
पंजाब के 23 में से 15 जिलों में फैली 5,300 एकड़ से ज़्यादा की फसलें अगस्त-सितंबर में आई बाढ़ में बह गई. राज्य में बाढ़ प्रभावित इलाकों की विशेष गिरदावरी पूरी होने के बाद, कुल 5,307 एकड़ जमीन का आंकड़ा सामने आया है. अगस्त में रावी, ब्यास और सतलुज में पानी के भारी प्रवाह के कारण और ब्यास के तटबंधों में लगभग 55 दरारें आने के कारण नदी के मार्ग बदलने के कारण यह जमीन बह गई.
अंग्रेजी अखबार 'द ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज़्यादा जमीन अमृतसर (1,515 एकड़), फिरोज़पुर (1,101 एकड़), गुरदासपुर (544 एकड़), नवांशहर (539 एकड़), कपूरथला (376 एकड़), लुधियाना (264 एकड़), फाज़िल्का (244 एकड़), मोहाली (208 एकड़), पठानकोट (118 एकड़) और जालंधर (100 एकड़) में बह गई. तरनतारन, पटियाला, होशियारपुर और मोगा में, बही जमीन 100 एकड़ से भी कम है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, बाढ़ में बह चुकी ज़्यादातर ज़मीन निजी मालिकाना वाली थी. सालों से, जैसे-जैसे नदियां घुमावदार रास्ते से गुजरीं और अपना रास्ता बदला, जिसके बारे में राजस्व अधिकारियों का दावा है कि एक दशक में यह लगभग 100 फ़ीट हो सकता है, इस खुली ज़मीन पर पहले अतिक्रमण हुआ और बाद की सरकारों ने इसे लोगों को आवंटित कर दिया. इसके अलावा, पिछले कई दशकों से गांव की भूमि का एक हिस्सा नदी के अंदर है जो कभी नदी का तल हुआ करता था.
तरनतारन जिले में, भलोजाला और हरिके के बीच लगभग 50 गांवों की जमीन का कुछ हिस्सा ब्यास नदी के तल में आता है, और हरिके और मुथियांवाला के बीच का हिस्सा सतलुज नदी के तल में आता है. चूंकि यह जमीन काफी सस्ती है और पहले बाढ़ का ख़तरा इतना ज़्यादा नहीं रहा, इसलिए कई लोग इस सस्ती ज़मीन को ख़रीदना एक अच्छा निवेश मानते हैं. लेकिन इस बार जब नदियां उफान पर थीं और बाढ़ आई, तो इस ज़मीन का एक हिस्सा बह गया.
हालांकि राज्य सरकार और केंद्र सरकार नदियों में अवैध खनन के मुद्दे पर एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं, जिसके कारण बाढ़ आती है, लेकिन निजी तौर पर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के राजस्व अधिकारियों का कहना है कि अवैध खनन के कारण ही भूमि बह गई. बताया जा रहा है कि राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष से सहायता के नियमों के अनुसार, इस ज़मीन के मालिकों को 19,000 रुपये प्रति एकड़ (या 47,000 रुपये प्रति हेक्टेयर) का मुआवज़ा मिलेगा.
मगर माना जा रहा है कि बाढ़ का पानी कम होने और पानी की धारा संकरी होने के बाद भी, ज़मीन के मालिक इस ज़मीन पर, जहां बह जाने के बाद गहरे गड्ढे बन गए हैं, तीन-चार साल तक खेती नहीं कर पाएंगे. केवल मनसा, मुक्तसर, संगरूर, बरनाला, बठिंडा, फरीदकोट, मलेरकोटला और फतेहगढ़ साहिब ही ऐसे जिले हैं जहां जमीन बहने से बच गई है.
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