कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेंदा के फूल की खेती आप सर्दी, गर्मी और बरसात कभी भी कर सकते हैं. गेंदा के फूल का इस्तेमाल पूजा से लेकर शादी और हर शुभ कामों में किया जाता है. भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों के अनुसार फूल का अपना अलग महत्व है. कोई भी पूजा हो या फिर शुभ काम, हर जगहों पर फूल का प्रयोग किया जाता है. ऐसे में किसानों के लिए गेंदे की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है.
अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जानिए गेंदा के फूल कि ऐसी ही चार किस्मों के बारे में.
पूसा बसंती गेंदा
इस किस्म को वर्ष 1995 में विकसित किया गया. इसकी खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है.इस किस्म के फूल मध्यम आकार के एवं पीले रंग के होते हैं. बीज की बुवाई के 135 से 145 दिनों के बाद पौधों में फूल आने शुरू हो जाते हैं. प्रति एकड़ खेत से 80 से 100 क्विंटल तक ताजे फूलों की पैदावार होती है.
पूसा नारंगी गेंदा
एक किस्म को वर्ष 1995 में विकसित किया गया था.इसकी खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है.इसके फूलों का आकार बड़ा होने के कारण दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में यह अधिक लोकप्रिय है. इसके फूल गहरे नारंगी रंग के होते हैं. बीज की बुवाई के करीब 125 से 135 दिनों बाद पौधों में फूल निकलना शुरू हो जाता है इस किस्म के फूलों में प्रचुर मात्रा में कैरोटीनॉयड पाया जाता है. इसका उपयोग भोजन सामग्री के निर्माण एवं औषधीय निर्माण में किया जाता है. प्रति एकड़ भूमि में खेती करने पर 100 से 120 क्विंटल ताजे फूलों की पैदावार होती है.
पूसा अर्पिता
इस किस्म को वर्ष 2009 में विकसित किया गया था.उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त किसमें है. इसकी फूल मध्यम आकार के एवं हल्के नारंगी रंग के होते हैं. उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में खेती करने पर दिसंबर से फरवरी तक पौधों में फूल निकलते हैं। प्रति एकड़ खेत में खेती करने पर 72 से 80 क्विंटल तक ताजे फूलों की पैदावार होती है.
पूसा संतरा
यह किस्म लगाने के 123-136 दिन बाद फूल लगता है. झाड़ी 73 सेकंड में लंबा होता है और बढ़त भी अधिक होता है. फूल का रंग सुर्ख नारंगी रंग का होता है और लंबाई 7 से 8 सेमी. के बीच का होता है. उपज औसतन प्रति हेक्टेयर 35 मी. टन/हेक्टेयर है.