चावल की खेती में मीथेन गैस कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी होगी लॉन्च, इन कंपनियों ने शुरू की तैयारी

चावल की खेती में मीथेन गैस कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी होगी लॉन्च, इन कंपनियों ने शुरू की तैयारी

धान की खेती वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में लगभग 10% के लिए ज़िम्मेदार है. एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 27 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है. चावल के खेत वैश्विक कृषि क्षेत्र के 15% हिस्से पर कब्जा करते हैं, जो दुनिया भर में 150 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है.

धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की हो रही कोशिशधान की खेती में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की हो रही कोशिश
प्राची वत्स
  • Noida,
  • Aug 08, 2023,
  • Updated Aug 08, 2023, 10:04 PM IST

वातावरण में मौजूद कार्बन जो कि बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण है, उसको कम करने और नेट जीरो लाने का प्रयास लगभग सभी बड़े-बड़े देशों कि ओर से किया जा रहा है. देश इस दिशा में काम करने के लिए रननीतियां भी तैयार करने लगी है. इसी क्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2070 तक नेट जीरो का वादा किया है. ये भी सच है कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत तेजी से कदम बढ़ा रहा है. इसी कड़ी में एक और खबर सामने आई है जहा कृषि और स्वास्थ्य सेवा के जीवन विज्ञान क्षेत्रों में काम कर रही कंपनी बयार ने जेनजेरो के सहयोग से टेमासेक की कंपनी जो पहले से डीकार्बोनाइजेशन को लेकर विश्व स्तर पर काम कर रही है उसके साथ हाथ मिलाया है.

इस कंपनी का मुख्य उद्देश चावल की खेती के दौरान जो मीथेन का उत्सर्जन होता है उसको कम करना है. इस काम के लिए एक मजबूत मॉडल विकसित की जरूरत है. इस जरूरत को समझते हुए बायर ने मजबूत मॉडल विकसित करने की घोषणा की है.

नई तकनीक की मदद से काम होगा

कंपनी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक रिमोट सेंसिंग तकनीक को शामिल करते हुए मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन (एमआरवी) तकनीक का उपयोग करते हुए छोटे किसानों के लिए प्रशिक्षण, समर्थन और मार्गदर्शन शामिल होगा. इस परियोजना का लक्ष्य चावल डीकार्बोनाइजेशन क्षेत्र में इसी तरह के प्रयासों के लिए एक बेंचमार्क स्थापित करना है.

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मीथेन उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देने का काम कर रही कंपनी

धान की खेती वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में लगभग 10% के लिए ज़िम्मेदार है. एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 27 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है. चावल के खेत वैश्विक कृषि क्षेत्र के 15% हिस्से पर कब्जा करते हैं, जो दुनिया भर में 150 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है. यह पूरे विश्व के ताजे पानी का लगभग एक-तिहाई उपभोग करता है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए, चावल की खेती में मीथेन उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण और सतत प्रयास की आवश्यकता है.

चलाई जा रही पायलट सतत चावल परियोजना

प्रदूषण से होने वाली समस्या को समझते हुए बायर ने पहले ही जमीनी कार्य को पूरा कर लिया है. आपको बता दें बायर की ओर से पूरे भारत में एक पायलट सतत चावल परियोजना शुरू की है. इसकी शुरुआत धान की खेती कर रहे किसानों को लगातार बाढ़ वाले खेतों में रोपाई की वर्तमान प्रथा को छोड़कर वैकल्पिक उपाय के साथ हाइब्रिड बीज का चयन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. यह कार्बन कटौती उत्पन्न करने के उद्देश्य से की गई, जिसमें कोई रोपाई कार्य भी शामिल नहीं है.

2023-24 में चावल की खेती को बढ़ाने की है योजना

इस सहयोग के साथ, अपने पहले वर्ष में कार्यक्रम का लक्ष्य खरीफ 2023 और रबी 2023-24 सीज़न के दौरान चावल की खेती को 25,000 हेक्टेयर तक बढ़ाना है. इस पहले वर्ष के दौरान प्राप्त कोई भी सफलता और भी बड़े पैमाने पर टिकाऊ चावल परियोजना के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त करेगी. ग्रीनहाउस गैस में कटौती के अलावा, कार्यक्रम से पानी की बचत, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और छोटे चावल किसानों के लिए सामुदायिक आजीविका में वृद्धि जैसे अन्य लाभ उत्पन्न होने की उम्मीद है.


 

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