देश में मई के बाद से गेहूं और आटा की खुदरा कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसी कड़ी में पिछले कुछ दिनों से सरकार कीमतें कम करने की कोशिश कर रही है. घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के मुख्य उद्देश्य के साथ सरकार-से-सरकार यानी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट आधार पर आयात सहित विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जा रहा है. इसी में एक चौंकाने वाली खबर ये है कि देश का 400 लाख टन गेहूं कहां चला गया, इसकी कोई जानकारी नहीं मिल रही है. क्या गेहूं की यह खेप जमाखोर हजम कर गए, या मामला कुछ और है, इस पर सरकार विचार कर रही है.
कृषि मंत्रालय ने फसल वर्ष 2022-23 में गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 112.74 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया है. अप्रैल से बाजार में गेहूं आना शुरू हो गया और सरकार ने इस साल के उत्पादन का लगभग 26.2 मिलियन टन खरीदा. एक अधिकारी ने गेहूं की बढ़ती कीमतों के मुद्दे पर कहा कि जो स्टॉक गायब हो गया है, वो बाजार में कब आएगा ये कोई नहीं जानता. लेकिन सरकार गायब हुए 400 लाख टन गेहूं के बारे में पता लगा रही है.
एगमार्कनेट पोर्टल से पता चला है कि एक मार्च से जुलाई के बीच देश भर की विभिन्न मंडियों में 21 मिलियन टन गेहूं की आवक हुई. महंगाई को देखते हुए गेहूं और आटा की बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए सरकार के पास फिलहाल सीमित विकल्प है. इसके लिए सरकार आयात शुल्क को वर्तमान 44 प्रतिशत से कम कर सकती है. सूत्रों ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो सरकार विदेशों से और गेहूं खरीद सकती है.
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सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि वह सीधे आयात करना चाहती है तो गेहूं का निपटान कैसे किया जाएगा क्योंकि वर्तमान समय में केंद्रीय पूल में अनिवार्य बफर स्टॉक बनाए रखते हुए एक साल की जरूरतों को को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्टॉक है. अधिकारियों ने कहा कि खुले बाजार का कोटा दोगुना कर छह मिलियन टन किया जा सकता है, लेकिन वर्तमान मासिक बिक्री मात्रा लगभग 0.4 मिलियन टन है, जिसका मतलब है कि इस वित्तीय वर्ष की शेष अवधि (अगस्त-मार्च) के लिए 3.2 मिलियन टन गेहूं की जरूरत होगी.
सूत्रों ने कहा कि 12 जून को लगाए गए स्टॉक सीमा आदेश के बाद व्यापारियों, प्रोसेसरों और स्टॉकिस्टों को अधिकतम सीमा का अनुपालन करने के लिए एक महीने का समय दिया गया था. वहीं आटा की कीमतों में जून और जुलाई में पिछले महीने की 12 जुलाई के बाद बाजार में बढ़ोतरी नहीं हुई है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, गेहूं की कीमतें 31.32 किग्रा थी. व्यापार सूत्रों ने कहा कि एफसीआई की दो अगस्त की नीलामी में उच्चतम कीमत पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में 2,500 प्रति क्विंटल दर्ज की गई, जबकि मध्य प्रदेश में 2,430, गुजरात में 2,410, झारखंड में 2,405, ओडिशा में 2,400 और उत्तराखंड में 2,350 प्रति क्विंटल दर्ज की गई.