Future of organic farming: देश में ऑर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ते रुझान और इसमें आने वाली मुश्किलों के बारे में Naturland organics के फाउंडर अजीत गोदारा से बातचीत की. अजीत गोदारा पिछले 20 साल से ऑर्गेनिक खेती और उसकी प्रोसेसिंग से जुड़े हैं. अजीत का मानना है कि आने वाले टाइम में इसके प्रति लोगों को ध्यान बढ़ेगा. अभी जहां करीब 2% एरिया में ऑर्गेनिक खेती हो रही है वो आने वाले सालों में 10 से 15% तक पहुंच सकती है. लेकिन इस नंबर तक पहुंचने में काफी मुश्किलों को भी पार करना होगा. जानिए क्या कहते हैं देश में ऑर्गेनिक खेती के आंकड़े.
साल 2020 में 27,80,000 हेक्टेयर में ऑर्गेनिक खेती |
साल 2023 में 1,01,70,000 हेक्टेयर में ऑर्गेनिक खेती |
2023 में हुआ 2.9 मिलयन मीट्रिक टन उत्पादन |
सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में होती है ऑर्गेनिक खेती |
ऑर्गेनिक इंडस्ट्री का भविष्य
- कोविड के बाद हेल्थ और वेलनेस की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है इसलिए वो ऑर्गेनिक और कम केमिकल वाले खाने की तरफ मुड़ रहे हैं. खाने में जरूरत से ज्यादा केमिकल और पेस्टीसाइड हर तरह की बीमारी की जड़ बनता जा रहा है ऐसे में ऑर्गेनिक खेती इंसानों को बीमारियों से बचा सकती है. बहुत ऐसी रिसर्च और स्टडी सामने आई हैं जिसमें ऑर्गेनिक प्रोडक्ट लोगों की सेहत के लिए बेस्ट साबित हो रहे हैं.
- 1975 में जब हरित क्रांति आई उसके बाद यूरिया और दूसरे पेस्टीसाइड का इस्तेमाल बढ़ गया . लेकिन लगातार इन केमिकल के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरकता खत्म होती जा रही है और मिट्टी खराब हो रही है. अब जमीन के उपजाऊपन में भी एक स्थिरता आ गयी है और पहले जितनी पैदावार के लिए यूरिया का डोज बढ़ाना पड़ता है. धरती को अगर उर्वरक बनाने के प्रयास नहीं किए तो ये चक्र ऐसे ही चलता जाएगा और इस चक्र को तोड़ने के लिए ऑर्गेनिक खेती की तरफ मुड़ना जरूरी है.
नेचुरल,ऑर्गेनिक और केमिकल फ्री फार्मिंग में अंतर
नेचुरल फार्मिंग का मतलब ऑर्गेनिक या केमिकल फ्री से नहीं. नेचुरल फार्मिंग का सीधा मतलब है कि जो कुछ प्रकृति से पैदा हो रहा है वो नेचुरल है. नेचुरल का मतलब ये नहीं कि उसमें केमिकल मिक्स नहीं. ऑर्गेनिक फार्मिंग में केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता चाहे वो यूरिया हो या दूसरे पेस्टीसाइड. हालांकि सिर्फ ऑर्गेनिक प्रोडक्ट कहने और सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्मिंग में अंतर है इसलिए कई बार जो लोग बिना रजिस्टर्ड हुए कम केमिकल के इस्तेमाल से खेती करते हैं वो उसे केमिकल फ्री या ऑर्गेनिक खेती भी बोल देते हैं.
ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए ये सर्टिफिकेट हैं जरूरी
- जो सामान्य खेती है उस कन्वेंशनल फार्मिंग बोला जाता है और उस जमीन को ऑर्गेनिक खेती की जमीन में बदलने में करीब 3 साल लगते हैं और फिर उस जमीन पर रजिस्टर्ड ऑर्गेनिक फार्मिंग होती है.
- दूसरा सर्टिफिकेशन किसान के लिए है जिसमें एक किसान या किसान के ग्रुप को ऑर्गेनिक फार्मिंग का सर्टिफिकेशन मिलता है. इसके बाद ट्रेडर कैटेगरी का सर्टिफिकेट आता है.ट्रेडर कैटेगरी वो होती है जिसमें कोई ऑर्गेनिक प्रोडक्ट खरीदता है और उसमें बिना बदलाव किए बेच देता है.
- तीसरी केटेगरी प्रोसेसर की है. इसमें ऑर्गेनिक प्रोडक्ट में वैल्यू एड करना, रीपैक करना शामिल है. ट्रेडिंग और प्रोसेससिंग सर्टिफिकेट में 2-3 महीने लगते हैं.
- देश में ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन देने के लिए 30 से ज्यादा सर्टिफिकेशन एजेंसी काम कर रही हैं जिसमें भारतीय कंपनी के अलाना MNC शामिल हैं. इनकी रेगुलेटरी बॉडी APEDA (एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी) है जो इन 30 से ज्यादा सर्टिफिकेशन एजेंसी को मॉनिटर और ऑडिट करती है. इनके अंदर किसान, ट्रेडर और प्रोसेसर सभी शामिल हैं. देश में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए NPOP(नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्ट) के स्टैंडर्ड मान्य हैं.
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ऑर्गेनिक फार्मिंग की मुश्किलें
- ऑर्गेनिक खेती में एक बड़ा चैलेंज है पैदावार का. फूड सेक्योरिटी को पूरा करने के लिए ज्यादा पैदावार चाहिए और ऑर्गेनिक फार्मिंग के जरिए ये संभव नहीं है. हालांकि ICAR(Indian Council of Agricultural Research) की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑर्गेनिक फार्मिंग में कई फल और सब्जी जैसे भिंडी, हल्दी, सूरजमुखी, मिर्च, अदरक, मक्का, सोयाबीन जैसे फसलों का उत्पादन 5-20% तक बढ़ गया लेकिन वहीं ऑर्गेनिक फार्म प्रैक्टिस से कुछ फसलों का उत्पादन कम भी हो गया.
- एक समस्या सर्टिफिकेट की है, सामान्य जमीन को ऑर्गेनिक खेती की जमीन में बदलने में करीब 3 साल का टइम लगता है. साथ ही ऑर्गेनिक खेती के लिए ऑर्गेनिक इनपुट जिसमें खाद, बीज और बाकी बायोपेस्टीसाइड शामिल हैं उनको खरीदना महंगा पड़ता है जिससे किसानों की लागत बढ़ जाती है
- ऑर्गेनिक खेती की चेन में जो चैनल पार्टनर हैं उनको ज्यादा कमीशन देना पड़ता है. कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर, रिटेलर या दुकानदार होता है नॉर्मल आटा,दाल तेल या दूसरे प्रोडक्ट पर कम मार्जिन लेते हैं लेकिन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट पर ज्यादा क्योंकि इनकी डिमांड ज्यादा नहीं होती है. इसका असर ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की कीमतों पर पड़ता है. ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की इंडस्ट्री जितना बढ़ेगी, उपभोक्ता के लिए ये प्रोडक्ट सस्ते होंगे.
- किसानों के लिए भी इसमें चैलेंज है क्योंकि पैदावार थोड़ी कम होती है तो उनको ज्यादा कीमत मिलेगी तब जाकर बैलेंस होगा. दूसरा मार्केट लिंक की भी समस्या है, ऑर्गेनिक तरीके से की गई खेती के प्रोडक्ट सामान्य के मुकाबले कम चलते हैं इसलिए वो खराब भी जल्दी होते हैं. किसानों को इस और प्रेरित करने के लिए सब्सिडी, फाइनेंशल सपोर्ट के अलावा सही कीमत मिलना जरूरी है.