किसानों पर दिए गए उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान के बाद सियासत गरमाई हुई है. धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से एक कार्यक्रम में कई तीखे सवाल किए थे. उन्होंने पूछा था कि, 'आखिर किसानों से जो लिखित वादे किए गए थे, उन्हें क्यों नहीं निभाया गया. कृषि मंत्री जी, एक-एक पल भारी है. मेरा आपसे आग्रह है कि कृपया करके मुझे बताएं, क्या किसान से वादा किया गया था? किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया, वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं?' इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं. लेकिन, अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर धनखड़ किस वादे की याद दिला रहे थे, जिसके बहाने अब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भी निशाना साधा जा रहा है? जबकि वो छह महीने पहले ही मंत्री बने हैं. दरअसल, यह लिखित वादा 9 दिसंबर 2021 को किया गया था. तब चौहान कृषि मंत्री नहीं थे. तब कृषि और किसानों के कल्याण वाला महकमा नरेंद्र सिंह तोमर के पास था. बहरहाल, आईए समझते हैं कि वो वादा क्यों किया गया था और उस वादे में क्या है?
दरअसल, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की लीगल गारंटी को किसानों ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. इस समय किसानों का सबसे बड़ा मुद्दा एमएसपी की गारंटी यानी कृषि उपज का सुनिश्चित दाम ही है. इसकी कई वजह भी हैं, जिस पर आगे बात करेंगे. उससे पहले उस सरकारी वादे की बात जरूरी है, जिसे लेकर बार-बार किसान सवाल उठा रहे हैं और अब उप राष्ट्रपति ने भी उसी धुन को प्ले करके सरकार को असहज कर दिया है. सरकार ने किसानों से कुछ वादे लिखित में किए थे, लेकिन अब वो उससे मुकरती हुई दिखाई दे रही है. इन वादों की कड़ी किसान आंदोलन पार्ट-1 से जुड़ी हुई है.
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तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर 13 महीने तक चले आंदोलन को खत्म करवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद आगे आना पड़ा था. पीएम मोदी ने 19 नवंबर, 2021 को खुद इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी. इसके बावजूद किसान वापस जाने को तैयार नहीं थे. उन्हें आशंका थी कि सरकार अपने वादे से मुकर जाएगी. आंदोलन में तीन कृषि कानूनों को वापस लेना एक बड़ा मुद्दा था, लेकिन उसमें एमएसपी की लीगल गारंटी देने सहित और कई मांग भी उठ रही थी. ऐसे में आंदोलनकारी उन मुद्दों पर सरकार से लिखित वादा चाहते थे.
तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर पीएम मोदी के फैसले के बाद सरकार बैकफुट पर थी. ऐसे में सरकार को मजबूरी में सही लेकिन आंदोलनकारी किसानों को एक पत्र जारी करना पड़ा. तत्कालीन कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने 9 दिसंबर 2021 को यह पत्र लिखा, तब जाकर आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर से वापस अपने घरों को गए थे. इसी लिखित वादे की अब याद दिलाई जा रही है. शंभू और खनौरी बॉर्डर से किसान आंदोलन पार्ट-2 चला रहे किसानों का कहना है कि सरकार 9 दिसंबर 2021 को किए गए वादे से मुकर गई है.
तत्कालीन कृषि सचिव ने वादों का जो पत्र जारी किया था उसमें एक कमेटी के गठन की बात की गई थी. पत्र में लिखा था कि कमेटी का एक मेंडेट होगा कि देश के किसानों को एमएसपी मिलना किस तरह "सुनिश्चित" किया जाए. जिसका अंग्रेजी मतलब Ensure है. जबकि एमएसपी कमेटी के गठन के नोटिफिकेशन में न सुनिश्चित शब्द है और गारंटी. पत्र और नोटिफिकेशन में यह बारीक सा लेकिन बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फर्क है. आंदोलनकारी किसान मुख्य तौर पर कृषि उपज के दाम सुनिश्चित करवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, ताकि खेती से किसानों को घाटा न हो. लेकिन, जब इस कमेटी का नोटॉफिकेशन आया तब उसमें 'सुनिश्चित' जैसा कोई शब्द नहीं था.
कमेटी का गठन किस मकसद से किया गया है? लोकसभा में पूछे गए एक लिखित सवाल के जवाब में केंद्र ने इसकी जानकारी दी है. जिसमें कहा गया है कि कमेटी का गठन फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी देने के लिए नहीं बल्कि इसे और प्रभावी व पारदर्शी बनाने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फसल पैटर्न में बदलाव करने का सुझाव देने के लिए किया गया है.
इसी पत्र में सरकार की ओर से कहा गया है कि जहां तक किसानों को आंदोलन के वक्त के केसों का सवाल है, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्णतया सहमति दी है कि तत्काल प्रभाव से आंदोलन संबंधित सभी केसों को वापस लिया जाएगा. लेकिन किसान संगठनों का आरोप है कि अब तक किसानों पर लगाए गए केस वापस नहीं लिए गए हैं. किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि सरकार ने अपने इस वादे को भी नहीं निभाया है.
इसी पत्र में पराली के मुद्दे पर कहा गया था कि भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 एवं 15 में क्रिमिलन लाइबिलिटी से किसान को मुक्ति दी है. जबकि सच तो यह है कि इस साल भी कई राज्यों में पराली जलाने वाले किसानों पर एफआईआर दर्ज की गई है. गिरफ्तार करके उन पर जुर्माना लगाया गया है. बात यहीं खत्म नहीं होती है. पराली जलाने पर अब किसानों जुर्माने की राशि को केंद्र सरकार ने खुद दोगुना कर दिया है, जो अब 5,000 रुपये से शुरू होकर 30,000 रुपये तक हो गई है. ऐसे में केंद्र के वादों पर किसान कैसे ऐतबार करेंगे?
बीजेपी ने स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का वादा किया था. लेकिन क्या यह वादा आज तक पूरा हुआ? सरकार दावा करती है कि उसने रिपोर्ट लागू कर दी है. जबकि यह सच नहीं है. आयोग की सिफारिश सी-2 प्लस 50 परसेंट के फार्मूले पर एमएसपी घोषित करने की थी. लेकिन, इस सिफारिश को अब तक लागू नहीं किया गया है. अगर C-2+50 परसेंट फार्मूले के आधार पर एमएसपी लागू होता तो आज धान का जो सरकारी दाम 2300 है वह 3012 रुपये प्रति क्विंटल होता. मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी जो 7121 रुपये है वह 9345 रुपये होता. गेहूं का एमएसपी जो अभी 2275 है वो 2478 और चने का एमएसपी 5440 रुपये की बजाय 6820.5 रुपये प्रति क्विंटल होता.
सरकार द्वारा किसान आंदोलन पार्ट-2 का नेतृत्व कर रहे लोगों के साथ बातचीत बंद करने पर भी उप राष्ट्रपति ने सवाल उठाए हैं. धनखड़ ने कहा, 'मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही है. हम किसान को पुरस्कृत करने की बजाय, उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं.' दरअसल, किसान नेताओं और केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों (अर्जुन मुंडा, पीयूष गोयल और नित्यानंद राय) के बीच चार दौर की बातचीत हुई थी.
चौथी बैठक 18 फरवरी 2024 को हुई थी. लेकिन, उसके बाद बातचीत का सिलसिला बंद हो गया. जबकि किसान आंदोलन-2, पिछले 296 दिन से हरियाणा-पंजाब के शंभू और खनौरी बॉर्डर से जारी है. किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आना चाहते हैं लेकिन हरियाणा सरकार ने उन्हें रोका हुआ है. आंदोलनकारी किसान कई बार कह चुके हैं कि बातचीत के दरवाजे खुले हुए हैं, लेकिन केंद्र सरकार इस मामले पर मौन है.
नए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर मंगलवार को किसानों से मिलने का सिलसिला शुरू किया है, लेकिन आंदोलनकारी किसानों को अब तक नहीं बुलाया? सवाल यह है कि क्या उन पर कोई दबाव है? बहरहाल, अब देखना यह है कि सरकार उप राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए किसानों के दर्द की दवा करेगी या फिर मीटिंग-मीटिंग और प्रजेंटेशन-प्रजेंटेशन खेलकर आंकड़ों की बाजीगरी से काम चलाएगी?
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