सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी से कहा है कि सेक्टर 82 में जिन किसानों से जमीन ली गई थी, उन्हें पूरा मुआवजा दिया जाए. जमीन अधिग्रहण का यह मामला 30 साल पुराना है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी को आदेश दिया है. 10,420 वर्ग मीटर जमीन किसानों से ली गई थी जिसके लिए 6 करोड़ रुपये मुआवजा देने का निर्दश दिया गया है. अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया को पूरा किए बिना जमीन ली गई थी और पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में इस्तेमाल किया गया था.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा अथॉरिटी ने किसानों को आंशिक मुआवजा देने की गुहार लगाई थी जिसे अदालत ने मना कर दिया. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीन के मालिकाना हक का वेरिफिकेशन दो हफ्ते में पूरा किया जाना चाहिए और उसके छह हफ्ते के अंदर किसानों को मुआवजा दिया जाना चाहिए.
1989-90 के बीच, नोएडा अथॉरिटी ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत जारी अधिसूचनाओं के माध्यम से बस टर्मिनल और सड़कों सहित पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू की. इस अधिग्रहण को एक किसान मनोरमा के पति जेबी कुच्छल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. अभियोजन की कमी के कारण 1997 में शुरू में खारिज कर दी गई याचिका 2007 में फिर लाई गई. 19 दिसंबर, 2016 को, हाई कोर्ट ने कुच्छल परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया और 1989-90 के अधिग्रहण की अधिसूचना को रद्द कर दिया.
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इसके बाद कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि या तो वह भूमि अधिग्रहण अधिनियम में उचित मुआवजा के अनुसार तीन महीने के भीतर जमीन के बाजार मूल्य से दोगुना दाम दे. या उस जमीन पर बनाए गए सभी निर्माणों को हटाकर जमीन लौटा दी जाए. इस आदेश के लागू नहीं किए जाने पर किसान परिवार ने 2017 में नोएडा अथॉरिटी के खिलाफ अवमानना की अर्जी दाखिल की. इसमें कहा गया कि अथॉरिटी ने मुआवजा देने योग्य जमीन के रकबे को घटा दिया गया है. इसमें दावा किया गया कि अथॉरिटी ने उचित मुआवजा दिए बिना उनकी जमीन पर बस टर्मिनल बना दिया.
21 जुलाई, 2023 को, हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को खारिज कर दिया, यह फैसला सुनाते हुए कि अथॉरिटी ने 2016 के आदेश का अनुपालन किया है, जिसमें इस्तेमाल की गई 2,520 वर्ग मीटर भूमि के लिए मुआवजा देने की पेशकश की गई है और खाली 6,116 वर्ग मीटर भूमि को वापस करने का प्रस्ताव दिया गया है. हाईकोर्ट के आदेश से पहले, मनोरमा की मृत्यु हो गई, और मामले को उनके बेटे सुनील ने आगे बढ़ाया. हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट, सुनील ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसमें तर्क दिया गया कि नोएडा अथॉरिटी ने 2016 के फैसले की गलत जानकारी दी है, जिसमें पूरी जमीन के लिए मुआवजा देने या उसकी पूरी वापसी का आदेश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने 30 अप्रैल, 2025 के आदेश में पाया कि नोएडा अथॉरिटी ने जानबूझकर कोई अवहेलना नहीं की है.
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'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, अदालत ने नोएडा अथॉरिटी और जिला प्रशासन को सेल डीड मिलने के दो सप्ताह के भीतर कुल भूमि क्षेत्र का वेरिफिकेशन करने और 2023 समिति की ओर से तय 5,280 रुपये प्रति वर्ग मीटर-2,640 रुपये आधार दर और 100% क्षतिपूर्ति के हिसाब से मुआवजा देने का निर्देश दिया.