
देशभर में ठंड तेजी से बढ़ रही है और इसके साथ ही कोहरा और स्मॉग (Smog) का असर भी दिखने लगा है. आने वाले दिनों में यह स्थिति किसानों के लिए चुनौती बन सकती है. कोहरा जहां तापमान को नीचे लाकर फसलों की वृद्धि पर असर डालता है, वहीं स्मॉग उससे भी अधिक नुकसानदायक साबित हो सकता है. स्मॉग यानी “स्मोक और फॉग” का मिश्रण होता है. इसमें धूल, धुआं और हानिकारक रासायनिक कण हवा में मिलकर एक परत बना लेते हैं, जो जमीन के करीब ठहर जाती है. इस परत के कारण सूरज की किरणें पौधों तक नहीं पहुंच पातीं. इसका सीधा असर फसलों में प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया पर पड़ता है, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन में कमी आती है.
ResearchGate और MDPI पर प्रकाशित कई वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि वायु में प्रदूषक कणों की अधिकता गेहूं जैसी रबी फसलों की उत्पादकता पर असर डालती है. 2022 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के इंडो-गैंगेटिक मैदानों में एरोसोल्स (Aerosols) के कारण गेहूं की उपज में औसतन 10 से 14 प्रतिशत तक की कमी देखी गई. इसी तरह, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी स्मॉग प्रभावित जिलों में गेहूं के दाने हल्के पाए जाने की रिपोर्ट सामने आई है, हालांकि यह क्षेत्र-विशिष्ट अध्ययन है और पूरे देश के लिए एक समान निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.
भारत में भी पिछले वर्षों में स्मॉग और ठंड के लम्बे दौर का असर सरसों, आलू और मसूर जैसी रबी फसलों पर देखा गया है. ‘डाउन टू अर्थ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में लगातार कोहरा और कम तापमान बने रहने से आलू, मसूर और सरसों को नुकसान हुआ था, जबकि गेहूं की पैदावार को कुछ हद तक फायदा मिला क्योंकि उसे अधिक ठंड और नमी की जरूरत होती है.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कोहरा और स्मॉग दोनों ही फसलों पर असर डालते हैं, लेकिन यह असर क्षेत्र, तापमान और नमी के स्तर के हिसाब से बदलता रहता है. स्मॉग से पौधों की पत्तियों की सतह पर सूक्ष्म कण जम जाते हैं, जिससे उनकी सांस लेने और प्रकाश ग्रहण करने की क्षमता घट जाती है. वहीं, कोहरा पौधों पर पानी की बारीक बूंदें जमा कर तापमान को और नीचे ले आता है, जिससे कीट और फफूंद संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह दे रहे हैं कि ऐसे मौसम में फसलों की सिंचाई का उचित प्रबंधन करें और पौधों को पोषक तत्व नियमित रूप से दें, ताकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. साथ ही, प्रदूषण नियंत्रण के लिए पराली जलाने से बचें और जैविक या यांत्रिक विकल्पों को अपनाएं.
स्मॉग और कोहरे का यह मिला-जुला असर अब सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र की भी चिंता बन चुका है. अगर प्रदूषण नियंत्रण के उपाय और फसलों की अनुकूल प्रबंधन रणनीतियां समय रहते नहीं अपनाई गईं तो आने वाले वर्षों में रबी फसलों की उत्पादकता पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है.