यह सर्वविदित है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और राष्ट्र का समग्र विकास किसानों और कृषि की मजबूती पर ही निर्भर करता है. इसी नजरिये को साकार करने के लिए, केंद्र की मोदी सरकार खेती-किसानी पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद से ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार कृषि क्षेत्र की बाधाओं और उन्नति के रास्तों को समझने के लिए कृषि मंत्रालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं.
हाल ही में खरीफ सीजन में चलाए गए "विकसित कृषि संकल्प मुहिम" के माध्यम से देश भर के किसानों से जमीनी स्तर की समस्याओं और जरूरतों पर फीडबैक लिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को महत्वाकांक्षी "प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना" का शुभारंभ करेंगे. इस योजना को 16 जुलाई, 2025 को मंजूरी दी गई थी और इसका लक्ष्य देश के 100 सबसे कम प्रदर्शन करने वाले कृषि जिलों की तस्वीर बदलना है. यह योजना इस सोच पर आधारित है कि बिखरी हुई योजनाओं से नहीं, बल्कि एक केंद्रित और समन्वित प्रयास से ही किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है.
अगर यह योजना अपनी पूरी क्षमता से लागू होती है, तो यह न केवल उन 100 पिछड़े जिलों किसानों की आय बढ़ाएगी, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी एक नई मजबूती प्रदान करेगी.
यह कोई एक नई योजना नहीं है, बल्कि यह एक 'महा-योजना' है जिसका उद्देश्य पहले से चल रही योजनाओं को एक साथ लाकर उनकी ताकत को कई गुना बढ़ाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को इस योजना का शुभारंभ करेंगे, जिसका वार्षिक बजट ₹24,000 करोड़ रखा गया है. यह योजना अगले छह वर्षों तक चलेगी.
इसके तहत, 11 अलग-अलग मंत्रालयों की 36 केंद्रीय योजनाओं को एक साथ जोड़ा जाएगा. साथ ही, राज्यों की योजनाओं और स्थानीय स्तर पर निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी इसमें शामिल किया जाएगा. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि अब किसान को अलग-अलग योजनाओं के लाभ के लिए अलग-अलग दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. बल्कि, सभी योजनाओं का लाभ एक ही जगह, एक समन्वित तरीके से उस तक पहुंचाया जाएगा, ताकि कोई भी किसान छूट न जाए और योजनाओं का दोहराव भी न हो. इससे 1.7 करोड़ किसानों को सीधे लाभ मिलने का अनुमान है.
प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना का लक्ष्य सिर्फ़ खेती-किसानी को बेहतर बनाना नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास को एक नई दिशा देना है. इसके पांच प्रमुख स्तंभ हैं:
1.कृषि उत्पादकता बढ़ाना: किसानों को बेहतर बीज, खाद, तकनीक और वैज्ञानिक सलाह उपलब्ध कराकर प्रति एकड़ उपज को बढ़ाना.
2.फसल विविधीकरण को बढ़ावा: किसानों को पारंपरिक फसलों के अलावा बाजार की मांग के अनुसार अन्य फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि उनका जोखिम कम हो और मुनाफा बढ़े. इसमें टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल खेती पर विशेष जोर दिया जाएगा.
3.भंडारण क्षमता बढ़ाना: पंचायत और ब्लॉक स्तर पर कोल्ड स्टोरेज और गोदामों का निर्माण करना, ताकि किसान अपनी उपज को सही समय पर बेच सकें और उन्हें मजबूरी में कम दाम पर अपनी फसल न बेचनी पड़े.
4.सिंचाई सुविधाओं में सुधार: हर खेत तक पानी पहुंचाने के लक्ष्य के साथ सिंचाई के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, ताकि किसान मॉनसून पर अपनी निर्भरता कम कर सकें.
5.कृषि ऋण तक आसान पहुंच: किसानों को अपनी जरूरतों के लिए आसानी से और समय पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक कर्ज उपलब्ध कराना.
इस योजना के लिए देश भर से उन 100 जिलों को चुना गया है जहां कृषि की स्थिति सबसे कमजोर है. इसके लिए तीन मुख्य पैमाने तय किए गए हैं: जहां प्रति हेक्टेयर फसल की पैदावार राष्ट्रीय औसत से कम है. जहां साल में एक ही फसल ली जाती है या खेती योग्य भूमि का पूरा उपयोग नहीं हो पाता. जहां के किसानों को बैंकों से बहुत कम कर्ज मिल पाता है.
जारी सूची के अनुसार, इस योजना में देश भर से 100 जिलों को शामिल किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 12 जिले चुने गए हैं, जिनमें महोबा, सोनभद्र, हमीरपुर, बांदा, जालौन, झांसी, उन्नाव, प्रयागराज, चित्रकूट, प्रतापगढ़, श्रावस्ती और ललितपुर शामिल हैं. इसके बाद महाराष्ट्र से 9 जिले, मध्य प्रदेश और राजस्थान से 8-8 जिले, और बिहार से 7 जिलों को इस योजना का हिस्सा बनाया गया है. वहीं, आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल से चार-चार जिलों का चयन किया गया है, जबकि असम, छत्तीसगढ़ और केरल से तीन-तीन जिले और जम्मू-कश्मीर, झारखंड और उत्तराखंड से दो-दो जिले शामिल हैं.
अंत में, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे 11 राज्यों से एक-एक जिले को चुना गया है. इन जिलों की कृषि-जलवायु परिस्थितियों और फसल पैटर्न के अनुसार विशेष योजनाएं तैयार की जाएंगी.
इस योजना को जमीन पर प्रभावी ढंग से उतारने के लिए एक मजबूत त्रि-स्तरीय व्यवस्था बनाई गई है, जिसके तहत सबसे निचले स्तर पर हर चयनित जिले में जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में 'जिला धन-धान्य कृषि योजना समिति' काम करेगी. इस समिति में प्रगतिशील किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और अन्य अधिकारियों को शामिल कर स्थानीय जरूरतों और सलाह-मशविरे के आधार पर एक व्यापक कृषि योजना तैयार की जाएगी. इन जिलों के काम में सही तालमेल सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर एक संचालन समूह होगा, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय मंत्रियों और सचिवों के अधीन दो टीमें इसकी कड़ी निगरानी करेंगी.
इसके साथ ही, एक केंद्रीय डैशबोर्ड पर 117 संकेतकों के माध्यम से हर जिले की प्रगति की मासिक समीक्षा की जाएगी और हर जिले के लिए एक केंद्रीय नोडल अधिकारी भी नियुक्त होगा जो नियमित दौरे कर जमीनी स्तर पर प्रगति की निगरानी और स्थानीय टीम का मार्गदर्शन करेगा.