महाराष्ट्र के किसान प्याज के आंसू रोने को मजबूर हैं, इसके कारण कुछ आसमानी और कुछ सरकारी है. इस साल प्याज की बंपर फसल हुई. जहां ये पिछले साल 284 लाख मीट्रिक टन थी, वहीं इस साल 307.7 मीट्रिक टन प्याज की पैदावार हुई. मगर मई महीने से हुई बारिश ने 20% फसल खराब कर दी. स्टोरेज में भी रखी प्याज की फसल भी खराब हो रही है. इतना ही नहीं बाजार का हाल भी खस्ता है. जहां पिछले साल 4-5 अगस्त को प्याज 3000 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी, वहीं इस साल 4-5 अगस्त को इसका औसत दाम 1200 रु/क्विंटल है, जबकि लागत मूल्य 22 रु से भी ज्यादा है. जाहिर है कि किसान भारी नुकसान में जा रहे हैं.
प्याज का इस साल निर्यात भी काफी कम हुआ है. पिछले दो साल के मुकाबले सीधे 50% तक की कम एक्सपोर्ट में कमी आई है.
वर्ष | उत्पादन (लाख टन) | निर्यात (%) |
2022-23 | 300 | 25.25 |
2023-24 | 284 | 17.11 |
2024-25 | 307.7 | 12 |
गौरतलब है कि पिछले साल प्याज एक्सपोर्ट बैन के बाद पाकिस्तान और चीन के प्याज की बल्ले बल्ले हो गई. गल्फ, वियतनाम, म्यांमार, अरब अमीरात जैसे देश अब पाकिस्तान की प्याज खा रहे हैं. यही वजह है कि पाकिस्तान और चीन ने प्याज का प्रोडक्शन बढ़ाया है, इन देशों ने तुरंत एक्सपोर्ट पर सब्सिडी शुरू की और नतीजा यह रहा कि भारतीय प्याज 250 डॉलर प्रति टन तो पाकिस्तान का प्याज 120 डॉलर प्रति टन बिक रहा है. इससे भारतीय एक्सपोर्टर परेशान हैं.
भारत का सबसे बड़ा प्याज आयातक देश बांग्लादेश था. भारत के कुल एक्सपोर्ट का लगभग 20% प्याज अकेला बांग्लादेश आयात करता था. मगर अब बीते 4 महीनों से बॉर्डर बंद है और आयात ठप पड़ा है. इसी क्रम में श्रीलंका ने भी प्याज का लोकल प्रोडक्शन बढ़ाया है. 2024-25 में 307 लाख मीट्रिक टन प्याज उत्पादन का भारत से सिर्फ 12% एक्सपोर्ट हुआ है, जो कि औसत 24 प्रतिशत एक्सपोर्ट होता है. इसलिए 12 प्रतिशत यानी लगभग 42 लाख मीट्रिक टन प्याज अब किसानों के भंडारण में खराब हो रहा है.
नासिक के वडनेर गांव के किसान सोमनाथ जाधव कहते हैं कि अभी जो दाम मिल रहे हैं उससे हम नाखुश हैं. जबकि भाव 3 हजार रुपये होना चाहिए था. इस साल नुकसान हुआ है, 1100 रु भाव मिलेगा तो 300 रुपया तो गाड़ी-भाड़ा में जाता है. बोरी का खर्च अलग से लगता है. 600-700 रुपए से क्या होगा. प्याज किसान सोमनाथ अपने प्याज भंडारण से खराब हो चुकी प्याज अलग निकालकर सही प्याज छांट रहे थे. सोमनाथ ने कहा कि एक एकड़ में 40% प्याज बारिश से खराब हो गया, अनुमान था कि बाजार बढ़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगर नैफेड NCCF प्याज खरीदी कर रहा है तो बाजार में दाम क्यों नहीं बढ़ रहे.
वहीं किसान निवृत्ति पोरजे ने बताया कि एक महीने पहले यानी मई में बारिश शुरू हुई. उससे प्याज खराब हुई, बची हुई ज्यादा पैसे देकर निकालनी पड़ी. उन्होंने कहा एक बीघा प्याज लगाने में 50 हजार रुपये प्रति बीघे का खर्च है. सरकार को हमारी तरफ ध्यान देना चाहिए और हमें कम से कम 3000 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिलना चाहिए.
वहीं अच्छी बारिश से कर्नाटक और मध्य प्रदेश की प्याज जल्दी आ गई. इसका असर महाराष्ट्र के प्याज पर पड़ेगा. पिछले पांच साल की तस्वीर से ऐसा ही दिखाता है. जैसे ही कर्नाटक से प्याज आता है, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से महाराष्ट्र के प्याज की मांग कम हो जाती है. गुजरात और राजस्थान से आने वाले प्याज की वजह से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के बाजारों में भी गिरावट आई. नासिक से दिल्ली तक ट्रांसपोर्ट लागत 22 रुपये प्रति किलो है, जबकि मध्य प्रदेश से आने वाले प्याज की कीमत 16-18 रुपये है. लिहाजा, गुणवत्ता की तुलना में कीमत अधिक महत्वपूर्ण हो गई. यही कारण है कि नासिक या महाराष्ट्र का प्याज पीछे रह गया.
प्याज उत्पादक किसान संगठन ने लासलगांव में राज्यस्तरीय एक बैठक की जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से गुहार लगाई है कि वह खुद यह आकर स्थिति का जायजा लें. इस अनुरोध पर लासालगांव मंडी के डायरेक्टर ने भी मुख्यमंत्री को स्थिति को अवगत करने के लिए और लासालगांव आने के लिए लेटर लिखा है. प्याज उत्पादक किसान संगठन के भारत दिघोले कहते हैं कि अगर यही हाल रहा तो किसान प्याज की बुआई नहीं करेंगे, जिससे अगले साल 100 या 200 रुपये प्रति किलो वाला ग्राहक को प्याज खाना होगा.
वहीं दूसरी तरफ व्यापारी और एक्सपोर्टर परेशान है. इंडियन हॉर्टिकल्चर एक्सपोर्ट एसोशिएशन के विकास सिंह कहते हैं कि कुछ साल पहले पाकिस्तान के ऐसे हालात थे कि वह चोरी-छुपे या तस्करी कर इन चार महीनों में भारत की प्याज खाता था. मगर अब वही पाकिस्तान बेच रहा है. एक्सपोर्ट की कमजोर पॉलिसी की वजह से हम काफी सारा मार्केट खो चुके हैं. अगर इस साल किसानों को भारी नुकसान हुआ, तो अगले साल कोई बुआई नहीं होगी. फिर देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इसलिए निर्यात-संवर्धन नीतियों, परिवहन रियायतों और प्रोत्साहनों की आवश्यकता है.
किसान और इंडियन हॉर्टिकल्चर एक्सपोर्ट एसोशिएशन की एक टीम ने केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की और निर्यात सब्सिडी, ट्रांसपोर्ट सब्सिडी पर चर्चा भी की. अब इस मुद्दे पर जल्द ही कोई फैसला होने की उम्मीद है. प्रह्लाद जोशी से हुई इस मीटिंग में निर्यात योग्य नीति को तत्काल अपनाना, परिवहन लागत के लिए सब्सिडी, किसानों को प्रति क्विंटल 200 से 300 रुपये की सब्सिडी, 'एनसीसीएफ' और 'नेफेड' के लिए वैकल्पिक व्यवस्था जैसी सिफारिशें की गई हैं.
(रिपोर्ट- प्रवीण ठाकरे)
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