फलों के राजा आम के दीवाने सिर्फ भारत में ही नहीं हैं. बल्कि दूसरे देशों के लोग भी आम को बहुत पसंद करते हैं. इसीलिए भारत से हर साल करीब 350 से 400 करोड़ रुपये का आम एक्सपोर्ट होता है. संयुक्त अरब अमीरात, इंग्लैंड, अमेरिका, कतर, ओमान और कुवैत जैसे देशों में बड़े पैमाने पर हम हर साल आम निर्यात करते हैं. लेकिन, सीमा पार से आम के प्रति लगाव का एक मामला नेपाल से जुड़ता है. यह मामला जुड़ा है आम की देखरेख से. यहां के काफी श्रमिक आम के बागों की देखरेख और रखवाली के लिए नेपाल से आते हैं. यह उनकी जीविका का एक बड़ा साधन भी है. उनके बिना कम से कम महाराष्ट्र के आम के बाग अधूरे होते हैं.
गर्मियों की शुरुआत के साथ ही 'फलों के राजा' यानी आम का मार्केट में आगमन हो चुका है. दुनिया भर में लोग आम के प्रति अपने लगाव को दिखा रहे हैं. सीमापार आम प्रेम का ऐसा ही एक मामला भारत और नेपाल के बीच देखा जा सकता है. नेपाली आम के खेतों में काम करने के लिए महाराष्ट्र के रत्नागिरी क्षेत्र में आ रहे हैं. महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र अपने अल्फांसो आमों के लिए प्रसिद्ध है.
wion news की एक रिपोर्ट के अनुसार रत्नागिरी के आम के खेत में काम करने वाले एक प्रवासी श्रमिक तेजू कहते हैं कि मैं नेपाल से हूं. पहली बार रत्नागिरी जिले में बस से आया था. मुझे तीन दिन लग गए. मैं पहले दो वर्षों के दौरान खेतों पर काम करने के लिए अकेला आया था, लेकिन बाद में अपने परिवार को भी रत्नागिरी ले आया. तेजू जहां आम के बाग में काम करते हैं, वहीं उसकी पत्नी खेत की रखवाली का काम करती है. वह आमों को बंदरों या किसी अन्य नुकसान से बचाती है.
लेकिन इन खेतों में काम करने के लिए नेपाल से भारत आने वाले तेजू अकेले नहीं हैं. कोंकण क्षेत्र में हर साल नेपाल से मजदूर आते हैं. पिछले कुछ वर्षों में नेपाल से महाराष्ट्र की यात्रा करने वाले नेपालियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि आम के खेतों में काम करने के लिए 2018 में 50,000 से अधिक नेपाली नेपाल से महाराष्ट्र आए थे, अब 2023 में यह संख्या 150,000 से अधिक हो गई है.
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नेपाली अक्टूबर के महीने में आते हैं और कटाई के मौसम से पहले आम की शाखाओं की छंटाई और खाद देने का काम शुरू करते हैं. वे मई के अंत या जून की शुरुआत तक रहते हैं. वे निर्यात या बिक्री के लिए आमों को चुनने, छांटने और पैक करने में भी मदद करते हैं. मतलब महाराष्ट्र में आम की पूरी व्यवस्था में नेपाली अहम हिस्सा हैं. वास्तव में, इस वर्ष आम के किसानों ने कहा है कि उन्होंने खेतों पर पहली बार आने वाले नेपाली आगंतुकों में वृद्धि देखी है.
प्रदीप सावंत रत्नागिरी में 15 आम के बागों के मालिक हैं और उनके खेतों पर 30 से अधिक रखवाले और 30 मजदूर काम करते हैं. उनका कहना है कि नेपाली श्रमिक खेतों में काम करते हैं और वहीं रहते हैं. आम के किसानों का कहना है कि खेत में काम करने का तरीका बदल रहा है. सीजन के अंत में नेपाली खेत मजदूर मिट्टी तैयार करते हैं. आम की इकोनॉमी में उनका बड़ा योगदान है.वे एक सीजन में लगभग एक-एक लाख रुपये की रकम के साथ नेपाल के लिए रवाना होते हैं, जो उनके लिए अगले चार महीनों तक जीवित रहने का जरिया होता है.