PHOTOS: तस्वीरों में देखें पानी के लिए धौलपुर के गांवों के ग्रामीणों का संघर्ष

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PHOTOS: तस्वीरों में देखें पानी के लिए धौलपुर के गांवों के ग्रामीणों का संघर्ष

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भीषण गर्मी और आसमान से बरस रही आग के बीच अगर पीने के लिए पानी नहीं मिले या पीने के पानी के लिए धूप में पानी का बर्तन लेकर किलोमीटर तक चलना पड़े तो आप बेहतर समझ पाएंगे की पानी की कीमत और कमी क्या होती है. इस समय राजस्थान के धौलपुर जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर भुसैना गांव समेत अन्य गांवों के लोग इस चीज को बेहतर तरीके से समझ रहे हैं. 

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दरअसल इन इलाकों में लोग पानी की घोर किल्लत का सामना कर रहे हैं. यहां पर दर्जन भर ऐसे गांव हैं जहां पर पीने के पानी की समस्या है, उन्हें पानी देने का वादा सरकार से किया था पर आज तक वो वादा पूरा नहीं हुआ, नतीजतन ग्रामीण आज भी पीने के पानी के लिए तपती गर्मी के बीच संघर्ष कर रहे हैं. 
 

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इन गांवों की तस्वीर देखकर तो यही लगता है कि सरकार सभी लोगों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने के जो भी दावे करती है उन दावों और जमीनी हकीकत के बीच एक चौड़ी लाइन खिंची हुई है. क्योंकि तस्वीरें चौंकानेवाली हैं. घर की महिलाओं के लेकर पुरुष और बच्चे तक पानी के जुगाड़ में लगे रहते हैं. गर्मी का मौसम और इस बीच पानी की समस्या यहां के लिए कोई नहीं है. 

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लगभग पांच दशकों से यहां के लोग पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की  किल्लत से जूझ रहे हैं. आज तक की ग्राउंड रिपोर्ट की टीम के अनुसार जब वहां पहुंची और ग्रामीणों से बातचीत की, तब उन्हें मालूम चला की पानी की कमी के कारण लोग यहां पर दुर्गंध युक्त तालाब और  कुएं का पानी पीने के लिए मजबूर हैं. 
 

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धौलपुर जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर भैंसेना,भैसाख,समोला समेत दर्जन भर गांव के लोगों को इस भीषण गर्मी में पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. भैसेना गांव के ग्रामीणों को पानी लाने के लिए गांव से कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है. यहां की भौगोलिक स्थिति देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कुछ किलोमीटर दूर से ही पानी लाना कितना मुश्किल भरा होता होगा. 

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ग्रामीण बताते हैं कि वो कई वर्षों से पानी के लिए लड़ रहे हैं. उन्होंने बताया की गांव के सभी जल के स्त्रोत तालाब और कुएं सूख चुके हैं. कुछ नहीं सूखें पर उनका पानी पीने लायक नहीं है, खारा पानी है. 

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ग्रामीण बताते हैं कि पानी की मांग को लेकर उन्होंने साल 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान विरोध प्रदर्शन भी किया था और मतदान का बहिष्कार किया था. हालांकि उस वक्त प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं के आश्वासन के बाद ग्रामीण मान गए थे और उन्होंने वोट किया था. आश्वासन के बाद ग्रामीण तो मान गए पर सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया. आज भी यहां की तस्वीर वहीं हैं लोगों की परेशानी भी वही है. 

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केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजन इस गांव तक नहीं पहुंची है. गांव में अभी तक जलमीनार भी नहीं है जिससे ग्रामीणों के घरों तक स्वच्छ जलापूर्ति की जा सके. ग्राम पंचायत के सरपंच यादव सिंह बताते है कि  पानी की टंकी के लिए अधिकारियों से लेकर सांसद मनोज राजोरिया तक से गुहार भी लगा चुके हैं.लेकिन किसी ने भी पानी की टंकी के लिए जहमत तक नहीं उठाई. ना ही जिला प्रशासन की तरफ से पानी के टैंकर की व्यवस्था की गई है. 

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बता दे कि यहां पर पास में ही बहने वाली चंबल नदीं से अन्य जिलों के गांवों तक पानी पहुंचाया जा रहा है, पर धौलपुर जिले की अनदेखी की जा रही है. दूसरे जिलों तक पानी पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है पर जिले के दर्जनों गांव ऐसे हैं जिन्हें चंबल का पानी भी नसीब नहीं हो पा रहा है. जिले के सरमथुरा उपखंड के डांग इलाके के रहनेवाले पानी के लिए सरकार की बाट जोह रहे हैं. 

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डांग इलाके में भी पानी की समस्या कोई नई नहीं है. आजादी के बाद से ही लोग यहां पर पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ग्रामीणों ने बताया कि गर्मी के मौसम में हालात सबसे ज्यादा ख़राब हो जाते हैं. हैडपंपों का पानी सूख जाता है और लोग खदानों में भरे हुए बरसाती पानी का उपयोग करते हैं. तालाबों का गंदा पानी लेने के लिए भी कई किलोमीटर दूर चलना पड़ता है. 

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गंदे पानी को घर लाकर कपड़े में छाना जाता है. पानी को गर्म कर पीने के लिए उपयोग किया जाता है. डांग क्षेत्र के लोगों का यही जीवन बन गया है. पानी के अभाव में अधिकांश मवेशी पालक पलायन कर जाते हैं. ग्रामीणों के पास आजीविका का साधन सिर्फ मवेशी होती है. दूध बेचकर आजीविका चलाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि मार्च के महीने में ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है.    

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मवेशी पालक पानी की वजह से मवेशियों को पालने के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां पलायन कर जाते हैं. सरमथुरा उपखंड क्षेत्र के गांव डोमपुरा, बहेरी का पुरा, भुडाकी, अहीर का पुरा, झल्लू की झोर, गौलारी, मदनपुर, बरुआरी, महुआ की झोर, कोटरा, बल्ला पुरा, खोटबाई आदि गांव के ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं. 
 

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