रांची में रिम्स-2 परियोजना का किसानों ने किया विरोध, धरनास्थल पर हल-बैल लेकर पहुंचे

रांची में रिम्स-2 परियोजना का किसानों ने किया विरोध, धरनास्थल पर हल-बैल लेकर पहुंचे

रांची में रिम्स-2  से उठी विरोध की चिंगारी ने इलाके को अपनी चपेट में ले लिया है, क्योंकि रिम्स-2 (RIMS-2) सुपर स्पेशलिटी अस्पताल परियोजना का विरोध अब जोर पकड़ते जा रहा है. रविवार को स्थानीय ग्रामीणों और किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किया.

रिम्स-2 परियोजना का किसानों ने किया विरोधरिम्स-2 परियोजना का किसानों ने किया विरोध
सत्यजीत कुमार
  • Ranchi,
  • Aug 25, 2025,
  • Updated Aug 25, 2025, 4:35 PM IST

झारखंड की राजधानी रांची में प्रस्तावित रिम्स-2 (RIMS-2) सुपर स्पेशलिटी अस्पताल परियोजना का विरोध अब जोर पकड़ते जा रहा है. रविवार को स्थानीय ग्रामीणों और किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किया. यह प्रदर्शन उस समय उग्र हो गया जब ग्रामीणों ने निर्माण स्थल की ओर मार्च करने की कोशिश की. हालात को काबू में करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़कर भीड़ को खदेड़ा. बता दें कि जब से रिम्स-2 के निर्माण के लिए जमीन को चुना गया है, तब से ही पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सहित कई नेताओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था.

रविवार को ही चंपई सोरेन वहां हल जोतने वाले थे, उससे पहले मोरहाबादी स्थित उनके सरकारी आवास में हाउस अरेस्ट कर लिया गया. साथ ही उनके बेटे बाबूलाल सोरेन को नगड़ी जाते समय तमाड़ में पुलिस ने रोक लिया. उन्हें डिटेन कर पास के थाने ले जाया गया.

सरकार के खिलाफ किया नारेबाजी

रिम्स-2  से उठी विरोध की चिंगारी ने इलाके को अपनी चपेट में ले लिया है. कांके-पिठोरिया रोड को सरना चौक के पास हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने जाम किया. लोग परंपरागत हरवे हथियार लिए नजर आए और सीएम हेमंत सोरेन के साथ स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. ग्रामीणों ने गुरुजी शिबू सोरेन के दिए गए नारे "हरवा तो जोतो न यार" को आंदोलन का आधार बनाया. आक्रोशित ग्रामीणों की मांग है कि जिन लोगों को आज हिरासत में लिया गया, उन्हें बिना शर्त छोड़ा जाए.

सरकार पर जमकर बरसे चंपई सोरेन

हालांकि, शाम को पूर्व सीएम चंपई सोरेन ने रिम्स पार्ट-2 के लिए निर्धारित जगह पर हल जोता ये कार्यक्रम बेहद सफल रहा.  चंपई सोरेन ने कहा कि सरकार को जनांदोलन का ताकत पता चल गया होगा. हालांकि, अभी ये शुरुआत है. पूरे राज्य में जहां-जहां आदिवासियों के जमीन पर जबरन कब्जा करने की कोशिश की गई है वहां भी इस तरह के आंदोलन होंगे.

सरकार के तानाशाही रवैये के तहत चंपई सोरेन ने कहा कि उन्हें सुबह 7 बजे ही हाउस अरेस्ट कर लिया गया था, तब उन्हें शक हुआ था कि कहीं कृषि योग्य जमीन जो आदिवासियों की है उनका आंदोलन रिम्स पार्ट-2 के खिलाफ कमजोर पड़ सकता है,  लेकिन एकजुट होकर यहां के आदिवासियों और मूलवासियों ने सरकार को अपनी ताकत का एहसास दिल दिया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि जब कभी भी आदिवासियों की जमीन छीनने का प्रयास होगा, हर जगह चंपई सोरेन खड़ा मिलेगा.

किसानों ने धरनास्थल चलाया हल 

इस कार्यक्रम को रोकने के लिए सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी. रांची और आसपास के सभी जिलों में पुलिस ने अनगिनत जगहों पर चेकपोस्ट बना कर, आंदोलन के लिए आ रहे लोगों को रोका. सरायकेला खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, चाईबासा, गुमला, रामगढ़, हजारीबाग, पतरातू, बुंडू, तमाड़ समेत अलग-अलग जगहों पर चेकपोस्ट बना कर पुलिस ने सैकड़ों गाड़ियों में आ रहे हजारों चंपई समर्थकों को रोक दिया था.

बता दें कि तय कार्यक्रम के तहत दोपहर तक हजारों की संख्या के किसान खेतों में उतरे और हल चलाना शुरू कर दिया. पुलिस ने पहले लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले भी चलाए, लेकिन आंदोलनकारी नहीं रुके. उसके बाद किसानों ने अपनी जमीन में बकायदा रोपनी शुरू कर दिया.

चंपई ने सरकार को आदिवासी विरोधी बताया

देर शाम में चंपई सोरेन ने अपने आवास पर एक प्रेस कांफ्रेंस कर राज्य सरकार को आदिवासी विरोधी करार दिया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार नगड़ी के किसानों की उपजाऊ जमीन को जबरन छीनना चाहती है. उन्होंने कहा कि अगर 1957 में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के लिए जब यह भूमि अधिग्रहित करने की कोशिश की गई थी, तब रैयतों ने उसका तगड़ा विरोध किया था.

उन्होंने बताया कि इस भूमि अधिग्रहण से प्रभावित 153 पंचाटियों में से 128 ने अधिग्रहण का विरोध करते हुए भुगतान लेने से इंकार कर दिया था, तो फिर यह अधिग्रहण पूरा कैसे हुआ? वैसे भी, जब यह अधिग्रहण रिम्स-2 के नाम पर हुआ ही नहीं, तो फिर सरकार सीएनटी और भूमि अधिग्रहण अधिनियम का उल्लंघन क्यों कर रही है?

'आंदोलन के लिए किसानों को धन्यवाद'

उन्होंने कहा कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने अपने पत्र में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि "विश्वविद्यालय उक्त भूमि को अधिगृहित ही नहीं कर पाई है. इसी वजह से उस भूमि पर कभी घेराबंदी तक नहीं की गई, लेकिन इस सरकार ने कई दशकों बाद, उसे हथियाने का षड्यंत्र रचा है.उन्होंने इस आंदोलन की ऐतिहासिक सफलता के लिए इस से जुड़े सभी आदिवासी संगठनों, सामाजिक संस्थाओं, किसानों समेत आदिवासी, मूलवासी समाज के लोगों को धन्यवाद दिया. 

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