उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के कृषि विकास के लिए रोडमैप तैयार करेगी. उत्तर प्रदेश कृषि विकास का ये रोडमैप 25 साल के लिए तैयार होगा. लखनऊ में आयोजित हुई विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों,आईसीएआर संस्थानों, सीजीआईएआर संगठनों के अनुसंधान वैज्ञानिकों और प्रबंधकों की हुई बैठक में राज्य के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने रोडमैप बनाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा देश में कृषि क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के अग्रणी राज्य होने के कारण, राज्य में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों में विकास की आपार संभावनाएं हैं.
पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, भारत सरकार के डॉ पंजाब सिंह ने छोटे और सीमांत किसानों की स्थिरता के लिए किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली सभी तकनीकों पर एक रणनीति विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.इसके साथ डॉ. सिंह ने जलवायु परिवर्तन, मूल्यसंवर्धन और प्रसंस्करण की समस्या के समाधान के लिए एक अच्छी रणनीति विकसित करने पर जोर दिया.
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कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह ने कृषि क्षेत्र की प्रमुख उपलब्धियों और प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. संजय सिंह, महानिदेशक उपकार ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और कार्यशाला के विषय पर प्रकाश डाला. डॉ. सिंह ने राज्य में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए उपकार के विजन की पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश के कृषि शोध, शिक्षा एवं प्रसार में सभी संस्थानों के बीच समन्वयन विकसित करने पर बल दिया.
उत्तर प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार डॉ. केवी राजू ने उपकार, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, आईसीएआर के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्र और सीजीआईएआर संस्थानों के बीच मजबूत संबंधों और सहयोग की जरूरत बताई.उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कृषि क्षेत्र के विकास के लिए उपयुक्त रणनीति और रोड-मैप तैयार करने के लिए ही इस अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है.
इक्रीसेट के उपमहानिदेशक डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि विगत 60 वर्षों में वर्षा में कमी सहित उत्तर प्रदेश के सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की चुनौतियों जैसे परिवर्तित हाइड्रोलॉजिकल चक्र, एकल फसल प्रणाली से भूमि का क्षरण, लवणता और विभिन्न अजैविक और जैविक तनावों की उत्पत्ति, उत्पादकता में गिरावट, उच्च जल-ऊर्जा-कार्बन फुटप्रिंट के साथ खेती की बढ़ती लागत, मुख्य रूप से घटते भूजल और उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी उपयोग जैसी कई चुनौतिया है, जिस. डॉ. कुमार ने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद राज्य में कृषि विकास की अपार संभवनाए है ,जिसका समुदायों के पारंपरिक ज्ञान के साथ विज्ञान आधारित साक्ष्यों को मिलाकर उपयोग किया जा सकता है।
एसकेआरएयू, बीकानेर के कुलपति डॉ.अरुण कुमार ने बैठक में अनुसंधान संस्थानों या संगठनों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के वैज्ञानिक प्रसार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती की बेहतर संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए आईसीएआर-आईआईएसआर लखनऊ के निदेशक डॉ. आर विश्वनाथन ने उत्तर प्रदेश के गन्ना परिदृश्य को प्रस्तुत किया और उसके बाद आयोजित तकनीकी सत्रों में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों में उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने जरूरी चीजों को रेखांकित किया .
सीजीआईएआर के विभिन्न संगठनों जैसे इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट), इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (इरी), इंटरनेशनल मेज एंडव्हीट इम्प्रूवमेन्ट सेंटर (सिमिट), इंटरनेशनल वॉटर मेनेजमेंट इंस्टीट्यूट (आईडबल्यूएमआई), इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर (सीआईपी), इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (सिएट), इंटरनेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च इन द ड्राई एरियाज (इकार्डा) और वर्ल्डफिश सेंटर (वर्ल्डफिश) के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रमुख प्रतिभागी के रूप में कार्यशाला में उपस्थित थे. आईसीएआर केबिभिन्न संस्थानों के निदेशक औऱ कृषि वैज्ञानकि उपस्थित थे.