कम जमीन से बंपर पैदावार का 'सीक्रेट', जानें क्या है इनोवेटिव फार्मर का 'स्टोली सिस्टम'

कम जमीन से बंपर पैदावार का 'सीक्रेट', जानें क्या है इनोवेटिव फार्मर का 'स्टोली सिस्टम'

खेती में कम जगह होना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन, 'इनोवेटिव फार्मर' इसका भी हल निकाल रहे हैं. ऐसा ही एक 'सीक्रेट' है 'स्टोली सिस्टम. यह खेती करने का एक बहुत ही खास और नया तरीका है. इस सिस्टम या तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसान बहुत कम जमीन पर भी बंपर पैदावार ले सकते हैं. यह सिस्टम उन किसानों के लिए एक वरदान है क्योकि नई तकनीक अपनाकर कम लागत और कम जगह में भी खेती से बंपर पैदावार लेकर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 06, 2025,
  • Updated Nov 06, 2025, 11:52 AM IST

हिमाचल की वादियां, जहां हवा में सेब की महक घुली होती है, वहां के किसान दशकों से सेब उगा रहे हैं. लेकिन जमीन सिकुड़ रही है, लागत बढ़ रही है और मौसम की चुनौतियां हर साल नई पहेली बन जाती हैं. इन्हीं चुनौतियों के बीच, शिमला के चिरगांव तहसील के बागी गवास गांव के जतिंदर सिंह ने वो कर दिखाया है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है. बी.ए., बी.एड. और कंप्यूटर में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा जैसी डिग्रियां होने के बावजूद, उन्होंने अपनी जमीन से जुड़े रहने का फैसला किया. 16 साल के अपने अनुभव को झोंककर उन्होंने एक ऐसी तकनीक को जन्म दिया है, जो भारत में सेब की बागवानी का भविष्य बदल सकती है.

पहाड़ों का संघर्ष और एक 'इनोवेटर' का जन्म

जतिंदर सिंह ने सालों तक देखा कि पारंपरिक तरीके से सेब उगाने में कितनी मुश्किलें हैं. पेड़ बड़े होते हैं, जगह ज्यादा घेरते हैं और फल आने में 5 से 7 साल लग जाते हैं. फिर 'हाई-डेंसिटी प्लांटेशन' तकनीक से बागवानी की जिसने पैदावार बढ़ाई, लेकिन जतिंदर जी का मन अभी भी कुछ और खोज रहा था. वह एक ऐसा सिस्टम चाहते थे जो 'हाई-डेंसिटी प्लांटेशन' तकनीक से भी कई गुना आगे हो, जिसमें जमीन के हर इंच से बंपर पैदावार ली जा सके. जिसमें पानी कम लगे, मेहनत कम हो और मुनाफा ज्यादा मिले. उनकी इसी सोच और जमीनी प्रयोगों ने 'स्टोली ऑर्चर्ड सिस्टम' यानी SOS को जन्म दिया है.

क्यों न पेड़ों को झुका दिया जाए? एक इनोवेटिव सोच

स्टोली ऑर्चर्ड सिस्टम यानी SOS सिस्टम बागवानी के सारे पुराने नियम तोड़ देता है. इसमें पौधे सीधे नहीं, बल्कि एक खास कोण पर 'झुकाकर' लगाए जाते हैं. ये 'मदर प्लांट' कहलाते हैं. इन झुके हुए पौधों से कई सीधी टहनियां ऊपर की ओर बढ़ती हैं. यह देखने में किसी दीवार पर सजी कलाकृति जैसा लगता है. यह कोई मामूली डिजाइन नहीं है. यह विज्ञान है. जतिंदर ने हिसाब लगाया कि अगर पौधे को सीधा ऊपर बढ़ने दिया जाए, तो वह लकड़ी बनाने में ज्यादा ताकत लगाता है. लेकिन अगर उसे झुका दिया जाए और उसकी टहनियों को ऊपर बढ़ाया जाए, तो पौधे की सारी ऊर्जा सीधे फल बनाने में लगती है.

'ये तो पागलपन है, कैसे लगेंगे इतने पौधे?'

जब जतिंदर ने अपने बाग में 5x5 फीट की दूरी पर पौधे लगाने शुरू किए, तो आसपास के लोग हैरान रह गए. पारंपरिक बाग में जहां एक एकड़ में मुश्किल से 150-200 पौधे लगते थे, और हाई डेंसिटी में 600-700 पौधे लगते थे, वहीं जतिंदर जी ने एक एकड़ में 1625 पौधे लगा दिए. 

लोगों ने कहा, "इतनी कम जगह में पौधे सांस कैसे लेंगे? ये तो पागलपन है. लेकिन जतिंदर को अपने सिस्टम पर भरोसा था. उन्होंने मजबूत रूटस्टॉक्स और यहां तक कि सीडलिंग्स पर भी यह प्रयोग किया. उन्होंने पौधों की कैनोपी को सिर्फ 6 से 8 इंच तक सीमित रखा. इसका मतलब था कि पौधों की एक पतली, घनी 'फलों की दीवार' तैयार हो रही थी.

दूसरे ही साल में आया फल, मिली बंपर पैदावार

परंपरागत बागवानी में फल के लिए 5-7 साल का इंतजार होता है. हाई डेंसिटी में यह समय 3-4 साल है. लेकिन स्टोली सिस्टम ने सबको तब चौंका दिया जब दूसरे ही साल में पौधों पर फल लद गए. यह एक बहुत बड़ी कामयाबी थी जो किसान अपनी लागत लगाकर सालों तक इंतजार करता है. उसके लिए दूसरे साल में ही कमाई शुरू हो जाना बड़ी कमायाबी थी. सभी फल रंगीन, रसीले और बड़े थे.

असली चमत्कार तो तब हुआ जब ये बाग पूरी तरह से तैयार हो गए. जहां हाई डेंसिटी सिस्टम से एक एकड़ में 800 से 1000 पेटियों जो कि एक पेटी 20 किलो होती है, का उत्पादन बहुत अच्छा माना जाता है. वहीं जतिंदर सिंह के SOS मॉडल ने एक एकड़ से 3250 पेटियों तक का उत्पादन कर दिखाया. यह हाइडेंसिटी से भी 3 से 4 गुना ज्यादा था.

स्टोली सिस्टम का राज, किसानों के लिए वरदान

सेब के बंपर पैदावार का राज था 'सूरज की रोशनी'. इस सिस्टम में हर पत्ते और हर एक सेब को भरपूर धूप मिलती है, जिससे फल का रंग और आकार बेमिसाल होता है. एक समान धूप मिलने से फलों की क्वालिटी भी एक जैसी रहती है, जिसे बाजार में और एक्सपोर्ट के लिए बेहतरीन दाम मिलते हैं.

जतिंदर जी का यह मॉडल सिर्फ ज्यादा पैदावार ही नहीं देता, बल्कि यह 'कम लागत' का मॉडल भी है. भारत के हर उस किसान के लिए उम्मीद की किरण है, जिसके पास जमीन कम है. यह सिस्टम पहाड़ी ढलानों से लेकर मैदानी इलाकों तक, हर जगह कामयाब हो सकता है. यह छोटे किसानों को कम जमीन से अमीर बना सकता है और बड़े निवेशकों को कम लागत में बंपर मुनाफे का रास्ता दिखा सकता है.

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