आज भारत सरकार और किसानों के बीच लड़ाई का एक मात्र सबसे बड़ा कारण है फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी. सरकारी बयानों और प्रचारों में खूब दावे होते हैं कि किसानों को उनकी फसलों पर एमएसपी के मुताबिक उचित दाम मिल रहे हैं. मगर एमएसपी की सारी पोल खुद सरकारी आंकड़े ही खोल देते हैं. कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट में ये सामने आया कि जून के आखिरी सप्ताह में फसलों पर दिया गया बाजार भाव MSP से बेहद कम है. कुछ फसलों पर तो ये MSP से 20 प्रतिशत तक कम दिया गया और इनमें कुछ ऐसे कृषि उत्पाद भी शामिल हैं, जिन्हें भारत सरकार दूसरे देशों से आयात करती है, मगर फिर भी किसानों को उन्हीं फसलों का MSP पर दाम नहीं दिया गया.
कृषि मंत्रालय से मिले आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 के अंतिम सप्ताह में सभी प्रमुख फसलें MSP से नीचे बिकी हैं, जिससे किसानों की आय पर सीधा असर पड़ा है. पूरे देश के थोक मंडी भाव के आंकड़े साफ दिखा रहे हैं कि चावल, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, सोयाबीन और मूंगफली जैसी फसलें एमएसपी से 10 से 20 प्रतिशत तक कम कीमतों पर बिक रही हैं. इस आंकड़े में सबसे कम दाम मूंग और मूंगफली के दिखाए गए हैं, जो एमएसपी से क्रमशः 19.67% और 19.73% नीचे हैं.
कृषि मंत्रालय के जून 2025 के आखिरी सप्ताह के इस आंकड़े में दिख रहा है कि जिस धान का दाम 2300 रुपये प्रति क्विंटल है, उसका बाजार में किसानों को 2079 रुपये दाम मिला. यानी कि एमएसपी से 9.61% कम दाम दिया गया.
कृषि मंत्रालय की इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात ये भी है कि अरहर, मूंग, उड़द और सोयाबीन जैसी फसलें, जिन्हें भारत विदेशों से आयात करता है, उन्हें भी किसान एमएसपी से बहुत कम कीमतों पर बेचकर जा रहे है. यानी कि अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति की भरमार और घरेलू खरीद की सुस्ती, किसानों को डबल नुकसान की ओर धकेल रही है. गौरतलब है कि जलवायु पर्विरतन और बढ़ती महंगाई के कारण, खेती की लागत लगातार बढ़ रही है. लेकिन मंडी में किसान अपनी फसलों को या तो घाटे में या एमएसपी से नीचे बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार इस हालात पर तुरंत ध्यान दे, खासकर खरीफ सीजन की बुवाई के वक्त जब किसान नई फसल लगा रहे हैं.
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