ग्रामीण इलाकों में आज भी नदी-तालाब में जलकुंभी का पौधा पाया जाता है. यह देखने में जितना खूबसूरत है, पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए उतना ही हानिकारक है. जलकुंभी का पौधा तीव्र गति से बढ़ने की क्षमता रखता है. जिसके कारण यह जल्द ही पूरे तालाब या नदी को अपने आगोश में ले लेता है. जिसके कारण पानी के अंदर सूरज की रोशनी और हवा की भारी कमी हो जाती है. इसका असर पानी में रहने वाले जीवों पर पड़ता है. जिससे जलकुंभी को लेकर किसानों की समस्या हमेशा बनी रहती है. किसानों को बार-बार नदी या तालाब से जलकुंभी हटाने के लिए पैसे भी खर्च करने पड़ते हैं.
वहीं, इसके महत्व को समझते हुए कई लोग और संस्थाएं इसे आय का जरिया बनाने के लिए आगे आए हैं. आपको बता दें जिस जलकुंभी को आज तक आप जंगल समझते आ रहे थे वो अब किसानों की किस्मत बदल सकता है. वो कैसे आइए जानते हैं.
जलकुंभी से जुड़ी इस समस्या से निपटने के लिए झारखंड के जमशेदपुर के इंजीनियर गौरव आनंद ने अनोखा तरीका खोजा है. गौरव जलकुंभी के डंठल से रेशे तैयार करते हैं और बंगाल के शांतिपुर के बुनकरों की मदद से उनसे साड़ियां बनवाते हैं. वे वर्षों से जलकुंभी से कागज, चटाई और हस्तशिल्प बना रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसे एक कदम आगे ले जाने और पहली बार इसके रेशों को कपड़े के रूप में उपयोग करने का फैसला किया. उनकी सोच से ही दुनिया की पहली 'फ्यूजन साड़ी' तैयार हुई थी. पर्यावरण इंजीनियर गौरव 'स्वच्छता पुकारे' नाम की एक संस्था भी चलाते हैं.
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अपनी संस्था से जुड़े अभियान के तहत वह नदी और तालाब की सफाई का काम भी करते रहते हैं. इन्हीं अभियानों के दौरान उन्होंने देखा कि जल के प्रदूषित होने का मुख्य कारण जलकुंभी है. इसके बाद साल 2022 में उन्होंने करीब 16 साल पुराना करियर छोड़कर अपनी संस्था के काम पर ध्यान देना शुरू कर दिया. गौरव ने देखा कि जलकुंभी के तने के रेशे में सेल्यूलोज होता है और इसे जूट की तरह धागे में बदला जा सकता है. तब उन्होंने फैसला लिया कि वो जलकुंभी के रेशे को सूत बनाकर बुनकरों को देंगे.
फ्यूजन साड़ी जलकुंभी से धागे में कपास आदि मिलाकर बनाई जाती है. इस प्रोजेक्ट के जरिए गौरव चाहते थे कि लोगों को कपास जैसे प्राकृतिक संसाधनों का विकल्प मिले. आज वह करीब 25 किलो जलकुंभी से साड़ी तैयार कर रहे हैं. इससे टेरर ऑफ़ बंगाल मानी जाने वाली जलकुम्भी से तो निजात मिल ही रही है, साथ ही सस्टेनेबल फैशन को भी बढ़ावा मिल रहा है. साल 2022 में उन्होंने कुछ बुनकरों और गांव की महिलाओं की मदद से पहली फ्यूजन साड़ी बनाई. आज उनके साथ गांव की करीब 450 महिलाएं काम कर रही हैं. ये महिलाएं पानी से जलकुंभी निकालने, उसे सुखाने और धागा बनाने का काम करती हैं.