चने के लिए घातक हैं ये 8 खरपतवार, बचाव के लिए इन दवाओं का करें इस्तेमाल

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चने के लिए घातक हैं ये 8 खरपतवार, बचाव के लिए इन दवाओं का करें इस्तेमाल

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देश के कई राज्यों में रबी की प्रमुख दलहनी फसल चना की बुवाई पूरी हो चुकी है. कोहरे और ठंड से खेतों में अच्छी नमी ने किसानों को अच्छे उत्पादन की उम्मीद जगा दी है. लेकिन इस महीने चने की फसल में कई प्रकार के खरपतवार के लगने का खतरा बना रहता है.
 

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ऐसे में चना की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि विभाग की ओर से खरपतवारों के नियंत्रण को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है, जिसमें 8 तरह के खरपतवारों को चना के लिए घातक बताया गया है और किसानों को इससे बचाव के तरीके और दवाएं भी सुझाए गए हैं.
 

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कृषि विभाग ने चना किसानों के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि चने में खरपतवारों का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. किसानों को इन खरपतवारों से बचाव के लिए उचित प्रबंध करने होंगे, नहीं तो ग्रोथ चरण होने के चलते पौधों को भारी नुकसान हो सकता है.
 

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चने की फसल में लगने वाले सबसे घातक खरपतवारों में चौड़ी पत्ती की मकोय, जंगली चौलाई, लटजीरा, बिच्छू खास, बथुआ, हीरनखुरी, कृष्णनील, सत्यानाशी प्रमुख हैं. ये पौधे को पनपने नहीं देते हैं जिससे दाना हल्का रह जाता है और क्वालिटी गिर जाती है.
 

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सलाह के अनुसार ऊपर बताए गए 8 घातक खरपतवारों से बचाव के लिए किसानों को दवा और छिड़काव का तरीका बताया गया है. कृषि एक्सपर्ट के अनुसार चने की बुवाई से पहले किसान 2.2 लीटर फ्लुक्लोटोलिन 45EC की दवा प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलकर बुवाई करें.
 

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इसके अलावा पेंडीमेथिलीन 30 EC दवा की 3 से 3.30 लीटर मात्रा बुवाई के 72 घंटे के अंदर लैट फैन नोजल से खेत की मिट्टी पर छिड़काव करें. इन दोनों तरीकों से किसान चने की फसल को खरपतवार से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.
 

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देश में कई राज्यों में चना की खेती की जाती है. वहीं, दलहनी फसलों में चने का तीसरा स्थान है जिसकी खेती की जाती है. चना प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत होता है. चने का सेवन करने से दिल, कैंसर और मधुमेह का जोखिम कम हो जाता है. हालांकि चने की खेती करने वाले किसानों की फसल को बहुत से रोग भी प्रभावित करते हैं. 

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