हम ऐसे युग में जी रहे हैं जिसमें सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं. टेक्नोलॉजी आज इतनी हावी है कि चुटकियों में तरह-तरह की सुविधाएं जहां मर्जी वहां ले सकते हैं. लेकिन क्या ये सुविधाएं हर जगह और हर एक आदमी को मयस्सर हैं? कतई नहीं. पेयजल एक ऐसी सुविधा है जो मूलभूत जरूरतों में आती है. मगर महाराष्ट्र का एक इलाका ऐसा भी है जहां लोग इससे पूरी तरह वंचित हैं. हालत ये है कि महाराष्ट्र के इस गांव में 2500 लोगों को नदी के गंदे और दूषित पानी से गुजारा करना पड़ता है. यह मुसीबत अकोला के लोगों की है. समस्या केवल यही नहीं है. कोई अपनी बेटी का ब्याह भी इस गांव के लड़के से नहीं करना चाहता. तो आइए इस गांव की त्रासदी के बारे में जानते हैं.
अकोला की ढाई हजार आबादी वाले इस गांव का नाम है कवठा. बालापुर तहसील में आने वाले इस इलाके में गांव का पानी समंदर से भी ज्यादा खारा है. स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब गांव वालों के लिए न कोई नल योजना है, न हीं कोई फिल्टर योजना. पिछले 35 साल से यहां पानी की समस्या चल रही है, मगर किसी शासन या प्रशासन ने हल नहीं निकाला. लोगों को यूं ही उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.
नतीजतन, यहां के लड़के कह रहे हैं कि उनकी शादी नहीं हो पा रही क्योंकि गांव में पानी की समस्या है. अगर किसी लड़की के माता-पिता शादी के लिए तैयार भी होते हैं, तो वे पहले लड़के वालों से लिखित में आश्वासन मांगते हैं. आश्वासन ये मांगा जाता है कि शादी के बाद लड़की गांव में नहीं रहेगी, और न ही पानी भरने के लिए नदी में जाएगी.
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यह सारा वाकया महाराष्ट्र के उस अकोला जिले का है जहां साल में बारहों महीने पानी की भारी किल्लत रहती है. गांव के बगल में मन नदी भी है जिस पर एक बैराज बना है. लेकिन गर्मी में इस बैराज का पानी भी सूख जाता है. ऐसे में लोगों को बैराज के आसपास गड्ढे खोदकर पानी निकालना पड़ता है. यह पानी गंदा होने के साथ दूषित भी रहता है. लेकिन प्यास बुझाने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं होता.
अकोला के कवठा गांव में लोग मजदूरी और खेती करते हैं. इस गांव में ग्राम पंचायत भी है, लेकिन वह भी पानी की समस्या दूर करने में असमर्थ है. प्रशासन के सामने नल जल योजना और आरओ प्लांट योजना की मांग रखी जाती है. लेकिन उसकी अनदेखी कर दी जाती है. ग्राम पंचायत सदस्य वैशाली का कहना है कि जल योजना के लिए प्रशासन को प्रस्ताव भेजा गया है, पर अभी तक उस पर कोई जवाब नहीं मिला है.
ग्राम पंचायत सदस्य वैशाली 'आजतक' से कहती हैं, प्रशासन को इस बारे में मीटिंग में कहा गया है. नल जल का प्रस्ताव दिया गया है, लेकिन अब तक उस पर कोई उचित कार्यवाही नहीं हुई है. आरओ प्लांट की मांग भी की गई है, पर अभी तक कुछ नहीं हो पाया है.
आज हालत ये है कि गांव के लोग मन नदी के किनारे गड्ढे कर पानी निकालते हैं और अपने गले की प्यास बुझाते हैं. अगर गड्ढे से पानी नहीं लेंगे तो उन्हें गांव के खारे पानी पर जिंदा रहना होगा. लोग इस खारे पानी से बचते हैं, इसलिए मन नदी के किनारे गड्ढे खोदकर मीठा पानी निकालते हैं जो कि गंदा और दूषित भी होता है.
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यहां के एक युवक राहुल चौहान ने कहा कि उसकी शादी अभी-अभी हुई है. लेकिन शादी इस कमिटमेंट के साथ हुई कि मैं गांव में नहीं रहूंगा. यह कमिटमेंट करने के बाद ही मुझे मेरे ससुर ने लड़की दी है. अगर यह वादा नहीं करते तो शादी नहीं होती. राहुल चौहान इंजीनियर हैं और पुणे में रहकर काम करते हैं. अपनी पत्नी को भी उन्होंने पुणे में ही रखा है.
इतना ही नहीं, स्कूली छात्रों को स्कूल जाने से पहले नहाने और सुबह के सभी काम के लिए नदी में बने गड्ढे से पानी ले जाना पड़ता है. उसके बाद ही स्कूल-कॉलेज जाने के बारे में सोचना पड़ता है. जिन बड़े बुजुर्ग से एक लीटर पानी भी नहीं उठाया जाता, उन्हें मजबूरी में एक किलोमीटर तक चलकर गड्ढे से एक-एक कटोरी पानी भरना पड़ता है.