देश के चीनी उत्पादन में इस साल बड़ी गिरावट देखी जा रही है. इंडियन शुगर एंड बायो एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) ने दावा किया है कि 15 फरवरी 2025 तक महज 197.03 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हो पाया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 27.12 लाख मीट्रिक टन कम है. पिछले साल यानी 15 फरवरी 2024 तक 224.15 लाख टन का उत्पादन हुआ था. इस तरह उत्पादन में 12 फीसदी की बड़ी गिरावट है. इससे चीनी महंगी हो सकती है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर उत्पादन में इतनी बड़ी गिरावट आई कैसे? आखिर एक्सपर्ट इसकी वजह क्या बता रहे हैं?
दरअसल, इसका प्रमुख कारण महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में गन्ने की फसल का खराब होना और इथेनॉल उत्पादन के लिए चीनी के डायवर्जन का बढ़ना है. गन्ने की फसल पर मौसम और विभिन्न रोगों का गहरा प्रभाव पड़ा है. विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मियों के महीनों में पानी की कमी के कारण गन्ने की फसल पर लंबे समय तक दबाव रहा. जब मॉनसून का मौसम शुरू हुआ तो अत्यधिक वर्षा और सीमित धूप के कारण भी फसल की बढ़ोतरी पर प्रतिकूल असर पड़ा. उत्तर प्रदेश में गन्ने में "लाल सड़न" और "चोटी बेधक" जैसे रोगों का प्रकोप हुआ है, जिससे बड़े पैमाने पर फसल खराब हुई है. इसके अलावा, कुछ जिलों में अधिक बारिश और बाढ़ के कारण भी गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ है. इन सभी कारणों के चलते गन्ने और चीनी उत्पादन में कमी आई है.
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गन्ने की आपूर्ति संकट से चीनी उद्योग पर गंभीर असर पड़ा है. रिपोर्ट बता रही है कि 77 शुगर मिलें समय से पहले बंद करनी पड़ी हैं. अगर स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो आगामी महीनों में चीनी की आपूर्ति में और कमी आ सकती है. आने वाले समय में और मिलें बंद होने की संभावना जताई जा रही है. आमतौर पर चीनी मिलें मार्च-अप्रैल तक चलती हैं, लेकिन इस साल गन्ने की फसल पर मौसम और विभिन्न रोगों के प्रभाव से मिलों को गन्ने की आपूर्ति में कठिनाई हो रही है.
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (NFCSF) की रिपोर्ट के अनुसार, 15 फरवरी तक 77 चीनी मिलों ने पेराई बंद कर दी है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि तक केवल 28 मिलों ने पेराई बंद की थी. कर्नाटक में 34 मिलों ने, महाराष्ट्र में 30 मिलों ने, तमिलनाडु में 4 मिलों ने और उत्तर प्रदेश में 2 मिलों ने पेराई बंद कर दी है.
इस्मा के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि में 67.77 लाख टन से घटकर 64.04 लाख टन रह गया है. महाराष्ट्र में यह 79.45 लाख टन से घटकर 68.22 लाख टन हो गया है, और कर्नाटक में 43.20 लाख टन से घटकर 35.80 लाख टन रह गया है. इन राज्यों में गिरते उत्पादन का असर समग्र चीनी उत्पादन पर पड़ा है.
एक और प्रमुख कारण जो चीनी उत्पादन में गिरावट का कारण बन रहा है, वह है इथेनॉल के लिए चीनी का डायवर्जन. जनवरी के अंत तक की स्थिति के अनुसार, इस्मा ने बताया कि लगभग 14.1 लाख टन चीनी का डायवर्जन इथेनॉल उत्पादन के लिए किया गया, जो पिछले वर्ष के मुकाबले काफी अधिक था. पिछले साल इसी अवधि में डायवर्जन लगभग 8.3 लाख टन था.
गन्ने की खराब फसल के कारण चीनी की रिकवरी दर भी घट चुकी है. पिछले साल इस समय तक औसतन 9.87 प्रतिशत चीनी की रिकवरी हो रही थी, जो अब घटकर 9.09 प्रतिशत रह गई है. सबसे ज्यादा गिरावट कर्नाटक में देखी गई है, जहां चीनी की रिकवरी दर 9.75 प्रतिशत से घटकर 8.50 प्रतिशत हो गई है. उत्तर प्रदेश में भी यह दर घटकर 9.30 प्रतिशत हो गई है, जबकि पिछले साल यह 10.20 प्रतिशत थी.
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