Mulberry Farming: जम्मू-कश्मीर में रेशम उत्पादन को लगी बूस्टर डोज, 5,000 से ज्यादा किसानों के लिए हुआ इतना बड़ा काम

Mulberry Farming: जम्मू-कश्मीर में रेशम उत्पादन को लगी बूस्टर डोज, 5,000 से ज्यादा किसानों के लिए हुआ इतना बड़ा काम

जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सेरीकल्चर विभाग ने बड़ा कदम उठाया है. कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के समग्र विकास (HDB) योजना के तहत किसानों को बड़ी संख्या में शहतूत के पौधे बांटे जा रहे हैं. इस पहल का उद्देश्य गांवों में रेशम उत्पादन को बढ़ाकर रोजगार के नए मौके पैदा करना है.

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क‍िसान तक
  • उधमपुर,
  • Dec 28, 2025,
  • Updated Dec 28, 2025, 2:10 PM IST

जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर जिले में सेरीकल्चर विभाग ने एग्रीकल्चर और उससे जुड़े सेक्टरों के संपूर्ण विकास (HDB) योजना के तहत एक लाख से ज़्यादा शहतूत के पौधे उखाड़कर किसानों को बांटे हैं. इसका मकसद इस क्षेत्र में रेशम उत्पादन पर आधारित रोजगार को बढ़ावा देना है. ANI से बात करते हुए, उधमपुर के सेरीकल्चर सुपरवाइजर हंसराज शर्मा ने बताया कि इस वर्तमान पहल के तहत 5,000 से ज़्यादा किसानों को लगभग 1.10 लाख शहतूत के पौधे बांटे जा रहे हैं. शर्मा ने कहा कि अभी हम HDB स्कीम के तहत किसानों को शहतूत के पौधे बांट रहे हैं. 5,000 से ज़्यादा किसानों को करीब 1.10 लाख पौधे बांटे जा रहे हैं. 

बारिश नहीं हुई तो बढ़ेंगी चुनौतियां

मौसम से जुड़ी चिंताओं पर जोर देते हुए, शर्मा ने कहा कि इस इलाके में अभी सूखा पड़ रहा है. अगर अगले 15 से 20 दिनों में बारिश होती है, तो कोई दिक्कत नहीं होगी. हालांकि, अगर एक महीने तक सूखा रहता है, तो कुछ चुनौतियां आ सकती हैं, उन्होंने कहा, और यह भी बताया कि इस काम में लगभग 15-20 लोगों की टीम लगी हुई है. शर्मा ने आगे कहा कि इस क्षेत्र में किसानों के लिए रेशम उत्पादन आय का एक भरोसेमंद जरिया बना हुआ है. 

रेशम उत्पादन से किसानों को अच्छी कमाई

उधमपुर के सेरीकल्चर सुपरवाइजर हंसराज शर्मा ने कहा कि रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को अच्छी इनकम होती है और वे हर साल अपना काम जारी रखने के लिए वापस आते हैं. इस योजना के तहत किसानों को प्रति पौधा 70 रुपये दिए जाते हैं. इसका मतलब है कि अगर कोई किसान 100 पौधे लगाता है, तो उसे 7,000 रुपये मिलते हैं, जो एक बड़ा फायदा है. उन्होंने आगे कहा कि कोकून उत्पादन इनकम का एक स्थिर और टिकाऊ सोर्स देता है, जिससे रेशम उत्पादन ग्रामीण परिवारों के लिए एक फायदेमंद रोजगार का ऑप्शन बन जाता है.

मजदूरों के लिए भी फायदेमंद

इस बीच, इस काम से जुड़े एक मजदूर सरवन कुमार ने कहा कि रेशम उत्पादन से मिलने वाला मौसमी रोजगार उनके जैसे मजदूरों के लिए फायदेमंद रहा है. उन्होंने कहा कि हम 10-12 लोग हैं जो यहां मजदूरी करने आते हैं. हम हर साल यहां आते हैं. ये शहतूत के पेड़ हैं और हम हर साल जमीन जोतते हैं. हमें इस काम से बहुत फायदा होता है. हम हर साल इन पेड़ों से कोकून भी निकालते हैं. सेरीकल्चर विभाग के अनुसार, इस योजना के तहत 5,000 से अधिक किसानों को करीब 1.10 लाख शहतूत के पौधे दिए जा रहे हैं. इस पहल का उद्देश्य गांवों में रेशम उत्पादन को बढ़ाकर रोजगार के नए मौके पैदा करना है. 

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