डांग का सुरम्य वन क्षेत्र प्राकृतिक खेती के लिए जाना जाता है. 2021 में डांग को 'आपणु डांग, प्राकृतिक डांग' अभियान के तहत गुजरात में पूरी तरह से प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित किया गया था. सरकारी सहायता और प्रशिक्षण हासिल कर यहां के किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है, जिससे उनकी आजीविका में देखने लायक सुधार हुआ है. डांग के सफल किसानों में भूरापानी गांव के किसान यशवंतभाई सहारे भी शामिल हैं.
उन्हाेंने रासायनिक खादों के हानिकारक प्रभावों को समझा और कृषि विभाग के सहयोग से गुजरात और अन्य राज्यों में प्राकृतिक खेती, पशुपालन और प्राकृतिक खादों के उत्पादन की बारीकियों के बारे में प्रशिक्षण लिया और सीखा. यशवंतभाई अपने खेतों में चावल, रागी या फिंगर बाजरा, कटहल, काली मसूर और सोयाबीन आदि फसलें उगाते हैं.
यशवंतभाई कृषि विभाग की ओर से आयोजित नियमित शिविरों में जिले के किसानों को भी प्रशिक्षिण देते हैं. वे कहते हैं, ''हमने हानिकारक खादों का उपयोग करना बंद कर दिया है. हम केवल प्राकृतिक खेती करते हैं. मैंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की विधियों में प्रशिक्षण लिया है.'' डांग जिले के कृषि उप निदेशक संजय भगरिया ने जानकारी दी कि उन्होंने मास्टर ट्रेनर किसानों को नियुक्त किया है. ये मास्टर ट्रेनर्स विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्राकृतिक खेती के बारे में अपने ज्ञान की वृद्धि करते हैं.
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इससे बाकी किसानों को भी नई तकनीकों और हितकारी योजनाओं के बारे में अपडेट मिलता रहता है. संजय भगरिया ने बताया कि वर्ष 2023-24 में यहां 423 क्लस्टर-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम किए गए, जिसमें लगभग 16,000 किसानों को ट्रेनिंग दी गई. इस साल भी यह काम जारी है. वर्ष 2024-25 में 285 से अधिक क्लस्टर-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अब तक लगभग 9,020 किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका है.
डांग के किसान कृषि मशीनीकरण योजनाओं का लाभ ले रहे हैं. इसके लिए ग्राम सेवक उनकी ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से ट्रैक्टर, रोटावेटर, थ्रेसर और श्रेडर पर सब्सिडी के लिए आवेदन करने में सहायता करते हैं. अहवा के किसान सीतारामभाई चौर्या ने कहा कि सरकार की सब्सिडी योजनाओं की वजह से ही वे ट्रैक्टर और रोटावेटर खरीद सके. उनकी बहू कुसुम पोस्ट ग्रेजुएट है, जो खेती के व्यवसाय से जुड़ी है और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होती है.
कुसुम ने बताया कि यहां के लोग गरीबी में जी रहे हैं. अपने दम पर मशीन उपकरण खरीदना मुश्किल है. इसलिए सरकारी मदद से ही यह संभव हो पा रहा है. कुसुम ने बताया कि डांग जिले में सरकार के कृषि विभाग से हमें ट्रैक्टर पर 45 हजार रुपये की सब्सिडी मिली है. इसके अलावा रोटावेटर पर भी 42,000 रुपये सब्सिडी प्राप्त हुई है. बता दें कि यह जिला प्राकृतिक खेती में सबसे आगे बना हुआ है, इसलिए यह पूरे देश के अन्य क्षेत्रों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करता है.