ई-भूमि नीति से किसानों का होगा बड़ा फायदा, बाजार भाव में बेच सकेंगे सरकार को जमीन

ई-भूमि नीति से किसानों का होगा बड़ा फायदा, बाजार भाव में बेच सकेंगे सरकार को जमीन

पुरानी प्रणाली के विपरीत ई-भूमि नीति किसानों को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देती है. किसान चाहें तो सरकार को अपनी भूमि बाजार मूल्य पर बेच सकते हैं. किसानों की भागीदारी को आसान बनाने के लिए सरकार ने लैंड एग्रीगेटर्स की व्यवस्था शुरू की है, जो किसानों को पोर्टल पर भूमि विवरण निःशुल्क अपलोड करने में मदद करते हैं.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 22, 2025,
  • Updated Aug 22, 2025, 7:08 PM IST

पारदर्शिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए हरियाणा सरकार ने स्पष्ट किया कि ई-भूमि नीति के अंतर्गत किसानों की इच्छा के विरुद्ध एक इंच भी भूमि कभी अभिग्रहीत नहीं की गई है. सरकार ने जोर देकर कहा कि यह नीति न केवल पारदर्शी है बल्कि उन किसानों के लिए वरदान है, जो सार्वजनिक विकास परियोजनाओं के लिए स्वेच्छा से अपनी भूमि बाजार दरों पर बेचना चाहते हैं. इस संबंध में अधिक जानकारी देते हुए सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि ई-भूमि (सरकारी विकास परियोजनाओं हेतु स्वेच्छा से भूमि उपलब्ध कराने की नीति) पहली बार वर्ष 2017 में अधिसूचित की गई थी और 9 जुलाई, 2025 को संशोधित की गई. इसने वर्ष 2013 के केंद्रीय अधिनियम के तहत होने वाले विवादित अनिवार्य भूमि अधिग्रहण की प्रथा को समाप्त कर दिया.
पहले की व्यवस्था में किसान अक्सर खुद को बेदखल महसूस करते थे, जबकि वर्तमान नीति पूरी तरह किसान की सहमति पर आधारित है. प्रवक्ता ने कहा कि ई-भूमि नीति पारदर्शिता और स्वैच्छिक भागीदारी पर आधारित है.

किसानों पर थोपने की प्रक्रिया नहीं

सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि पुरानी प्रणाली के विपरीत ई-भूमि नीति किसानों को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देती है. किसान चाहें तो सरकार को अपनी भूमि बाजार मूल्य पर बेच सकते हैं. भूमि पूलिंग के माध्यम से विकसित भूखंड ले सकते हैं या फिर बाय-बैक विकल्प का उपयोग कर सकते हैं, जिसके तहत वे तीन वर्ष बाद प्रचलित दर पर भूखंड हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम (HSIIDC) को पुनः बेच सकते हैं. यह आपसी सहमति है, थोपने की प्रक्रिया नहीं है. 

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संभवतः पहली बार किसान विकास परियोजनाओं के निर्माण में सच्चे भागीदार बने हैं. सरकार के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि इस व्यवस्था के अंतर्गत निजी कॉलोनाइज़र, डेवलपर या उद्योगों के लिए भूमि क्रय की अनुमति नहीं है. भूमि केवल सार्वजनिक उद्देश्य हेतु स्वीकार की जाती है, चाहे वह राज्य स्तरीय अवसंरचना हो या केंद्र सरकार की परियोजनाएं. यह प्रावधान किसानों की उस लंबे समय से चली आ रही शिकायत को दूर करता है कि उनकी भूमि निजी मुनाफे के लिए इस्तेमाल हो रही थी.

लैंड एग्रीगेटर्स की व्यवस्था

किसानों की भागीदारी को आसान बनाने के लिए सरकार ने लैंड एग्रीगेटर्स की व्यवस्था शुरू की है, जो किसानों को पोर्टल पर भूमि विवरण निःशुल्क अपलोड करने में मदद करते हैं. अब तक 353 एग्रीगेटर्स पंजीकृत किए जा चुके हैं. किसान स्वतंत्र रूप से भी अपनी भूमि का विवरण और मूल्य पोर्टल पर दर्ज कर सकते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक किसानों ने स्वेच्छा से 1,850 एकड़ भूमि पोर्टल पर उपलब्ध कराई है.

 किसान स्वयं निर्णय ले रहे हैं

इस सकारात्मक प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर सरकार ने छह नई परियोजनाओं के लिए 35,500 एकड़ भूमि की मांग हेतु नए प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं. प्रस्ताव भेजने की अंतिम तिथि 31 अगस्त, 2025 तय की गई है और पूरे प्रदेश में बड़ी संख्या में किसानों की सहमति मिल रही है. इस नीति ने किसानों को जबरन अधिग्रहण के भय से मुक्त कर दिया है. आज किसान स्वयं निर्णय ले रहे हैं कि अपनी भूमि के साथ क्या करना है, और वे यह निर्णय पारदर्शी व गरिमामय तरीके से ले रहे हैं. प्रवक्ता ने कहा कि पर्यवेक्षकों का मानना है कि भारत में ई-भूमि मॉडल अद्वितीय है, क्योंकि इसमें न्यायसंगत बाजार मूल्यांकन और स्वैच्छिक भागीदारी का मेल है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास किसानों के अधिकारों को प्रभावित ना करें, किसानों को पीड़ित की बजाय भागीदार बनाकर हरियाणा ने भूमि नीति में एक नया मानक स्थापित करने का प्रयास किया है.

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