ड्रोन सर्वे से लेकर सैटेलाइट इमेज तक, ऐसे जिंदा हुई कानपुर की 48 किमी लंबी नून नदी

ड्रोन सर्वे से लेकर सैटेलाइट इमेज तक, ऐसे जिंदा हुई कानपुर की 48 किमी लंबी नून नदी

कानपुर की नून नदी का अस्तित्व करीब-करीब खत्म हो गया था. इसके किनारे पर अतिक्रमण इतना बढ़ गया था कि नदी ही विलुप्त हो गई. लेकिन इसे नया जीवनदान मिला है और लोगों ने मिलकर इस नदी को फिर से जिंदा कर दिया है. इसमें ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी तकनीक के अलावा मनरेगा योजना से बड़ी मदद मिली है.

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क‍िसान तक
  • Kanpur,
  • Jul 30, 2025,
  • Updated Jul 30, 2025, 5:57 PM IST

उत्तर प्रदेश के कानपुर में कभी इतिहास का हिस्सा बन चुकी नून नदी आज फिर से जीवनदायिनी बन चुकी है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की "एक जिला-एक नदी" पहल के तहत कानपुर जिले की इस भूली-बिसरी नदी को फिर से जीवंत कर दिया गया है. नून नदी, जो कभी बिल्हौर, शिवराजपुर और चौबेपुर के खेतों की सिंचाई करती थी, अतिक्रमण, गाद और जलकुंभी के कारण पूरी तरह सूख चुकी थी. फरवरी 2025 से शुरू हुए पुनर्जीवन अभियान के तहत इसे दोबारा उसकी पहचान मिली है.

कैसे शुरू हुआ पुनर्जीवन अभियान

ड्रोन सर्वेक्षण, सैटेलाइट इमेजरी, राजस्व अभिलेख और ग्रामीणों की स्मृतियों की मदद से 48 किलोमीटर लंबी नदी के पुराने मार्ग की पहचान की गई. मुख्य विकास अधिकारी दीक्षा जैन और जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में यह काम सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि जनसहभागिता अभियान में बदल गया. सीडीओ दीक्षा जैन के अनुसार, 58 ग्राम पंचायतों के सहयोग से लगभग 6,000 श्रमिकों ने नदी की सफाई और खुदाई का काम किया. करीब 23 किलोमीटर में यह काम मनरेगा के अंतर्गत हुआ, जिस पर 57 लाख रुपये का खर्च आया.

गंदे पानी पर लगाई रोक, समाज बना सहभागी

नदी में गंदा पानी छोड़ने वाली कई फैक्ट्रियों को नोटिस देकर बंद कराया गया. साथ ही स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी ने इस परियोजना को जन आंदोलन का रूप दे दिया. अब कन्हैया ताल के पास की वीरानगी गायब हो चुकी है. उसकी जगह अब जलधारा की कलकल, बच्चों की खिलखिलाहट और ग्रामीणों की सुबह-शाम की चहल-पहल नजर आती है.

हरियाली का भी हुआ विस्तार

मुख्यमंत्री के निर्देश पर जुलाई के पहले सप्ताह में नदी किनारे नीम, पीपल, पाकड़ और सहजन जैसे 40,000 से अधिक पौधे रोपे गए. इससे न केवल हरियाली बढ़ेगी बल्कि मिट्टी का कटाव भी रुकेगा.

जनप्रतिनिधियों और स्थानीयों की भूमिका अहम

इस परियोजना में स्थानीय बुजुर्गों ने नदी के पुराने रास्ते की जानकारी देकर महत्वपूर्ण योगदान दिया. फरवरी में जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में पुनर्जीवन काम की शुरुआत की गई और अब यह नदी न केवल फिर से बह रही है, बल्कि एक उदाहरण बन गई है कि यदि समाज और सरकार साथ मिलकर प्रयास करें, तो खोई हुई नदियों को भी नया जीवन मिल सकता है.

कानपुर जिलाधिकारी जितेंद्र सिंह का कहना है, ग्राउंडवाटर पर ज्यादा निर्भर न रहकर सरफेस वाटर का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है जो इस पूरी योजना में किया गया है. इस तरीके के प्रोजेक्ट से पूरी बायोडायवर्सिटी और एक ईकोसिस्टम तैयार होता है. इस प्रोजेक्ट में समाज के सभी वर्गों ने आकर योगदान दिया जिसके चलते यह मुमकिन हो पाया.(सिमर चावला का इनपुट)

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