जामुन एक प्रकार का फल होता है जो पेड़ में उगता है. भारत में इसे भारत ब्लैक बेरी के नाम से जाना जाता है. भारत में इसकी जंगली प्रजातियां भी पायी जाती है. भारत में इसकी खेती की जाती है क्योंकि भारत की जलवायु इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती के लिए अधिकतम तामपान 35-38 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है. जबकि इसका फलन औऱ फूलन न्यूनतम तापमान 2 -18 डिग्री के बीच में होता है. बगानों के किनारे में जामुन के पेड़ लगाए जाते हैं क्योंकि यह हवाओं को रोकने का काम करते हैं. नदियों के किनारे रेतीली मिट्टी और नम मिट्टी के उपर भी इसे लगाया जाता है. इसके जड़ जमीन को अच्छे से पकड़ कर रखते हैं जमीन के कटाव को रोकते हैं.
जामुन के पेड़ में फूल आने और फल आने के दौरान मौसम सूखा होना चाहिए. हालांकि फलों के पकने के समय बारिश की जरूरत पड़ती है. इससे फलों का उत्पादन अच्छा होता है. उसके फूल सुंगधित होते हैं और हरे और सफेद रंग के गुच्छे में होते हैं. जामुन का फल, बीज और सिरका शुगर मरीजों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है. डॉक्टर भी शुगर मरीजों को इसके सेवन की सलाह देते हैं. जामुन शुगर मरीजों को इंसुलिन की आवश्यकता की पूर्ति करता है. जामुन का फल गर्मी के मौसम में पकता है. इसके फल में 50-60 प्रतिशत रस होता है.
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जामुन का पौधा ऐसा पौधा है जिसकी बढ़वार तेजी से होती है. इसलिए अगर बेहतर तरीके से इसकी देखभाल की जाए तो पांच से छह साल में इसका पौधा पेड़ बनकर फल देने लगता है. छह वर्ष पूरा होने के बाद एक पेड़ से 30 किलोग्राम तक उपज हासिल किया जा सकता है. इसलिए पौधे को पर्याप्त मात्रा में खाद और पानी देना चाहिए सामान्यत छह वर्षों के बाद जामुन के पौधे के चारों तरफ गड्ढा बनाकर उसमें 20 किलोग्राम गोबर खाद, 500 ग्राम नीम की खली, 50 ग्राम यूरिया. 25 ग्राम सिंगल सूपर फॉस्फेट और 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश दिया जाता है. जनवरी के महीने में फूल आने से पहले ही पेड़ों के किनारे खाद डाल देना चाहिए.
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जामुन के पेड़ों में गर्मी के मौसम में फूल आते हैं और बाद में ये पक जाते हैं. गर्मी के मौसम में तने को सूर्य की तेज धूप से बचाने के लिए इसकी पुताई की जाती है. पेड़ों में पुताई करने के लिए एक भाग बुझा हुआ चूना, एक भाग नीला थोथा और 20 लीटर पानी का उपयोग किया जाता है. पुताई का घोल बनाने के लिए एक किलो चूने को 10 लीटर पानी में मिलाएं, साथ की एक किलो नीला थोथा को 10 लीटर पानी में अलग से मिलाएं. दोनों को अलग अलग मिलाकर रख दें , फिर दूसरे दिन दोनों को मिलाकर पुताई के लिए घोल तैयार करें. फिर पुताई ब्रश से 2 फीट ऊंचाई तक पुताई करें. ऐसा करने से तना गर्मी से झुलसने और छाल खाने वाले कीट के प्रकोप से भी बच जाता है.