दिसंबर में ठंड का कहर पूरे उत्तर भारत और पहाड़ी इलाकों में देखने को मिल रहा है. ठंड की वजह से न सिर्फ लोगों को बल्कि जानवरों को भी कई समस्या होती है. खासकर ठंड के मौसम में बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में जरूरी है कि पशुपालक ठंड के मौसम में अपने साथ-साथ पशुओं का भी ख्याल रखें.
कड़ाके की ठंड में दुधारू पशुओं जैसे, गाय, भैंस के बीमार पड़ने की गुंजाइश बढ़ जाती है. साथ ही इनमें पथरी का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में आज हम आपको पशुओं में होने वाली पथरी क्यों होती है और इससे बचाव के लिए क्या करना चाहिए, यह जानकारी दे रहे हैं.
पशु चिकित्सकों के मुताबिक, ठंडी के दिनों में दुधारू पशुओं में पथरी का खतरा बढ़ जाता है. इसके पीछे की वजह यह है कि सर्दी में उनकी खुराक तो बढ़ जाती है, लेकिन पानी कम पीते हैं. इस समस्या से पशुओं को बचाने के लिए किसानों और पशुपालकों को पशु चिकित्सक की सलाह से उन्हें प्रतिदिन 20 ग्राम नौसादर खिलाना चाहिए.
अगर पशुओं को पथरी हो जाती है तो उनकी पेशाब नली में आकर फंस जाती है और पेट फूलने लगता है. पेशाब न कर पाने के कारण पशुओं की मौत भी हो जाती है. ऐसे में अगर पशुओं में ऐसी कोई भी संकेत दिखने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें. अगर उन्हें पथरी है तो उनका इलाज कराएं.
सर्दी के दिनों में किसानों और पशुपालकों को गाय-भैंस के स्वास्थ्य को लेकर काफी सतर्क रहने की जरूरत है. इन दिनों पशुओं में ठंड के कारण दूध उत्पादन कम होने की समस्या आ जाती है. ऐसे में उनके रखरखाव और खानपान से जुड़ी बातों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी होता है.
पशुपालक सर्दी में गाय-भैंस को सिर्फ हरा चारा न खिलाएं. उनकी खुराक में गेहूं की भूसी या पुआल भी शामिल करें. हरे चारे में 90 प्रतिशत पानी मौजूद होता है. जिससे पशु के शरीर का तापमान कम हो जाता है. गाय की तुलना में भैसों में सर्दी में बीमार पड़ने का खतरा ज्यादा रहता है.
इसके अलावा पशुओं को गर्म रखने के लिए पशुओं को सरसों की खली भी दें, इससे उनकी शरीर में गर्मी बनी रहती है. पशुओं के शेड फर्श को सूखा रखें, ताकि पशुओं ठंड न लगे. फर्श गीला होने पर गोबर हटाने के बाद मूत्र को सूखी राख से सुखाएं और पुआल की मोटी बिछावन का इस्तेमाल करें.