प्याज और टमाटर के कम दाम की मार झेल रहे किसानों पर अब एक और वज्रपात हो गया है. कपास की कीमतों में अब और गिरावट शुरू हो गई है. क्योंकि अच्छे दाम की उम्मीद में जिन किसानों ने इसे स्टॉक करके अपने घर पर रखा हुआ था उन्होंने अब उसे बाजार में ले आना शुरू कर दिया है. दाम बढ़ने की उनकी उम्मीदें टूट गई हैं. पहले ही उन्हें कपास का दाम पिछले साल से कम मिल रहा था और अब आवक बढ़ने से वो और भी कम हो गया है. दाम अब 8000 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 7000 रुपये तक रह गया है. जबकि पिछले साल उन्हें 14000 रुपये तक का भाव मिला था.
पिछले पखवाड़े में वायदा कारोबार और फार्म गेट पर कपास की कीमतों में आठ से 12 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है. क्योंकि किसान, जो पिछले साल के रिकॉर्ड-उच्च स्तर पर कीमतों की वापसी की उम्मीद कर रहे थे उनकी उम्मीदें अब टूट गई हैं. जिसकी वजह से उन्होंने रोके गए स्टॉक की बिक्री शुरू कर दी है. कपास ही नहीं किसी भी कृषि उपज की कीमत पर आवक के हिसाब से असर पड़ता है. आवक बढ़ने से कपास उत्पादक किसानों को कम दाम मिलने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
मंडियों में कपास की दैनिक आवक मई में प्रति दिन 20,000 गांठों (प्रत्येक गांठ का वजन 170 किलोग्राम) के ऐतिहासिक औसत पर थी. जो अब पांच गुना बढ़कर 100,000 गांठ तक पहुंच गई है. सदर्न इंडिया मिल्स एसोसिएशन (SIMA) के अध्यक्ष रवि सैम ने कहा कि "मैंने मई में इतनी अधिक आवक नहीं देखी है. जिसकी वजह से कपास के दाम में भारी गिरावट दर्ज की गई है. कच्चे कपास की कीमत एक पखवाड़े पहले 8,000 रुपये क्विंटल थी, जो अब गिरकर 7,000 और 7,200 हो गई है.
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दाम गिरने से किसान निराश हैं. क्योंकि पिछले साल के मुकाबले भाव में 50 परसेंट की गिरावट आ चुकी है. हालांकि, अब भी दाम एमएसपी से ऊपर ही है. इसलिए रखे गए माल को किसान बेच रहे हैं. ताकि वो खराब न हो और भाव और गिरने पर नुकसान बढ़ न जाए. साल 2022-23 के लिए कॉटन की एमएसपी 6380 रुपये प्रति क्विंटल है. दूसरी ओर टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने थोड़ी राहत की सांस ली है. क्योंकि उन्हें 8000 रुपये प्रति क्विंटल का दाम भी ज्यादा लग रहा था. उन्हें उससे सस्ता कॉटन चाहिए था. उनके मन की मुराद अब पूरी हो रही है. लेकिन किसानों के दिल का दर्द कौन जानेगा.
टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने तो दूसरे देशों में भारत के मुकाबले कॉटन के कम भाव का हवाला देकर इंपोर्ट ड्यूटी कम करने की मांग की थी. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने वाणिज्य और कपड़ा मंत्री से कॉटन पर 11 फीसदी आयात शुल्क तत्काल प्रभाव से खत्म करने का आग्रह किया था. तर्क यह दिया गया था कि पीक आवक सीजन के दौरान कॉटन का भाव का एमएसपी से हाई रहना टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए ठीक नहीं है. इंडस्ट्री अभी अपनी मौजूदा क्षमता का सिर्फ 50 फीसदी पर ही परिचालन कर पा रही हैं. हालांकि सरकार ने इंडस्ट्री की बात नहीं मानी.