चना देश की सबसे प्रमुख दलहनी फसल है. चने को दालों का राजा भी कहा जाता है. उत्तरी भारत में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. इसकी खेती संरक्षित नमी वाले शुष्क क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है. चना शुष्क और ठंडी जलवायु की फसल है. इसे रबी मौसम में उगाया जाता है. मध्यम वर्षा (वार्षिक 60-90 सेमी) और ठंडी सर्दी वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त हैं.
इसकी खेती के लिए 24 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है. चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है. लेकिन अधिक जल धारण क्षमता और उचित जल निकासी वाली मिट्टी सर्वोत्तम होती है.
इसकी अच्छी वृद्धि के लिए पीएच 5.5 से 7 वाली मिट्टी अच्छी रहती है. वहीं चने की फसल से बंपर पैदावार लेने के लिए जरूरी है कि किसान फसल कि देखभाल सही तरीके से और समय पर करे. इसी कड़ी में आइए जानते हैं फूल आने के समय क्या करें और क्या नहीं.
चने की फसल में फूल आने से ठीक पहले पानी दें. इस बात का विशेष ध्यान रखें की फूल आने के बाद पानी न दें, इससे फूल गिरने की समस्या आता है. वहीं जिस मिट्टी में चने की खेती हुई है उसको ध्यान में रखते हुए सिंचाई करें. अगर जरूरत हो तभी सिंचाई करें नहीं तो छोड़ दें. चने की फसल में अधिक पानी भी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है. फूलों में फलियां निकलने पर पानी ना दें.
चने की फसल जब वृद्धि और विकास के साथ फूल देने की अवस्था में हो तो चने की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चने की फसल में खाद और उर्वरक का प्रबंधन बहुत जरूरी है.
चने में फूल आने की अवस्था में फूलों की संख्या बढ़ाने और फूलों को गिरने से बचाने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक 13:00:45 को 1 किलो + पोषक तत्व 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें. यदि ड्रिप सिंचाई विधि उपलब्ध है तो 13:00:45 को 3 किग्रा + सूक्ष्म पोषक तत्व 250 ग्राम प्रति एकड़ ड्रिप के माध्यम से छिड़काव करें.
चने की खेती करते समय फसल सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए. फसल को बर्बाद करने वाले कीट, अर्धवृत्ताकार कीट और फली छेदक कीट का खतरा रहता है. कटुआ कीट भूरे रंग के कीट होते हैं, जो रात में निकलते हैं और नये पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देते हैं.