गाय-भैंस ही नहीं बकरी का दूध भी ऑर्गेनिक बताकर बेचा जा रहा है. ऑनलाइन ऐसी बहुत सी कंपनी हैं जो दूध को ऑर्गेनिक बताकर बेच रही हैं. लेकिन उनके द्वारा बेचा जा रहा दूध ऑर्गेनिक है या नहीं इसका उनके पास कोई प्रमाण नहीं है, दूध ऑर्गेनिक होने का वो सिर्फ दावा कर रहे हैं. दूध पीने वालों के पास भी ऐसा कोई पैमाना नहीं है जिससे ऐसे दूध की जांच की जा सके. ऐसा इसलिए है कि अभी तक किसी भी सरकारी संस्थान ने दूध के ऑर्गनिक होने का प्रमाण पत्र किसी को नहीं दिया है. हालांकि ऑर्गनिक का सर्टिफिकेट देने का काम राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (एनसीओएनएफ) का है. यह कृषि एंव किसान कल्याण विभाग का एक संस्थान है. एनसीओएनएफ का उत्तर भारत का ऑफिस गाजियाबाद में है.
अभी तक यह खेतीबाड़ी में ही ऑर्गनिक का सर्टिफिकेट देने का काम करता है. लेकनि हाल ही में एनसीओएनएफ ने एक बड़ी घोषणा की है. संस्थान के मुताबिक मई से एनसीओएनएफ दूध को भी ऑर्गनिक होने का प्रमण पत्र देगा. यह प्रमाण पत्र पशु के नाम पर दिया जाएगा. कई स्तर की जांच के बाद यह प्रमाण पत्र दिया जाएगा. एनसीओएनएफ नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड और केन्द्र के पशुपालन विभाग के साथ मिलकर प्रमाण पत्र देने का काम शुरू करने जा रहा है.
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केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि हमारे संस्थान में भी काफी वक्त से बकरियों के ऑर्गनिक चारे पर काम चल रहा है. किसी भी पशु को ऑर्गनिक का सर्टिफिकेट देने से पहले यह देखा जाता है कि गाय-भैंस हो या बकरी उसे जो चारा खाने में दिया जा रहा है वो पूरी तरह से ऑर्गनिक है या नहीं. दूसरा यह कि जहां भी वो ऑर्गनिक चारा उगाया जा रहा है उसके आसपास दूसरी फसल में पेस्टी साइट का इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है. क्योंकि ऐसा होने पर फसल के हिसाब से नियमानुसार एक दूरी रखनी पड़ती है.
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डॉ. आरिफ का कहना है कि पशुओं को दी जाने वाली वैक्सीजन, बीमारी में दी जा रहीं दवाओं को भी चेक किया जाता है. बनाई गई गाइड लाइन के हिसाब से ही पशुओं को दवा दी जाती है. कुछ बीमारियों में तो सिर्फ हर्बल दवा खिलाने के ही निर्देश होते हैं. पशुओं को जो दाना यानि फीड दिया जाता है उसकी भी जांच होती है. फीड बनाने में किसी तरह के केमिकल का इस्ते माल तो नहीं किया जा रहा है. और ऐसा भी नहीं है कि आज से आपने पशुओं को ऑर्गनिक चारा देना शुरू किया तो वो कल से ऑर्गनिक दूध देना शुरू कर देंगे. इसके लिए भी नियमानुसार पशुओं के हिसाब से दिन तय किए जाते हैं.
डॉ. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि जब तक बकरी खुद से बाग, मैदान और जंगल में चर रही है तो उसका दूध 100 फीसद ऑर्गेनिक है. क्योंकि बकरी की आदत है कि वो अपने चारे को पेड़ और झाड़ी से खुद चुनकर खाती है. लेकिन जब हम फार्म या घर में पाली हुई बकरियों को बरसीम, चरी या और दूसरा हरा चारा देते हैं तो उसमे पेस्टी साइट शामिल रहता है. जिसके चलते उस पेस्टी ससाइट का असर बकरी के दूध में भी शामिल हो जाता है.
इसीलिए हम संस्थान में बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के लिए आने वाले किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने के बारे में बता रहे हैं. इतना ही नहीं हम खुद भी अपने संस्थान के खेतों में ऑर्गेनिक चारा उगा रहे हैं. इसके हमने जीवामृत, नीमास्त्रह और बीजामृत बनाया है. जीवामृत बनाने के लिए गुड़, बेसन और देशी गाय के गोबर-मूत्र में मिट्टी मिलाकर बनाया जा रहा है. यह सभी चीज मिलकर मिट्टी में पहले से मौजूद फ्रेंडली बैक्टीरिया को और बढ़ा देते हैं. इसी का फायदा चारे को मिलता है.
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