महाराष्ट्र के जलगांव स्थित कई तालुका में बारिश की कमी के कारण कपास की फसल खराब हो गई है. अब किसान बचेखुचे कपास को इकट्ठा करना चाहते हैं, लेकिन श्रमिकों की कमी के कारण वो परेशान हैं. खराब फसल से कम होती इनकम और ऊपर से मजदूरी अधिक होने के कारण किसानों की परेशानी बढ़ गई है.
इस साल, कुछ किसानों ने सोयाबीन के विकल्प के रूप में कपास की बुवाई की थी. लेकिन बारिश और मजदूरों की कमी के कारण दिक्कतें पैदा हो गई हैं. मजदूरी और खेती के अन्य खर्चों की आसमान छूती दरों और कपास की कम कीमत के कारण किसान असमंजस की स्थिति में हैं कि वो खेती करें या छोड़ दें.
जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है, उन्होंने कपास को पानी दिया है. उनके कपास की फसल थोड़ी बेहतर है. लेकिन जिनके पास सिंचाई की सुविधा नहीं है. उनकी फसल बारिश की कमी के कारण खराब हो गई है. इस साल कपास का दाम भी बहुत कम है. इसका भाव देश की अलग अलग मंडियों में 5000 से 7000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रहा है. जिसे किसान काफी कम बता रहे हैं.
चूंकि किसान कपास चुनने के लिए श्रमिकों पर बहुत अधिक खर्च कर रहे हैं, इसलिए खर्च की तुलना में आय कम हो गई है. कपास का उत्पादन महंगा हो गया है. इसलिए सूखे की वजह से कपास की फसल इस साल किसानों के लिए जानलेवा बन गई है. किसान सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सरकार से मदद देने की गुहार लगा रहे हैं.
राज्य सरकार ने किसानों के लिए केंद्र से राहत राशि की मांग की है, अब इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्य में सर्वे टीम भेजी है. उसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार राज्य को रकम देगी तब किसानों को राहत मिलेगी. हालांकि, राज्य सरकार ने फसल बीमा कंपनियों से प्रभावित किसानों को 25 प्रतिशत अग्रिम भुगतान के लिए कहा है.
महाराष्ट्र की सावनेर मंडी में 15 दिसंबर को कॉटन का न्यूनतम दाम 6700 और अधिकतम दाम 6725 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि वर्धा में न्यूनतम दाम सिर्फ 6000 और अधिकतम 6850 रुपये प्रति क्विंटल रहा. राज्य की ज्यादातर मंडियों में दाम की ऐसी ही स्थिति है. जबकि 2023-24 के मार्केटिंग सीजन के लिए मध्यम रेशेवाली कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6620 रुपये और लंबे रेशेवाली किस्म का 7020 रुपए प्रति क्विंटल है.