सिर्फ भेड़ पालन-चराने में ही नहीं सेना के बीच भी मशहूर है चारवाहों का ये समुदाय, जानें डिटेल

सिर्फ भेड़ पालन-चराने में ही नहीं सेना के बीच भी मशहूर है चारवाहों का ये समुदाय, जानें डिटेल

जम्मू-कश्मीर का बक्करवाल समुदाय पुश्तैनी रूप से भेड़-बकरी चराने का काम करता है. इसी के चलते ये लोग जंगली और पहाड़ी इलाकों में घूमते रहते हैं. इसी के चलते ही सेना को कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन के होने की पहली जानकारी इसी समुदाय से मिली थी. चरवाहों का ये समुदाय सेना के बीच खासी पहचान रखता है. 

खुले मैदान में चरती भेड़. फोटो क्रेडिट-गोपाल दासखुले मैदान में चरती भेड़. फोटो क्रेडिट-गोपाल दास
नासि‍र हुसैन
  • नई दिल्ली,
  • Aug 09, 2023,
  • Updated Aug 09, 2023, 10:26 AM IST

भेड़ पालन करने को लेकर बक्करवाल समुदाय खासा मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि इस समुदाय के लोग भेड़ों से बात कर लेते हैं. भेड़ों के बड़े-बड़े रेबड़ (झुंड) लेकर ये बक्करवाल कई-कई किमी दूर तक भेड़ों को चराने जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसे राजस्थान के कुछ खास समुदाय गर्मी के मौसम में गाय और भेड़ लेकर दूसरे राज्य और शहरों की ओर निकल जाते हैं. लेकिन बक्करवाल समुदाय की एक पहचान ये भी है कि सेना के बीच ये खासा पसंद किया जाता है. सेना के एक रिटायर्ड अफसर बताते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान इसी समुदाय के लोगों ने दुश्मन के बारे में जानकारी दी थी. 

सेना के इसी अफसर लेफ्टीनेंट कर्नल रिटायर्ड जीएम खान से किसान तक ने बातचीत कर जाना कौन है बक्करवाल समुदाय, ये क्या करता है, कैसी जिंदगी जीते हैं इस समुदाय के लोग. जीएम खान जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं जहां बक्करवाल समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं.

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एक परिवार में होती हैं 200 से 500 भेड़-बकरी 

जीएम खान ने किसान तक को बताया, ‘बक्करवाल समुदाय जम्मू क्षेत्र में रहता है. ये खानाबदोश की जिंदगी जीते हैं. जिसकी एक बड़ी वजह इनका पुश्तैनी पेशा है. बक्करवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरी पालते हैं. एक-एक परिवार के पास 200 से 500 तक भेड़-बकरी होती हैं. भेड़-बकरी को पालने के चलते ये लोग एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं. गर्मी का मौसम शुरु होते ही ये लोग अपने भेड़-बकरी लेकर कश्मीर की ओर निकल जाते हैं. 100-100 किमी का रास्ता ये लोग घोड़े-खच्चर पर और पैदल ही तय करते हैं. पहाड़ हो या जंगल का क्षेत्र कहीं भी ये अपने तम्बू लगा देते हैं. ये लोग पढ़े-लिखे नहीं होते हैं. जो थोड़े बहुत पढ़-लिख गए हैं तो वह राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. 

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कारगिल में बक्करवाल को ऐसे मिली थी दुश्मन की सूचना 

भेड़-बकरी चराने के चलते ही बक्करवाल समुदाय एक जगह से दूसरी जगह तक का लम्बा सफर तय करते हैं. साथ ही गर्मी और सर्दी के हिसाब से भी ये लोग अपनी जगह बदलते रहते हैं. जीएम खान बताते हैं, ‘इनके इसी पेशे के चलते ही भारतीय सेना को वक्त रहते कारगिल में घुसपैठ की सूचना मिल गई थी. बक्करवाल समुदाय से सेना को अक्सर बहुत मदद मिलती है. कारगिल की चोटी पर दुश्मन आ गया है ये सूचना भी सेना को पहली बार बक्करवाल समुदाय से ही मिली थी.

हुआ ये था कि गर्मियां शुरु होने के चलते ये लोग अपनी भेड़-बकरी लेकर कश्मीर की ओर जा रहे थे. क्योंकि ये लोग भेड़-बकरी साथ लेकर चलते हैं और अपनी जरूरी सामान घोड़े पर रखकर खुद पैदल चलते रहते हैं तो हर छोटी-बड़ी पहाड़ियों से होकर गुजरते हैं.

जंगल से होकर भी इनका गुजरना होता है. तो ऐसे ही कारगिल के पास से गुजरते हुए इनकी निगाह घुसपैठियों पर पड़ गई थी. जिसकी सूचना इन्होंने सेना को दी थी. मैं खुद वहां तैनात रहा हूं तो जानता हूं कि किस तरह से बक्करवाल समुदाय घूमते-फिरते आतंकवादियों के बारे सेना को सूचनाएं देता रहता है. क्योंकि ये खानाबदोश की जिंदगी जीते हैं तो इसलिए दूसरे और लोगों से इनका ज्यादा कोई लेना-देना नहीं होता है.’
 

 

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