भारत में गरीबी और आर्थिक तंगी के चलते बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्या करते हैं. वहीं, देश में हर साल सैकड़ों किसान खेती करने के लिए कर्ज लेकर न चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं, जिसमें महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मामला है. इसी बीच महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में किसानों की आत्महत्या की खतरनाक दर को स्वीकार किया है. पिछले 56 महीनों में प्रतिदिन औसतन आठ किसान आत्महत्या कर रहे हैं.
यह चौंकाने वाला खुलासा चल रहे बजट सत्र में किसानों की आत्महत्या पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया. इस आंकड़े ने महाराष्ट्र में किसानों की दुर्दशा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. इसी में एक घटना किसान केशव थोराट की है. कर्ज और घाटे ने किसान केशव थोराट की जान ले ली. 24 दिसंबर 2024 को अकोला जिले के चिखल गांव के 50 वर्षीय किसान केशव यशवंत थोराट ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली.
उन्होंने खेती के लिए बैंक से 30,000 रुपये का कर्ज लिया था, जो समय के साथ बढ़ता रहा. अगले साल उन्होंने फिर एक बार 13,000 रुपये और उधार लिए, लेकिन वे इस बोझ को चुका नहीं पाए. कर्ज से मुक्ति की नई उम्मीद के साथ उन्होंने ट्रैक्टर खरीदा, लेकिन खराब मौसम और फसल की गिरती कीमतों ने उन्हें और भी कर्ज में डुबो दिया. जब कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने आत्महत्या कर ली.
ये भी पढ़ें:-खेती की आड़ में इनकम टैक्स चोरी करने वाले सावधान! अब सेटेलाइट खोल रहा पोल
उनकी बेटी जानवी जो 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं, उन्होंने आंसू भरे स्वर में कहा कि वो अपने पिता पर किसान होने के कारण गर्व करती थीं. लेकिन अब यह गर्व डर में बदल गया है. सरकार को किसानों की फसलों के लिए उनकी लागत से अधिक कीमत तय करनी चाहिए, ताकि किसी और बेटी को अपने पिता को न खोना पड़े.
राहत और पुनर्वास मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि छत्रपति संभाजी नगर और अमरावती संभागों सहित कुछ क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या अनुपातहीन रूप से अधिक है. पिछले वर्ष, इन संभागों में क्रमशः 952 और 1,069 किसानों की आत्महत्या की सूचना दी गई थी.
किसानों के आत्महत्या वाले मामले पर किसान संगठन के नेता विलास ताथोड़ ने कहा कि सरकार कर्जमाफी की बात करती है, लेकिन बजट में किसानों को कोई राहत नहीं दी गई है, जो फसल किसान 2010 में बेचते थे आज भी किसानों को वहीं कीमतें मिलती हैं, लेकिन उत्पादन लागत तीन गुनी हो गई है. ऐसे में किसान अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे कर सकते हैं. (रित्विक भालेकर की रिपोर्ट)