दुनिया में आधिकारिक तौर पर ला-नीना एक्टिव हो चुका है. इसकी जानकारी मौसम से जुड़ी अमेरिकी एजेंसी सीपीसी यानी क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर ने दी है. सीपीसी ने कहा है कि दुनिया में ला नीना की परिस्थितियां अब मौजूद हैं, लेकिन इसकी तीव्रता इतनी कम है कि प्रभाव सामने नहीं आ रहा है. सीपीसी ने बताया है कि 'ओशन नीनो इंडेक्स' (ONI) का वैल्यू उस स्तर पर नहीं पहुंचा है जहां से ला नीना का प्रभाव दिखना शुरू होता है. ओशन नीनो इंडेक्स के आधार पर ही ला नीना की तीव्रता का अंदाजा लगाया जाता है.
ला नीना का प्रभाव या उसकी एक्टिविटी दिखने के लिए ओएनआई प्लस या माइनस 0.5 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए. यानी महासागर की सतह का तापमान इसके आसपास होना चाहिए. अगर परिस्थितयां ऐसी रहती हैं तभी ला नीना का प्रभाव सामने आता है. लेकिन ताजा दर्ज ओएनआई के आंकड़े बताते हैं कि यह -0.4 डिग्री सेंटीग्रेड है. सीपीसी ने इसी वैल्यू को थ्रेसहोल्ड वैल्यू कहा है और बताया है कि ओएनआई उस लेवल पर नहीं पहुंचा है जहां उसकी एक्टिविटी का प्रभाव देखा जा सके.
रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर से जनवरी तक का ओएनआई अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है. उसकी रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि ला नीना किस हद तक एक्टिव है. हालांकि यह आधिकारिक रूप से स्पष्ट है कि ला नीना आ चुका है जिसकी चर्चा अमेरिका जैसे देशों में सबसे अधिक हो रही है. यहां तक कि उसके प्रभावों के बारे में भी जिक्र किया जा रहा है. दरअसल, ओशन नीनो इंडेक्स यानी ओएनआई तीन महीने का एकमुश्त डेटा होता है जिसके आधार पर ला नीना या अल नीनो के बारे में बताया जाता है.
दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया की वेदर एजेंसी ब्यूरो ऑफ मेटरोलॉजी (BoM) ने बताया है कि मौसम और महासागर की परिस्थितियां अभी इस बात को पुख्ता नहीं कर रही हैं कि ला नीना पूरी तरह से एक्टिव हो चुका है. हालांकि बीओएम ने यह जरूर कहा है कि अल नीनो पिछले छह महीने से न्यूट्रल है. इसके बाद समुद्री सतह के तापमान का पैटर्न लगातार बदल रहा है जिससे ला नीना की परिस्थितियां बन रही हैं. मगर जब तक ओएनआई अपने थ्रेसहोल्ड यानी लिमिट को पार नहीं करता और मौसम में बदलाव साफ तौर पर नहीं देखे जाते, तब तक ला नीना के बारे में कुछ भी कहना सही नहीं है.
अमेरिकी एजेंसी एनओएए पहले ही कह चुका है कि ला नीना आ चुका है, लेकिन वह इतना कमजोर है कि उसका प्रभाव देखने में नहीं आ रहा है. अमेरिका के बारे में कहा जा रहा है कि ला नीना ठंड के बाकी बचे सीजन को स्पष्ट तौर पर प्रभावित करेगा. यह प्रभाव हल्का जरूर होगा, पर यह नहीं कहा जा सकता कि ला नीना नहीं है. अमेरिका के संदर्भ में कहा गया है कि यह उतना असरदार नहीं होगा जितना अल नीनो को देखा गया. मौजूदा पूर्वानुमान के मुताबिक, ला नीना का स्पेल यानी उसकी अवधि कम दिनों की होगी.
ला नीना जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल तक रह सकता है. उसके बाद समुद्री सतह के तापमान में बदलाव होगा और ENSO न्यूट्रल की स्थिति बन सकती है. अब ये जान लेते हैं कि ला नीना कब आता है. दरअसल, इंडोनेशिया और दक्षिण अमेरिका के बीच प्रशांत महासागर जब सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है तो ला नीना की परिस्थितियां पैदा होती हैं. ठीक इसके विपरीत जब प्रशांत महासागर सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है तो अल नीनो की स्थिति बनती है.
भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी कि IMD अपने बयान में कह चुका है कि भारत में ला नीना 2024 के अंत में या 2025 की शुरुआत में आ सकता है जिसका असर कम ठंड या देरी से आई ठंड के रूप में देखा जाएगा. इस तरह का प्रभाव भारत में देखा जा रहा है क्योंकि इस बार ठंड देर से शुरू हुई और तापमान में भी बहुत अधिक गिरावट नहीं है.