जलवायु परिवर्तन भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए एक बड़ी समस्या है. इससे देश की कृषि प्रभावित हो रही है. इसलिए अगर जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसम संबंधी अनिश्चितताओं से निपटना है तो देश में हमे कुल सिंचित क्षेत्र को बढ़ाकर 75 फीसदी तक ले जाना होगा. जो फिलहाल कुल फसल क्षेत्र का आधा हिस्सा है. मौजूदा दौर में यह इसलिए भी जरूरी हो गया है कि इस वर्ष जब विश्व खाद्य दिवस मनाया गया तो उसका थीम रखा गया जल ही जीवन है, जल ही भोजन है. 1945 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एंव कृषि संगठन की स्थापना दिवस के तौर पर 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है.
भारत आज खाद्य सुरक्षा हासिल करने में आगे निकल चुका है. ऐसे में इस समय इस चीज की समीक्षा की जानी चाहिए कि देश कृषि क्षेत्र में अपने जल संसाधनों का उपयोग कैसे कर रहा है. दरअसल खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए भारत ने एक लंबी यात्रा तय की है. 1960 के दशक से लेकर आज तक खाद्य उत्पादन के मामले में भारत से सुनहरा सफर तय किया है. इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन वर्षों 2020-21 से लेकर 2022-23 तक भारत ने 85 मिलियन टन अनाज का निर्यात किया है. जिसमें प्रमुख तौर पर चावल गेहूं और मक्का शामिल है. देश से इतने अधिक मात्रा में अनाज का निर्यात उत वक्त हुआ जब एक तरफ देश में पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत 800 मिलियन अधिक लोगों को मुफ्त में चावल या गेहूं दी गई. यह भारत के लिए अविश्वसनीय उपलब्धि है.
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वहीं अगर डेयरी क्षेत्र की बात करें तो दूध उत्पादन के क्षेत्र में भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. 1952 में जहां भारत भारत में कुल दूध का उत्पादन 17 मीट्रिक टन था, वह आज 2022-23 में बढ़कर 222 मीट्रिक टन हो गया है. जो विश्व के अग्रणी दूध उत्पादकों में से एक है. मुर्गी पालन और मत्स्यपालन के क्षेत्र में भारत ने उपलब्धि हासिल की है. वर्ष 2000-01 से देश मुर्गीपालन औक मत्स्यपालन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है. हरित क्रांति की सफलता के बाद श्वेत क्रांति फिर नीली क्रांति और अब मुर्गा पालन को बढ़ावा देने के लिए गुलाबी क्रांति की शुरुआत की गई है.
हरित क्रांति के बाद खाद्य सुरक्षा हासिल करने के बाद पोषण सुरक्षा हासिल करना अब भी देश के लिए एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि आज भी देश की एक बड़ी आबादी तक पर्याप्त पोषण नहीं पहुंचता है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक आज भी देश की 16.6 फीसदी आबादी कुपोषित है. इनमें पांच साल से कम उम्र के 35 प्रतिशत बच्चों का सही से विकास नहीं हुआ है. जबकि 32 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है. वर्तमान में जो स्थिति है इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2030 तक भारत जीरो हंगर के अपने सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा.
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भारत ने कृषि के अलावा डेयरी, मत्स्यपालन और पशुपालने के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत कृषि के लिए अपने जल संसाधनो का प्रयोग किस प्रकार कर रहा है. क्योंकि भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है जबकि इसके पास मीठे पानी के संसाधन मात्र 4 प्रतिशत है. इसका अधिकांश पानी कृषि के लिए उपयोग किया जाता है. खाद्य एवं कृषि संगठन की माने तो भारत अपने पास उपलब्ध मीठे पानी के संसाधनों का 90 फीसदी कृषि कार्य के लिए खर्च करता है जबकि भारतीय केंद्रीय जल आयोग का कहना है कि यह 78 फीसदी है. हालांकि अब बढ़ती जनसंख्या और कम होते वर्षापात के बीच पानी बचाने को लेकर गंभीर पहल करनी होगी.
इन सब परेशानियों को देखते हुए भारत को ठोस रणनिती तैयार करने की जरूरत है. भारत को अपने जलाशयों में मानसून के मौसम के दौरान पानी के बफर स्टॉकिंग का विस्तार करना होगा. चेक डैम और वाटरशेड आदि के माध्यम से भूजल को रिचार्ज करना होगा. साथ ही फसलों पर पानी के आवंटन को बारे में विचार करना होगा. इसके अलावा सिंचाई के लिए पानी और बिजली के मूल्य निर्धारण में भी संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है.
पानी को कृषि के केंद्र में रखते हुए नीतियों, कृषि पद्धतियों और उत्पादों में सुधार करने की जरूरत है. इसके तहत कम पानी वाली फसलों का चयन करने वाले किसानों को पुरस्कृत किया जाना शामिल है ताकि अधिक से अधिक किसान इसे अपना सके. ग्रीन वॉटर क्रेडिट इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इससे सभी फसलों के लिए समान अवसर तैयार होंगे और यह पर्यावरण के साथ-साथ पोषण के लिए भी अच्छा होगा. इस तरह से पंजाब जैसे राज्य को को जल आपदा से बचाया जा सकता है क्योंकि इसके लगभग 78 प्रतिशत ब्लॉक भूजल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं.
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कृषि सिंचाई की आधुनिक तकनीक जैसे ड्रिप इरिगेशन औऱ स्प्रिंक्लर विधि को अपनाना होगा इससे पानी की बचत होगी. किसानों को डीएसआर विधी से धान की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. ताकि धान की खेती में पानी को बचाया जा सके. क्योंकि एक पहलू यह भी है कि देश में पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जाएगा, तब तक स्थायी खाद्य सुरक्षा हासिल करना मुश्किल है.