अरहर को बर्बाद कर सकते हैं उकठा और बंझा रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये कारगर तरीका

अरहर को बर्बाद कर सकते हैं उकठा और बंझा रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये कारगर तरीका

अरहर की फसल को उकठा (फ्यूजेरियम विल्ट) और बंझा रोग (पॉड स्टरलिटी) से भारी नुकसान हो सकता है. ये रोग पौधों को सुखाने, फलियों के विकास को रोकने और उपज को गंभीर रूप से प्रभावित करने का कारण बनते हैं. ये रोग अरहर की फसल के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होते हैं, इसके कारण कभी कभी फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है.

. Karnataka Arhar Crop Affected. Karnataka Arhar Crop Affected
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jun 30, 2025,
  • Updated Jun 30, 2025, 10:16 PM IST

भारत में अरहर (तुअर) दाल की खेती और खपत बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन हाल के वर्षों में इसके उत्पादन में लगातार गिरावट देखी जा रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में 43 लाख टन उत्पादन से यह 2025 में 35 लाख टन तक गिर गया है. साथ ही, प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी 914 किलोग्राम से घटकर 823 किलोग्राम हो गई है. इस गिरावट का मुख्य कारण रोगों का प्रकोप है, जिनमें उकठा रोग विल्ट, बंझा रोग मुख्य हैं. ये रोग अरहर की फसल के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होते हैं. इसके कारण कभी कभी फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है .कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज, पश्चिम चंपारण, बिहार के हेड ने और पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ आर.पी.सिंह ने इन घातक रोगों से पहचान और रोकथाम के उपाय सुझाए हैं.

फसल को बर्बाद कर सकता है उकठा रोग

डॉ आर.पी सिंह ने बताया कि उकठा रोग अरहर की फसल को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाने वाले रोगों में से एक है. इसकी जड़ें सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं और छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने तक काले रंग की धारियां दिखाई देती हैं. शुरुआती लक्षणों में निचले पत्तों का पीला पड़ना शामिल है, जो धीरे-धीरे पूरे पौधे में फैल जाता है और अंततः पूरा पौधा सूख जाता है. कुछ मामलों में, अचानक सभी पत्ते हरे रहते हुए भी सूखे हुए दिखाई देते हैं. यह रोग फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है, जो पौधों में पानी और खाद्य पदार्थ के संचार को रोक देता है. बारिश के कारण खेत में अधिक पानी जमा होना और उसके बाद अचानक मिट्टी का सूखना इस रोग का मुख्य कारण होता है. 

जानिए बचाव का असरदार तरीका

उकठा रोग के रोकथाम में सबसे जरूरी है कि अरहर की बुआई के समय बीज का उपचार जरूर करें और जब बारिश कम हो, तब ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास के जैविक कवकनाशी मिश्रण को मिलाकर 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें. इस मिश्रण को अच्छी तरह से उपयोग करने के लिए गोबर खाद या वर्मीकंपोस्ट में मिलाकर अरहर के पौधों के पास समान रूप से फैलाएं. जुलाई-अगस्त में बारिश कम होते ही मिट्टी में रासायनिक दवा कॉपर-ऑक्सी-क्लोराइड 1 किलोग्राम प्रति एकड़ या रिडोमिल (500 ग्राम प्रति एकड़) को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

बंझा रोग से फसल तबाह होने का खतरा

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, बंझा रोग भी अरहर की फसल के लिए एक गंभीर समस्या है. इस रोग से ग्रसित पौधों में फूल नहीं आते, जिससे फलियां और दाना नहीं बनता. सबसे पहले पत्तियां हरे और पीले रंग के धब्बे या अनियमित पैटर्न में, धीरे-धीरे पीली पड़ सकती हैं, और उनका आकार विकृत हो जाता है या वे मुड़ सकती हैं. नतीजन बांझपन आ जाता है, जिसका सीधा असर फली निर्माण और बीज उपज पर पड़ता है. यह रोग अरहर बांझपन मोज़ैक वायरस के कारण होता है. इस वायरस का मुख्य वाहक (वेक्टर) एरीओफाइड माइट नामक एक छोटा कीट है, जो भोजन के दौरान वायरस को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाता है.

फसल बचाने के लिए तुरंत अपनाएं ये उपाय

बंझा रोग के प्रभावी प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं: वाइरस को फैलाने का काम एरीओफाइड माइट्स मुख्य वाहक कीट के रूप में कार्य करते हैं, इसलिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) उपायों को अपनाना बेहद अहम है. इसमे अरहर बुवाई के 40 दिन बाद तक खेत का नियमित सर्वेक्षण करें और जैसे ही संक्रमित पौधे दिखाई दें, उन्हें तुरंत जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें. यह वायरस के फैलाव को रोकने में मदद करेगा.

रासायनिक छिड़काव: रोग देखते तुरंत बाद फेनाजाक्विन (Fenazaquin) 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. जरूरत हो तो 15 दिनों के बाद इस छिड़काव को दोहराया जा सकता है. या बंझा रोग नियंत्रण के लिए मिल्वीमेक्टिन दवा की 1 मिली/लीटर पानी की दर से या प्रोपारगाईट की 3 मिली/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10-12 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें.

इन उपायों को अपनाकर किसान अरहर के उकठा और बंझा रोगों के प्रकोप को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे फसल की उपज सुनिश्चित होगी और देश में अरहर दाल के उत्पादन में सुधार होगा.

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