केंद्र सरकार की यह मंशा है कि भारत का किसान केवल फसल उगाने वाला 'उत्पादक' न बना रहे, बल्कि अपनी उपज की खुद प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करके 'उद्यमी' बने. लक्ष्य यह है कि किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकें. लेकिन, इस राह में सबसे बड़ी बाधा बड़ी कंपनियों का आक्रामक प्रचार और बाज़ार में फैलाया गया भ्रम है. किसान जब अपना शुद्ध उत्पाद लेकर बाज़ार में पहुंचता है, तो उसे बड़ी कंपनियों की चमकदार पैकिंग और भ्रामक विज्ञापनों से मुकाबला करना पड़ता है. ऐसी ही एक बड़ी समस्या का सामना देश के मधुमक्खी पालक (मौनपालक) कर रहे हैं. वे प्राकृतिक शहद को प्रोसेस करके बेचते हैं, लेकिन ग्राहकों के बीच फैले एक 'भ्रम' के कारण उनके शुद्ध शहद को भी शंका की नज़रों से देखा जाता है.
किसानों की इन्हीं समस्याओं को सीधे उन्हीं से सुनने के लिए क्रेंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान 'कृषि चौपाल' का आयोजन कर रहे हैं. कल, यानी 18 अक्टूबर को, गोरखपुर के डूमरी खुर्द में आयोजित ऐसी ही एक चौपाल में यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठा. गोरखपुर के एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालक, राजू सिंह ने कृषि मंत्री को अपनी समस्या बताते हुए कहा कि हमारे क्षेत्र में सरसों की खेती सबसे ज्यादा होती है. हम मधुमक्खियों से सरसों का प्राकृतिक शहद निकालते हैं, उसे प्रोसेस करके बेचते हैं. लेकिन सरसों के शहद की एक प्राकृतिक प्रवृत्ति है; जैसे ही तापमान में उतार-चढ़ाव होता है, वह जम जाता है. "उन्होंने आगे अपनी असली चुनौती बताई, "जैसे ही हमारा शहद जमता है, उपभोक्ता को शक हो जाता है कि यह शहद असली नहीं है. इसमें चीनी मिलाई गई है. बाज़ार में यह भ्रम फैला दिया गया है कि 'असली शहद कभी जमता नहीं है'. इस वजह से हम किसानों को अपना शुद्ध उत्पाद बेचने में भी भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है." कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस गंभीर समस्या को संज्ञान में लिया और इसके सही तथ्य और समाधान पर काम करने का आश्वासन दिया.
शहद का जमना, जिसे अंग्रेजी में 'क्रिस्टलाइजेशन' (Crystallization) कहते हैं, एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. यह शहद के नकली या खराब होने का संकेत नहीं, बल्कि कुछ मामलों में उसकी शुद्धता का प्रमाण है. इस विषय पर 'किसान तक' ने नौणी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश) की मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ और प्रोफेसर डॉ. किरण राणा से जानकारी ली.डॉ. राणा बताती हैं, "शहद में मुख्य रूप से दो प्रकार की प्राकृतिक शर्करा (Natural Sugars) होती है - ग्लूकोज (Glucose) और फ्रुक्टोज (Fructose). जिस शहद में प्राकृतिक ग्लूकोज की मात्रा ज्यादा होती है, वह जल्दी जमता है. मधुमक्खियाँ जब सरसों के फूलों से परागकण (Pollen) लेती हैं, तो उस शहद में प्राकृतिक रूप से ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है. इसीलिए तापमान कम होने या घटने-बढ़ने पर सरसों का शहद जम जाता है. यह पूरी तरह से सामान्य और प्राकृतिक है."
प्रोफेसर राणा ने एक चौंकाने वाली बात बताई, जो उपभोक्ताओं के भ्रम को तोड़ती है. उन्होंने कहा, "अगर सरसों का शहद तापमान के उतार-चढ़ाव के बावजूद बिल्कुल नहीं जम रहा है, तो यह शंका का विषय है. इसका मतलब यह हो सकता है कि या तो प्रोसेसिंग के दौरान शहद में ऊपर से कृत्रिम फ्रुक्टोज मिलाया गया है, या शहद को इतना ज्यादा गर्म कर दिया गया है कि उसके प्राकृतिक गुण ही नष्ट हो गए हैं. "उन्होंने स्पष्ट किया कि हर शहद एक जैसा नहीं होता. "जैसे लीची या अन्य कई फूलों से बना जो शहद होता है, उसमें फ्रुक्टोज की मात्रा ज्यादा और ग्लूकोज की मात्रा कम होती है. इस कारण ये शहद आसानी से नहीं जमते. "मिन अलेक्जेंडर सहायक प्रोफेसर, जैविक विज्ञान विभाग, शुआट्स, प्रयागराज है इस भ्रम को दूर करते हुए स्पष्ट किया कि शहद का जमनाएक प्राकृतिक प्रक्रिया है. सरसों के शहद में प्राकृतिक ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण यह तापमान के उतार-चढ़ाव पर जम जाता है. यह उसकी शुद्धता का संकेत है. जो सरसो का शहद बिल्कुल नहीं जमता, उसमें मिलावट कृत्रिम फ्रुक्टो होने की आशंका हो सकती है.
डॉ. किरण राणा ने बताया कि शहद जमने का यह भ्रम केवल भारत में ही है. जबकि विदेशों में, विशेषकर यूरोपीय देशों में, जमे हुए शहद को बहुत शुद्ध माना जाता है और उसकी मांग भी अधिक होती है. वहां के उपभोक्ता इस विज्ञान को समझते हैं कि शहद का जमना उसकी प्राकृतिक संरचना का हिस्सा है. अक्सर लोग शहद के जम जाने पर उसे नकली समझकर फेंक देते हैं या उसका इस्तेमाल बंद कर देते हैं. प्रोफेसर राणा ने उपभोक्ताओं को एक सरल सुझाव दिया है. अगर आपका शहद विशेषकर सरसों का जम गया है, तो उसे इस्तेमाल करने का सही तरीका है. शहद की बोतल या डिब्बे को सीधे आंच पर या पानी में डालकर उबालें नहीं. ऐसा करने से शहद के प्राकृतिक गुण और एंजाइम नष्ट हो जाएंगे. इसका सही तरीका यह है कि आप एक बर्तन में पानी को उबाल लें) और फिर उस गर्म पानी में शहद के जार को रख दें.धीरे-धीरे गर्मी से शहद वापस अपने तरल स्वरूप में आ जाएगा. इस प्रक्रिया से शहद के गुण भी सुरक्षित रहते हैं और आपको उसका पूरा लाभ भी मिल पाता है.
कृषि मंत्री के सामने उठा यह मुद्दा सिर्फ एक किसान का नहीं, बल्कि देश के लाखों मधुपालकों का है. अगर सरकार चाहती है कि किसान प्रोसेसिंग और मार्केटिंग से अपनी आय बढ़ाएं, तो यह ज़रूरी है कि उपभोक्ताओं को भी सही जानकारी देकर जागरूक किया जाए. बड़ी कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल कसने और शुद्धता के सही मानकों को प्रचारित करने की ज़रूरत है, ताकि राजू सिंह जैसे किसानों के 'जमे हुए शुद्ध शहद' को 'नकली' न समझा जाए.