
मराठवाड़ा में इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 899 किसानों ने आत्महत्या की है. यह जानकारी छत्रपति संभाजीनगर संभागीय आयुक्त कार्यालय के आधिकारिक आंकड़ों से सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से 537 आत्महत्याएं उन छह महीनों में हुईं जब भारी बारिश और बाढ़ ने फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचाया. वहीं, सबसे ज्यादा मामले बीड और छत्रपति संभाजीनगर जिलों में दर्ज हुए. मई से अक्टूबर के छह महीनों में संभाजीनगर में 112, बीड में 108, नांदेड़ में 90, धाराशिव में 70, लातूर में 47, परभणी में 45, हिंगोली में 33 और जालना में 32 किसानों ने जान दी.
रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार खराब मौसम ने खेती को नुकसान पहुंचाया, जिससे किसान आर्थिक संकट में फंस गए. वहीं, भारी बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने भी काफी नुकसान किया, जिससे क्षेत्र में सितंबर 20 तक के रिकॉर्ड के अनुसार 12 लोगों की मौत हुई और लगभग 1300 मकान क्षतिग्रस्त हुए और 357 पशुओं की मौत हुई. इससे किसानों की दिक्कतें और बढ़ गईं.
राज्य सरकार ने मराठवाड़ा सहित राज्य के प्रभावित किसानों के लिए 32 हजार करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया है. कृषि राज्य मंत्री आशीष जायसवाल का कहना है कि सरकार किसानों के लिए योजनाओं और प्रोत्साहनों पर कुल एक लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है और भविष्य में सीधे आर्थिक मदद और भी बढ़ाई जाएगी.
उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए लंबी अवधि की तैयारी जरूरी है. उन्होंने कहा कि नियंत्रित खेती और फसल पैटर्न में बदलाव जैसे कदम किसानों की आय सुरक्षित करने में मदद कर सकते हैं. सरकार ने यह भी बताया कि भविष्य में जब कर्जमाफी लागू की जाएगी तो उसका लाभ सही लोगों तक पहुंचाने के लिए एक समिति बनाई गई है.
किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि अनियमित बारिश, बाढ़ और लंबे मॉनसून ने किसानों की फसलें बर्बाद कर दीं और इससे उनका मनोबल टूट गया. उन्होंने आरोप लगाया कि किसानों को बहुत कम मुआवजा मिलता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक केला उत्पादक किसान की 100 टन फसल की कीमत लगभग 25 लाख रुपये थी, लेकिन पूरी फसल बाढ़ में बह जाने के बाद उसे केवल 25 हजार रुपये मिले.
इस बीच, किसानों को परामर्श देने वाले संगठन शिवर हेल्पलाइन के संस्थापक विनायक हेगाना ने सुझाव दिया है कि सरकार को मराठवाड़ा के लिए एक अलग और मजबूत आपदा प्रबंधन व्यवस्था बनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बार-बार आ रही आपदाओं को देखते हुए ऐसे ढांचे की जरूरत है, जो स्थानीय स्तर पर तुरंत कार्रवाई कर सके. (पीटीआई)