स‍िर्फ 4 द‍िन तक ज‍िंदा रहता है रेशम का कीड़ा, इनसे ही बनता है दुन‍िया का सबसे शानदार धागा

स‍िर्फ 4 द‍िन तक ज‍िंदा रहता है रेशम का कीड़ा, इनसे ही बनता है दुन‍िया का सबसे शानदार धागा

पशुपालन और मत्स्य पालन की तरह किसान रेशम कीट पालन कर भी आछ मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन इसके लिए किसानों के पास सही जानकारी का होना जरूरी है. ऐसे में अगर आप भी रेशम कीट पालन करना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए है...

रेशम कीट पालन रेशम कीट पालन
क‍िसान तक
  • Jan 01, 2023,
  • Updated Jan 01, 2023, 6:00 PM IST

रेशम का इतिहास जितना पुराना और दिलचस्प है उससे कई ज्यादा दिलचस्प है कि रेशम के कीड़े से दुन‍िया के सबसे खूबसुरत धागा बनने का सफर. जिससे दुनिया का सबसे उन्नत कपड़ा बनाया जाता है. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि रेशम के कीड़ों का जीवन काल महज 2 से 4 दिनों का ही होता है. ऐसे ही कई कीड़े रेशम उद्योग के ल‍िए पाले जाते हैं.  लेक‍िन, सब कीड़ो की उम्र अध‍िकतम 4 द‍िन ही रहती है. जो दुन‍िया के सबसे शानदार रेशम के धागे के जनक हैं. इन्हीं धागों से रेशम का कपड़ा बनता है. आइये जानते है क‍ि इन कीड़ों से कैसे रेशम का धागा बनता है. 

लार्वा हवा के संपर्क में आने पर बनता है धागा

रेशम का कीड़ा बेशक 4 द‍िन तक ज‍िंदा रहता है, लेक‍िन इस दौरान मादा रेशमकीट 300 से 400 अंडे देती है. लगभग 10 दिनों के अंदर, प्रत्येक अंडा से एक कीड़ा न‍िकलता है. जिसे लार्वा भी कहा जाता है. इसके बाद तीन से आठ दिनों तक यह रेशम कीट अपने मुंह से एक तरल प्रोटीन को निकालता है, जो हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाता है और एक धागे का रूप ले लेता है. जिसके बाद इस धागे से एक बॉल आकार बन जाता है जिसे हम कोकून कहते हैं. जिससे रेशम को तैयार किया जाता है. इस कोकून से रेशम प्राप्त करने के लिए इसे गर्म पानी में डाला जाता है. एक कोकून से 500 से 1300 मीटर लंबा रेशमी धागा प्राप्त होता है.धागा बनाने के दौरान कीड़ा खुद अपने ही बनाए रेशमी जाल में फस कर मर जाता है.

दुन‍िया का सबसे पुराना धागा है रेशम

रेशम की खोज 118 ईसा पूर्व चीन में हुई थी. इसका उत्पादन सबसे पहले नवपाषाण काल (New Stone Age) में चीन में शुरू हुआ और वहां से फिर पूरी दुनिया में फैल गया. रेशम उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. यहां हर तरह का रेशम तैयार किया जाता है और उसे बाहर भी भेजा जा रहा है. रेशम का रुमाल, शॉल पूरी दुनिया में मशहूर है. जिसकी एक लंबी कहानी है.

रेशम बोर्ड की स्थापना

भारत में 60 लाख से अधिक लोग विभिन्न प्रकार के रेशम कीटों के पालन में लगे हुए हैं. लोगों की इस बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए भारत में केंद्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान केंद्र की स्थापना साल 1943 में बहरामपुर में की गई थी. इसके बाद रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1949 में रेशम बोर्ड की स्थापना की गई.

रेशम कीट पालन करते वक़्त रखें इन बातों का ध्यान

अगर आप भी रेशम कीट पालन करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का खास ध्यान रखना होगा. भारत सरकार रेशम कीट पालन को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनिंग देने के साथ-साथ आर्थिक मदद भी दे रही है. इसके अलावा सरकार रेशम कीट पालन से जुड़ा साजो-सामान जैसे रेशम कीट के अंडे, कीटों से तैयार कोया बाजार मुहैया करवाने आदि में मदद करती है. ऐसे में अगर आप भी रेशम कीटों का पालन करना चाहते हैं तो सरकार द्वारा दिये गए संसाधनों का इस्तेमाल कर मुनाफा कमा सकते हैं.

भारत में रेशम की खेती

भारत में रेशम की खेती मुख्यतः तीन प्रकार से की जाती है. 
•    मलबेरी खेती
•    टसर खेती
•    एरी खेती

ये पेड़ हैं अनुकूूल

रेशम एक कीट के प्रोटीन से बना फाइबर है. सबसे अच्छा रेशम शहतूत और अर्जुन की के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनाया जाता है. कीड़ा शहतूत की पत्तियों को खाकर जो रेशम बनाता है, उसे शहतूत रेशम कहते हैं.

व्यावसायिक तौर पर रेशम की खेती

भारत में रेशम के कीड़ों की 5 विभिन्न प्रजातियों को व्यावसायिक तौर पर पाला जाता है ताकि रेशम का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सके. ये रेशमकीट विभिन्न खाद्य पौधों पर पाले जाते हैं. इन पांच किस्मों में से हमारे देश में शहतूत रेशम की सर्वाधिक किस्म का उत्पादन होता है. शहतूत रेशम के उत्पादन के लिए रेशमकीट बॉम्बेक्स मोरी को पाला जाता है.

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