
अमेरिका के कृषि वैज्ञानिकों ने गजब का काम किया है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने गेहूं का ऐसा पौधा तैयार किया है जो खुद के लिए खाद बना सकता है. यह बड़ा शोध यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने किया है. इससे दुनिया भर में हवा और पानी का प्रदूषण कम हो सकता है और खेती का खर्च भी घट सकता है. भारत जैसे देश के लिए यह खुशखबरी है क्योंकि यहां खाद के लिए अक्सर मारामारी होती है. आज नहीं कल, अगर भारत में भी यह गेहूं उपलब्ध हो जाए तो किसानों को बहुत फायदा होगा.
अमेरिका में इस पौधे को तैयार करने का काम एक रिसर्च ग्रुप ने किया है जिसे प्लांट साइंसेज डिपार्टमेंट के जाने-माने प्रोफेसर एडुआर्डो ब्लमवाल्ड डायरेक्ट कर रहे हैं. जीन-एडिटिंग टूल CRISPR का इस्तेमाल करके, टीम ने पौधे में उसके एक नैचुरल केमिकल का प्रोडक्शन बढ़ाया. जब गेहूं की जड़ें इस एक्स्ट्रा कंपाउंड को आस-पास की मिट्टी में छोड़ती हैं, तो यह खास बैक्टीरिया की मदद करता है जो हवा से नाइट्रोजन को खाद के रूप में बदल सकते हैं. इसे आस-पास के पौधे सोख सकते हैं और खाद की कमी पूरी कर सकते हैं. इस प्रोसेस को नाइट्रोजन फिक्सेशन कहते हैं.
दुनिया के कई विकासशील देशों के लिए यह रिसर्च भरोसेमंद फसल उपज के लिए नया सपोर्ट दे सकती है.
ब्लमवाल्ड ने 'साइंस डेली' से कहा, "अफ्रीका में, लोग फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं करते क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं, और खेत छोटे होते हैं, छह से आठ एकड़ से बड़े नहीं होते." "सोचिए, आप ऐसी फसलें लगा रहे हैं जो मिट्टी में बैक्टीरिया को बढ़ावा देती हैं ताकि फसलों को नैचुरली जरूरी फर्टिलाइजर बन सके. वाह! यह बहुत बड़ा फर्क है!"
गेहूं के इस इनोवेशन और इस तकनीक को दूसरी मुख्य अनाज वाली फसलों तक बढ़ाने के लिए इसी तरह का काम चल रहा है.
गेहूं दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा पैदावार वाला अनाज है और नाइट्रोजन फर्टिलाइजर के इस्तेमाल का सबसे बड़ा हिस्सा, दुनिया भर में कुल इस्तेमाल का लगभग 18%, इसी का है. यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, 2020 में दुनिया भर में 8000 लाख टन से अधिक फर्टिलाइजर बनाया गया था.
पौधे आमतौर पर डाले गए नाइट्रोजन फर्टिलाइजर का सिर्फ 30 से 50% ही सोखते हैं. बाकी अक्सर नदियों और तटीय इलाकों में बह जाता है, जिससे ऑक्सीजन की कमी वाले "डेड जोन" बनते हैं जो पानी के इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं. मिट्टी में ज्यादा नाइट्रोजन से नाइट्रस ऑक्साइड बन सकता है, जो एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है.
नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया नाइट्रोजनेज नाम का एक एंजाइम बनाते हैं, जिसे कभी-कभी "फिक्सर" भी कहा जाता है क्योंकि यह नाइट्रोजन फिक्सेशन करता है. यह एंजाइम सिर्फ इन बैक्टीरिया के अंदर और सिर्फ कम ऑक्सीजन वाले माहौल में काम करता है. बीन्स और मटर जैसी फलियां अपने आप रूट नोड्यूल बनाती हैं जिससे नाइट्रोजन फिक्सेशन का काम पूरा होता है और खाद का काम चल जाता है.