ईआरसीपी को लेकर बीते चार साल से कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच राजनीतिक बयानबाजी हो रही है. जहां कांग्रेस केंद्र की मोदी सरकार पर इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करने का आरोप लगाती रही है. वहीं, बीजेपी योजना में तकनीकी पेच बताकर गहलोत सरकार को घेरने की कोशिश करती है. आपसी बयानबाजी में इस सरकार के चार साल बीत चुके हैं. 10 फरवरी को अशोक गहलोत सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी बजट पेश होना है. साथ ही इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं.
ऐसे में 'किसान तक' ने ईआरसीपी से संबंधित पूर्वी राजस्थान की राजनीति की नब्ज टटोलने की कोशिश की है. इस रिपोर्ट के माध्यम से आपको समझाने की कोशिश होगी कि आखिर क्यों पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में ईआरसीपी पेयजल योजना होने के साथ-साथ राजनीतिक मुद्दा भी है.
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) 13 जिलों से संबंधित है. ये जिले भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़ हैं. इन जिलों में राजस्थान की कुल 200 में से आधी से कुछ कम 83 विधानसभा सीटें आती हैं जिनकी करीब तीन करोड़ आबादी है. ये राजस्थान की कुल आबादी का 41.13 प्रतिशत है. ये जिले प्रदेश के हाड़ौती, मेवात, ढूंढाड़, मेरवाड़ा और ब्रज क्षेत्र में आते हैं. इन 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से 61 फीसदी यानी 51 सीटों को कांग्रेस ने जीता था. साथ ही कुछ और सीट पर उसके समर्थित निर्दलीय, बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अन्य पार्टियों का कब्जा है.
वहीं, सात जिलों में कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में है. अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा जिले में 39 विधानसभा सीट हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 25 सीट इन जिलों में जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई.
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सरकार बनने के बाद बीएसपी का कांग्रेस में विलय हो गया. निर्दलीय और आरएलडी विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को मिला. इस तरह 39 में से 35 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. इसीलिए इन जिलों में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में है. इसी साल विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस चाहेगी कि यह स्थिति इसी तरह मजबूत बनी रहे. इसीलिए ईआरसीपी को लेकर बजट में कुछ बड़ी घोषणा की जा सकती है ताकि इस क्षेत्र के वोटरों को साधा जा सके.
ईआरसीपी को राजनीतिक तूल तब मिलना शुरू हुआ जब जुलाई 2018 में पीएम मोदी ने जिक्र किया. पीएम मोदी ने उस सभा में कहा था, “आपके लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी ने मुझे बताया है कि राजस्थान सरकार और बीजेपी के विधायकों द्वारा एक मांग केंद्र सरकार के सामने रखी गई है. पार्वती काली सिंध चंबल परियोजना राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तौर पर घोषित है. मुझे जानकारी दी गई है कि इसकी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रालय को भेजी गई है और परियोजना की तकनीकी जानकारी पर काम चल रहा है. इस परियोजना से राजस्थान की दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. इस परियोजना से जयपुर, अलवर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, कोटा, बूंदी जैसे 13 जिलों में रहने वाली राजस्थान की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध होगा. मैं आपको यह आश्वासन देना चाहूंगा कि केंद्र सरकार इस मांग के प्रति सकारात्मक रुख रखेगी.”
प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद कांग्रेस इसे राष्ट्रीय दर्जा देने की मांग पुरजोर तरीके से उठाने लगी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मीडिया में आए दिन बयान देने लगे. 11 अप्रैल 2022 को जयपुर में गहलोत ने कहा, “गजेंद्र सिंह केंद्र में पानी (जलशक्ति) मंत्री हैं, लेकिन इनकी हैसियत नहीं है पीएम मोदी के सामने अपनी बात रखने की. वो भी तब जब प्रधानमंत्री ने खुद ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की घोषणा की थी, लेकिन अगर आपकी यह करवाने की औकात ही नहीं है तो आप काहे के मंत्री हैं?"
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बता दें कि अगर ईआरसीपी राष्ट्रीय परियोजना घोषित होती है तो इसमें केंद्र को 90 प्रतिशत और राज्य को 10 प्रतिशत पैसा ही खर्च करना होगा.
राजस्थान के कई किसान और सामाजिक संगठनों की सरकार से मांग है कि जिस तरह पिछले दो बजट में ईआरसीपी के लिए 9920 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया जोकि पूरी योजना की लागत की चौथाई लागत है. इस बार भी बचे हुए करीब 27,327 करोड़ रुपये की घोषणा एक साथ कर देनी चाहिए. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट 'किसान तक' से कहते हैं, “ईआरसीपी पूर्वी राजस्थान के बंजर खेतों की उम्मीद है. इसीलिए इस परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए. हमारी मांग है कि 37,200 करोड़ में से बचे हुए करीब 27,327 करोड़ इस बजट में दिए जाएं. इससे सात साल का काम कुछ साल में ही हो जाएगा.”
ईआरसीपी की मांग को लेकर पूर्वी राजस्थान में कई मोर्चे अस्तित्व में आ गए हैं. वहीं, कई स्थानीय नेता, सामाजिक और कृषि संगठन एकजुट होने लगे हैं. इन्हीं में से एक है ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा. मोर्चे के अध्यक्ष जवान सिंह ने बीते दिनों ईआरसीपी नहीं तो वोट नहीं अभियान का आगाज़ किया है.
वे कहते हैं, “ईआरसीपी पूर्वी राजस्थान के लिए लाइफ लाइन का काम करेगी क्योंकि आज भी धौलपुर, करौली जिसे जिले देश के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल हैं. खेतों को पानी मिलेगा तो लोगों का आर्थिक विकास भी होगा और यह क्षेत्र मुख्यधारा में आ सकेगा.”
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पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए सिंचाई और पेयजल की योजना है जिससे 2051 तक इन जिलों को पानी की पूर्ति होनी है. ईआरसीपी के धरातल पर उतरने से 2.02 लाख हेक्टेयर नई सिंचाई भूमि बनेगी. साथ ही इन जिलों में पहले से बने 26 बांधों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सकेगा. इससे 80,878 हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है. इस तरह कुल 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा विकसित होगी. इस काम को सात साल में पूरा होना है.
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पूर्वी राजस्थान में चंबल नदी बहती है. इस नदी में हर साल 20 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी यमुना-गंगा के जरिए बंगाल की खाड़ी में बेकार बह जाता है. यही पानी हर साल बाढ़ का कारण भी बनता है. इन बेकार बहकर जाने वाले पानी के उपयोग के लिए ईआरसीपी योजना बनाई गई है.
इस परियोजना के तहत मानसून के दिनों में कुल 3510 एमसीएम पानी जिसमें 1723.5 पेयजल, 1500.4 एमसीएम सिंचाई और 286.4 एमसीएम पानी को उद्योगों के लिए चंबल बेसिन से राजस्थान की दूसरी नदियों और बांधों में शिफ्ट करना है.
इसके लिए पार्वती, कालीसिंध, मेज नदी के बरसाती अधिशेष पानी को बनास, मोरेल, बाणगंगा और गंभीर नदी तक लाया जाना है. कुल मिलाकर ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान की 11 नदियों को आपस में जोड़ा जाना है. परियोजना के पूरे होने से मानसून में बेकार बहकर जाने वाले बाढ़ के पानी का उपयोग होगा. इसी से 13 जिलों को सिंचाई, पेयजल और उद्योगों के लिए पानी मिल सकेगा.
'किसान तक' ने अपनी पड़ताल में पाया कि इस योजना की वाटर स्टडी केंद्रीय जल आयोग ने फरवरी 2016 में अनुमोदित की थी. इसके बाद राजस्थान सरकार ने केंद्र सरकार के उपक्रम वेप्कॉस लिमिटेड की ओर से तैयार डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 19 नवंबर 2017 को भेजी. तब राज्य में बीजेपी सरकार थी. इसके बाद केंद्रीय जल आयोग के सामने राजस्थान की ओर से 18 जनवरी 2018 को परियोजना के बारे में विस्तार से बताया.
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तब से ही यह योजना केंद्रीय जल आयोग में परीक्षण के लिए विचाराधीन है. नवंबर 2017 में बनी डीपीआर उस समय राजस्थान रिवर बेसिन अथॉरिटी के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे की देखरेख में बनी थी. श्रीराम अभी केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय में सलाहकार हैं. साल 2022 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2022-23 के बजट में घोषणा के अनुसार ईआरसीपी कॉर्पोरेशन का गठन कर दिया. इस निगम के लिए बीते दिनों राज्य सरकार ने आठ नए कार्यालय गठित करने की मंजूरी दी और इनमें 115 नए पद सृजित किए. पिछली बजट घोषणाओं से कोटा के नवनेरा का 75 प्रतिशत एवं टोंक के ईसरदा बांध का 45 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है.
राजस्थान सरकार का कहना है कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की डीपीआर मध्यप्रदेश-राजस्थान अंतर राज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की साल 2005 में बैठक में हुए निर्णयों के अनुसार बनी है. इस निर्णय के अनुसार ‘राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी और दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी का 10 प्रतिशत प्रयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं- यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराज का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य की सीमा में नहीं आता हो तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति जरूरी नहीं है.
इसी शर्त के आधार पर मध्यप्रदेश ने पार्वती की सहायक नदी नेवज पर मोहनपुरा बांध और कालीसिंध पर कुंडालिया बांध बनाया है. राजस्थान सरकार का दावा है कि इन बांधों की एनओसी उनसे बांध बनने के बाद 2017 में ली गई. लेकिन अब मध्यप्रदेश सरकार ईआरसीपी के लिए एनओसी नहीं दे रही जबकि राजस्थान तीनों शर्तों को पूरी करता है. जिसमें पहली- जलभराव क्षेत्र राजस्थान की जमीन पर है. दूसरी- प्राप्त पानी राजस्थान के कैचमेंट का है और तीसरी- मध्यप्रदेश के कैचमेंट क्षेत्र से प्राप्त पानी 10% से कम है.
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आठ जुलाई 2019 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को एक पत्र लिखा. इसके जवाब में कमलनाथ ने 27 जनवरी 2020 को लिखा. इसमें 50 की जगह 75 प्रतिशत जल निर्भरता के आधार पर डीपीआर बनाने की बात मध्यप्रदेश सरकार की ओर से की गई. यही बात कुछ दिन पहले संसद में केंद्र सरकार ने दोहराई. इसी तरह का एक और पत्र 15 अप्रैल 2022 को एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र को लिख दिया.
75 प्रतिशत जल निर्भरता पर करौली में रहने वाले ग्रामोत्थान संस्था के अध्यक्ष रघुवीर मीणा कहते हैं, “वैसे तो राजस्थान को मध्यप्रदेश की एनओसी की जरूरत नहीं है. दूसरी बात ये है कि जैसे-जैसे प्रोजेक्ट की फिजिबिलिटी में वाटर डिंपेडिविलिटी बढ़ेगी, पानी की उपलब्धता घटेगी. 50 प्रतिशत की जगह 75 प्रतिशत वाटर डिपेंडिबिलिटी के आधार पर परियोजना में पानी की उपलब्धता 3921 एमसीएम से घटकर 1744 एमसीएम ही रह जाएगी. यह पानी इन 13 जिलों के पीने के पानी की ही पूर्ति कर पाएगा. सिंचाई और उद्योगों को 75 प्रतिशत डिंपेडिविलिटी से पानी नहीं मिल पाएगा. इसीलिए हमारी मांग है कि वाटर डिंपेडिविलिटी को 33 या 25 प्रतिशत की जानी चाहिए क्योंकि चंबल नदी में एक महीने में तेजी से पानी बहता है. इस पानी को रोकने के लिए बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है.”
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रघुवीर आगे कहते हैं, “राजस्थान देश का 10.4% है. लेकिन यहां पानी की उपलब्धता 1.04 % ही है. राज्य के 295 ब्लाक में से 203 क्रिटिकल स्थिति में पहुंच चुके हैं. वहीं, राजस्थान का कुल कृषि क्षेत्र 21.2 मिलियन हेक्टेयर है जिसमें से मात्र 1.52 मिलियन हेक्टेयर यानी 7.2% ही सिंचित है. इसीलिए ईआरसीपी का आना बेहद जरूरी है.” कुल मिलाकर ईआरसीपी राजस्थान के इन 13 जिलों के लिए काफी महत्वपूर्ण बन गई है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी की आपसी खींचतान में फिलहाल तो यह योजना कछुआ चाल ही चल रही है.