गुजरात के कच्छ में 'जल मंदिर अभियान' के तहत 390 तालाब बने, बदल गई इलाके की तस्‍वीर

गुजरात के कच्छ में 'जल मंदिर अभियान' के तहत 390 तालाब बने, बदल गई इलाके की तस्‍वीर

कच्छ में 'जल मंदिर अभियान' के तहत सामुदायिक भागीदारी के माध्‍यम से 390 तालाब बनाए जा चुके हैं, जिससे इलाके में पानी की उपलब्धता बढ़ी है. भूजल के पुनर्भरण से क्षेत्र में हरियाली और खुशहाली लौट आई है.

Kutch Jal ABhiyan TalabKutch Jal ABhiyan Talab
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Sep 03, 2025,
  • Updated Sep 03, 2025, 6:10 AM IST

गुजरात के कच्छ क्षेत्र की सूखी और कठोर जलवायु में पानी की कमी सदियों से एक बड़ी चुनौती रही है. ऐसे में एक सामुदायिक पहल ने इस चुनौती को अवसर में बदलते हुए अपने जलस्रोतों के निर्माण और संरक्षण में नई मिसाल कायम की है. 'जल मंदिर अभियान', जिसे कच्छ फॉडर फ्रूट एंड फॉरेस्ट डेवलपमेंट ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है. एक सामुदायिक जल संरक्षण पहल है. 2012 में इसकी शुरुआत के बाद से अब तक लगभग 390 नए तालाबों का निर्माण किया जा चुका है. इस अभियान की खासियत यह है कि इसमें गांव के लोग, एनजीओ, डोनर और यहां तक कि स्कूल के छात्र भी सक्रिय रूप से शामिल हैं.

स्‍थानीय लोग दे रहे अभियान को गति

स्थानीय लोगों की भागीदारी इसे असली ताकत देती है. अभियान में जेसीबी जैसी मशीनरी उपलब्ध कराना, ट्रैक्टर और मजदूरी की सहायता करना, सभी कुछ ग्रामीण खुद कर रहे हैं. ट्रस्ट के निदेशक, जयेश ललक ने बताया कि जब हमने 2012 में यह कार्यक्रम शुरू किया, तो हम लोगों से सहयोग की अपील की. खुद ग्रामीण, किसान और पशुपालक सभी ने खुद आगे आकर सहयोग किया. आज तक कच्छ में करीब 390 तालाब बन चुके हैं और हमारा लक्ष्य 2026 तक 500 से अधिक तालाब बनाना है.

सूरजपुर गांव में बना सामुदायिक तालाब

एक प्रेरक कहानी सूरजपर गांव की है, जहां वृद्ध नागरिक नारायणभाई केराई और मंजिभाई पिंडोरिया ने सामुदायिक तालाब बनाने का नेतृत्व किया. जयेश ललक, गांव की पंचायत और डोनर्स के सहयोग से यह परियोजना सफल हुई. इस तालाब ने न केवल लोगों और पशुओं के लिए पानी का अहम स्रोत बनाया है, बल्कि भूजल पुनर्भरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मंजिभाई पिंडोरिया बताते हैं, अब बारिश के समय, जब बोरवेल और कुएं सूख जाते हैं, ये तालाब भूजल को फिर से रिचार्ज  करते हैं और हमें पानी उपलब्ध कराते हैं.

पशु-पक्षि‍यों को आना हुआ शुरू

इस अभियान का असर केवल गांवों तक ही सीमित नहीं रहा. भुज के शिशुकुंज इंटरनेशनल स्कूल के छात्रों ने तालाब के निर्माण के बाद हुए परिवर्तन को देखा. जो जमीन पहले निर्जन और बंजर थी, वह अब हरियाली से भर गई है, पक्षियों और जानवरों की आवाजें गूंज रही हैं, और छोटे जंगल के पौधे उगने लगे हैं. छात्रा चारु गणात्रा बताती हैं कि जल मंदिर बनने के बाद हमने इस स्थल पर कई बार दौरा किया. पहले यहां कोई हरियाली या जीव-जंतु नहीं थे, अब पेड़-पौधे, जानवर और पक्षी भी यहां आते हैं.

कच्छ के बुजुर्गों की अनुभवजन्य समझ से लेकर छात्रों की उत्सुकता तक, जल मंदिर अभियान एक साझा मिशन के रूप में पूरे क्षेत्र को जोड़ रहा है. यह साबित करता है कि सामूहिक और समुदाय-निरर्थक प्रयास से किसी भी कठिन जलवायु चुनौती का समाधान किया जा सकता है. एक तालाब एक समय में, कच्छ के जल योद्धा अपने भविष्य को पानी से पुनर्जीवित कर रहे हैं. (एएनआई)

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