साल 2020 में पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत भी कोविड-19 (COVID-19) महामारी की चपेट में आ गया. इस महामारी ने हर वर्ग के लोगों को प्रभावित किया, लेकिन सबसे अधिक असर किसानों और कृषि व्यवस्था पर पड़ा. हालांकि ये भी सच है कि जब बड़ी-बड़ी कंपनी घाटे में चल रही थी और देश कि आर्थिक स्थिति संकट में थी तब कृषि ने एक बाद फिर देश की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा. लॉकडाउन की वजह से जब शहर बंद हुए, तब गांवों में भी फसल कटाई और अनाज की बिक्री से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं सामने आईं. सड़कों पर न तो गाड़ियां थीं और न ही किसानों के मन में कोई उम्मीद थी कि फसल काटकर बाज़ार ले जाई जा सके. बड़ी संख्या में मज़दूर अपने शहरों को लौट गए थे, जिसके कारण यह एक बड़ी समस्या बन गई थी. कई किसान खुद ही खेतों में जाकर फसल काटने लगे, लेकिन तब भी मंडी की व्यवस्था ने किसानों को हरा दिया था.
मजदूरों की कमी लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूर अपने गांव लौट गए, जिससे खेतों में फसल काटने के लिए पर्याप्त श्रमिक नहीं मिले. लॉकडाउन के दौरान कृषि यंत्रों की सप्लाइ और मरम्मत सेवा बंद हो गई, जिससे किसानों को हार्वेस्टर, ट्रैक्टर जैसी मशीनों का उपयोग करने में परेशानी हुई. जब तक मजदूर और मशीन मिलते, तब तक बारिश या आंधी ने कई जगहों पर खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया.
कई राज्यों में मंडी या कृषि उपज बाजार समितियां (APMC) पूरी तरह बंद कर दी गईं. इससे किसान अपनी उपज बेच नहीं पाए और अनाज घर में ही पड़ा रह गया. लॉकडाउन के चलते ट्रक, ट्रैक्टर और अन्य परिवहन सेवाएं बंद हुईं, जिससे किसान मंडी तक अपनी फसल नहीं पहुंचा पाए. कुछ राज्यों में समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी का काम समय पर नहीं शुरू हो सका, जिससे किसानों को बिचौलियों के हाथों कम दाम पर फसल बेचनी पड़ी.
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कोविड संकट के दौरान सरकार ने कई कदम उठाए, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत किसानों को आर्थिक सहायता दी गई. ई-नाम (e-NAM) पोर्टल के जरिए ऑनलाइन फसल बिक्री को बढ़ावा दिया गया. छोटे मंडी समूह और मोबाइल खरीद केंद्र बनाए गए ताकि भीड़-भाड़ कम हो और किसान पास ही में फसल बेच सकें.