, जिसे “बिहार का शोक” कहा जाता है, हर साल अनेकों गांवों को तबाह कर देती है, जिससे प्रवास, गरीबी और आर्थिक संकट बढ़ता जाता है. लेकिन अगर बिहार की नदियाँ विनाश का कारण बनने के बजाय समृद्धि का स्रोत बन जाएं? एक हूवर डैम जैसी संरचना कोसी और अन्य प्रमुख नदियों पर बनाई जाए, जो बाढ़ को रोकने, सिंचाई के लिए जल भंडारण करने, बिजली उत्पादन करने और हज़ारों नौकरियां सृजित करने में सक्षम हो? एक बिहार जहां किसानों को बारिश के भरोसे न बैठना पड़े, जहां सूखे में उनकी फसलें न झुलसें, जहां हर गांव और हर खेत में रोशनी हो—यह केवल कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत बनने के करीब है.
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लेकिन सिर्फ़ जल संरक्षण से समस्या हल नहीं होगी. बिहार को एक किसान-केंद्रित कृषि मूल्य शृंखला आयोग (Farmer-Centric Agriculture Value Chain Commission) की आवश्यकता है, जो एक उच्च-स्तरीय समिति के रूप में सभी कृषि चुनौतियों का अध्ययन करके ठोस समाधान प्रस्तुत करे. बिहार की कृषि को बिखरी हुई नीतियों, अस्थायी राहत योजनाओं और बिचौलियों पर निर्भर बाजार प्रणाली से मुक्त करना होगा. इस आयोग में कृषि विशेषज्ञ, सहकारी क्षेत्र के नेता, नीति-निर्माता, औद्योगिक साझेदार और किसान प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए, ताकि समयबद्ध, प्रभावी और व्यावहारिक समाधान निकाले जा सकें. यह आयोग उचित मूल्य निर्धारण, सिंचाई, स्थायी खेती, खाद्य प्रसंस्करण और वैश्विक बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने में मदद करेगा.
बिहार का किसान वर्षों से मौसमी बदलाव, बाढ़, अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और बाजार में शोषण का शिकार रहा है. जिस राज्य की भूमि पूरे देश को अन्न खिला सकती है, वहां के किसान खुद भूखे क्यों रहें? आखिर क्यों बिहारी किसान संघर्ष करे और बिचौलिए मुनाफा कमाएं? यह अब एक नए आर्थिक मॉडल की माँग करता है—ऐसा मॉडल जो बिहार की कृषि को राष्ट्रीय और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से जोड़े. सहकारी आर्थिक ढांचा (Cooperative Economic Framework) जाति-आधारित राजनीति और आर्थिक असमानताओं को समाप्त कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि आर्थिक प्रगति का लाभ हर किसान तक पहुँचे, न कि केवल कुछ विशेष वर्गों तक.
कृषि के अलावा, बिहार को अपने युवाओं को आधुनिक और प्रतिस्पर्धी विश्व के लिए तैयार करना होगा. दशकों से बिहारी युवा रोज़गार के लिए अपने घरों से पलायन करते आ रहे हैं. लेकिन क्या कारण है कि इतनी प्रतिभा, क्षमता और मेहनत के बावजूद, बिहार को अपने होनहार युवाओं को बाहर भेजना पड़ता है? ₹60,964 करोड़ का निवेश शिक्षा और कौशल विकास में इस तस्वीर को बदल सकता है. बिहार ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, सौर ऊर्जा और सतत उद्योगों का केंद्र बन सकता है. यदि बिहार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, आधुनिक परिवहन नेटवर्क और पर्यावरण-अनुकूल शहरी योजनाओं में निवेश करता है, तो वह बड़ी कंपनियों को आकर्षित करेगा. जब उद्योग एक राज्य को शिक्षित कार्यबल और अनुकूल नीतियों के साथ विकासशील देखते हैं, तो वे वहां निवेश करते हैं. जब निवेश बढ़ता है, तो नौकरियां बढ़ती हैं, प्रवासन कम होता है और समृद्धि का स्तर ऊंचा उठता है.
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बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि एक विरासत है. यह चाणक्य की भूमि है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्य की नींव रखी. यह गौतम बुद्ध की भूमि है, जिन्होंने दुनिया को आत्म-सुधार और न्याय का मार्ग दिखाया. यह स्वामी सहजानंद सरस्वती की भूमि है, जिन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया. यह जयप्रकाश नारायण की भूमि है, जिन्होंने जनता के अधिकारों की लड़ाई लड़ी. यह बजट केवल एक सरकारी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि बिहार के लिए एक नई क्रांति का आह्वान है.
"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है!" ये शब्द जयप्रकाश नारायण के हैं, और आज भी बिहार की मिट्टी में गूंज रहे हैं. जनता अब इंतजार नहीं करेगी. उसे केवल वादे नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए. एक कृषि मूल्य शृंखला आयोग और किसान-केंद्रित आर्थिक मॉडल बिहार को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा, बल्कि उसे उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा भी लौटाएगा.
यह सिर्फ़ चुनावों या नीतियों की बात नहीं है; यह स्वाभिमान, न्याय और हर बिहारी के उज्ज्वल भविष्य का सवाल है. अब इंतज़ार का समय खत्म हो चुका है—अब बदलाव की घड़ी आ गई है!
(लेखक एमएसपी और कृषि सुधार पर पर बनी भारत सरकार की हाई पावर कमेटी के सदस्य हैं)