कबाड़ से बना दी 'देसी जुगाड़': तेलगाना के किसान की कमाल की मशीन से खेती हुई इतनी आसान

कबाड़ से बना दी 'देसी जुगाड़': तेलगाना के किसान की कमाल की मशीन से खेती हुई इतनी आसान

तेलंगाना के एक किसान, श् रिपल्ले शनमुखा राव, ने 'देसी जुगाड़' से एक कमाल की मशीन बनाई है। खेती में निराई-गुड़ाई एक बड़ी समस्या थी। मजदूरों से काम महंगा पड़ता था और पुरानी मशीनें थका देती थीं व फसल को नुकसान पहुंचाती थीं।इस परेशानी को हल करने के लिए, शनमुखा ने कबाड़ के सामान का इस्तेमाल क एक ऐसी बना दी। इसमें दो की जगह सिर्फ एक पहिया है, एक पहिया वाली मशीन किसान बैठे-बैठे सब काम कर सकता है इससे पैसे की बचत के साथ किसान को कई काम बेहद आसान हो जाएगी किसान आराम हो जाएगा.

कमाल की मशीनकमाल की मशीन
क‍िसान तक
  • नई दिल्ली,
  • Nov 09, 2025,
  • Updated Nov 09, 2025, 2:20 PM IST

तेलंगाना के महबूबाबाद जिले में किसान खरीफ में मुख्य रूप से कपास और मिर्च उगाते हैं. इन दोनों फसलों में खरपतवार एक आम और बड़ी समस्या है. ये खरपतवार फसल का जरूरी पोषण, पानी और सूरज की रोशनी छीन लेते हैं, जिससे पैदावार बुरी तरह घट जाती है. इस खरपतवार को हटाने के लिए किसान या तो हाथ से निराई-गुड़ाई करवाते हैं, जो बहुत धीमी और महंगी पड़ती है, या फिर वे 2-पहियों वाली पावर वीडर मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उन मशीनों को चलाने में भी कई दिक्कतें आती हैं. इसी बड़ी समस्या का एक शानदार हल निकाला है, वहीं के एक असाधारण किसान रिपल्ले शनमुखा राव ने. वे कोई इंजीनियर नहीं, सिर्फ मैट्रिक पास हैं, लेकिन उनके पास 21 सालों का खेती-किसानी का सच्चा अनुभव है. अपने इसी अनुभव के दम पर उन्होंने एक ऐसी जुगाड़ वाली मशीन बना दी है, जो कपास और मिर्च किसानों के लिए काफी फायदेमंद है.

थकान, दर्द और फसल का नुकसान का खोजा समाधान!

बाजार में जो 2-पहियों वाली वीडर मशीनें मिलती हैं. इन मशीनों में डिफरेंशियल गियर होते हैं, जिनकी वजह से मशीन को खेत की कतारों के बीच मोड़ना बहुत मुश्किल होता है. ज़रा सी चूक हुई और मशीन सीधे फसल के पौधों को रौंद देती थी, जिससे किसानों का बड़ा नुकसान होता था. इन मशीनों को पकड़कर उनके पीछे-पीछे चलना पड़ता है. खेत की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर मशीन को संभालना और मोड़ना बहुत थका देने वाला काम है.

किसानों को कंधे और पीठ में तेज़ दर्द की शिकायत आम हो गई थी. मशीन को मोड़ने के लिए कंधों पर बहुत ज़ोर लगाना पड़ता था. शनमुखा राव रोज़ अपनी और बाकी किसानों की इस परेशानी को देखते थे. उनके मन में एक ही सवाल था: "क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है कि काम भी जल्दी हो, फसल भी बचे और शरीर को भी आराम मिले? "बस,इसी सोच के साथ उन्होंने अपने 21 साल के किसानी तजुर्बे और 'देसी जुगाड़' का दिमाग लगाया. 

'देसी जुगाड़' से बनाई  कमाल की मशीन!

शनमुखा राव ने तय किया कि वे खुद एक ऐसी मशीन बनाएंगे जो इन सभी समस्याओं को हल कर दे. उन्होंने पुराने और स्थानीय बाज़ार से एक पेट्रोल इंजन, गियरबॉक्स, चेन और लोहे के दो छोटे हल (टाइन) इकट्ठे किए. लेकिन उनका असली कमाल मशीन के डिज़ाइन में था. शनमुखा राव ने दो पहियों की जगह, अपनी मशीन में सिर्फ एक पहिया लगाया. यह उनका 'मास्टरस्ट्रोक' था. इसके साथ ही, उन्होंने मशीन के पीछे चलने की बजाय, उसके ऊपर बैठने के लिए एक सीट लगा दी. इस तरह "मैन राइडिंग पावर वीडर" का जन्म हुआ. यह एक ऐसी मशीन थी जिस पर किसान आराम से बैठकर खेत में काम कर सकता था. सबसे हैरानी की बात थी इसकी कीमत. जहां बाज़ार की मशीनें महंगी थीं, वहीं शनमुखा राव ने यह पूरी मशीन सिर्फ 35,000 रुपये की लागत में तैयार कर दी.

एक पहिया, बैठे-बैठे सब काम

इस मशीन का एक पहिया होने के कारण इसे चलाना और मोड़ना रूप से आसान है. जैसे साइकिल को मोड़ना आसान होता है, वैसे ही यह खेत की कतारों के बीच बिना फसल को नुकसान पहुंचाए आसानी से मुड़ जाती है, जिससे कंधों पर कोई ज़ोर नहीं पड़ता. किसान को अब मशीन के पीछे भागना नहीं पड़ता; वह आराम से सीट पर बैठकर इसे चलाता है, जिससे थकावट न के बराबर होती है. खास बात यह है कि इसमें लगे लोहे के हलों को फसल के बीच की दूरी के हिसाब से चौड़ा या संकरा किया जा सकता है. यह मशीन सिर्फ खरपतवार ही नहीं निकालती, बल्कि मिट्टी को भुरभुरा बनाने, ढेलों को तोड़ने और यहां तक कि गीले खेतों की जुताई करने जैसे कई काम भी बखूबी करती है.

आराम, बचत और सुरक्षा, फायदे अनेक!

शनमुखा राव की यह मशीन किसानों के लिए कई सौगातें लाई है. सबसे बड़ा फायदा है पैसे की भारी बचत; किसान प्रति एकड़ 5,000 रुपये तक बचा सकते हैं. साथ ही, अब उन्हें घंटों तक झुककर या मशीन के पीछे दौड़कर कमर-कंधे का दर्द नहीं सहना पड़ेगा और मशीन के आसानी से मुड़ने के कारण फसल भी सुरक्षित रहती है. यह 'राइडिंग वीडर' पारंपरिक मशीनों की तरह भारी नहीं है, इसलिए महिला किसान और बुजुर्ग भी इसे आराम से चलाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं. हालांकि, इसे बड़े पैमाने पर बाज़ार में उतारने से पहले ऑपरेटर की सुरक्षा और मशीन की मजबूती (ड्यूरेबिलिटी) पर कुछ वैज्ञानिक जांच की ज़रूरत है. अगर यह मशीन इन परीक्षणों पर खरी उतरती है, तो यह पूरे भारत के करोड़ों कपास और मिर्च किसानों की तकदीर बदल सकती है.

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